- घर वापसी की यह कहानी गोरखपुर के एक गांव में रहने वाले लल्लन की है
- लल्लन गाजियाबद में पेंटर था, लेकिन अब गोरखपुर में ही रहना चाहता है
दैनिक भास्कर
Jun 03, 2020, 03:32 PM IST
गोरखपुर. महामारी के दौर में प्रवासियों की कई कहानियां सामने आईंं। इनमें संघर्ष है, मजबूरी है और अपने घर-गांव पहुंचने की जिद और ललक भी। एक किस्सा लल्लन पेंटर का भी है। वह यूपी के गोरखपुर जिले के एक गांव कैथोलिया का रहने वाला है। कई साल से दिल्ली के करीब गाजियाबाद में रहकर पेंट और पालिश के जरिए परिवार चला रहा था। लॉकडाउन हुआ तो कामकाज बंद हो गया। जब श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलीं तो घर लौटने की उम्मीद जगी।
लल्लन ने तीन दिन मशक्कत की। लेकिन ट्रेन में उसे और परिवार को सीट नहीं मिल सकी। फिर उसने एक बड़ा और कड़ा फैसला लिया। लल्लन बैंक गया। अपनी बचत के 1.9 लाख रुपए निकाले। इनमें से 1.5 लाख में सेकंड हैंड यानी पुरानी कार खरीदी। परिवार समेत 14 घंटे के सफर के बाद गोरखपुर पहुंचा। अब वो अपने गांव में है। लल्लन कहता है- गोरखपुर में रोजी मिली तो गाजियाबाद कभी नहीं जाउंगा।
पहले उम्मीद थी..
लल्लन पीपीगंज थाना क्षेत्र के कैथोलिया गांव का रहने वाला है। उसने कहा- 25 मार्च को जब लॉकडाउन का ऐलान किया गया तो लगा कि जल्द ही सब कुछ सामान्य हो जाएगा। लेकिन, जब लॉकडाउन बढ़ता रहा तो मैंने और परिवार ने गांव वापसी का फैसला किया। बस और ट्रेनों में सीट पाने के लिए बहुत पसीना बहाया। लेकिन, नाकाम रहे। बसों में इतनी भीड़ रहती थी कि डर लगने लगा। सोचा अगर इस तरह बिना सोशल डिस्टेंसिंग के गए तो संक्रमित हो सकते हैं।
जो बचत थी, वो सब खत्म हो गई
लल्लन नेे आगे कहा- जब मैं श्रमिक ट्रेनों में भी सीट पाने में विफल रहा तो एक कार खरीदने और उसी से गांव जाने का फैसला किया। मुझे पता है कि मैंने अपनी सारी बचत खर्च कर दी है। लेकिन कम से कम मेरा परिवार सुरक्षित है। 29 मई को परिवार के साथ कार से गाजियाबाद से रवाना हुआ। 14 घंटे की यात्रा के बाद गोरखपुर पहुंचा।
लल्लन, फिलहाल क्वारैंटाइन है। उसे अब गोरखपुर में काम मिलने की उम्मीद है। उसने कहा- अगर मुझे यहां काम मिल जाता है, तो मैं कभी गाजियाबाद नहीं लौटूंगा।