April 27, 2024 : 2:39 PM
Breaking News
MP UP ,CG अन्तर्राष्ट्रीय करीयर क्राइम खबरें खेल टेक एंड ऑटो बिज़नेस मनोरंजन महाराष्ट्र राष्ट्रीय

पहलवानों के विरोध-प्रदर्शन के एक साल, भारतीय कुश्ती आज कहाँ खड़ी है, क्या है भविष्य

हाथ में तिरंगा लिए ज़मीन पर गिरी महिला पहलवानों की ये तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है.

बीते मई में हाथ में तिरंगा लिए ज़मीन पर गिरी महिला पहलवानों की ये तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई

भारत के चैंपियन पहलवानों ने अचानक अपने महासंघ और उसके प्रमुख के ख़िलाफ़ सड़क पर धरना शुरू कर दिया था.

इसके ठीक एक साल बाद भारतीय कुश्ती अपने ही बनाए चक्रव्यूह में फँसा हुआ पा रही है.

भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफ़आई) और इसके तत्कालीन अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ ओलंपिक और वर्ल्ड चैंपियनशिप विजेताओं साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया का साल भर तक चले विरोध प्रदर्शन का समाधान अभी होना बाक़ी है.

डब्ल्यूएफ़आई की नई चुनी गई बॉडी को खेल एवं युवा मामलों के मंत्रालय ने निलंबित कर दिया है लेकिन उसने इस निलंबन को मानने से इनकार दिया है और इसी हफ़्ते उसने कार्यकारी परिषद की बैठक आयोजित की.सीनियर नेशनल की दो तारीख़ें घोषित की जा चुकी हैं, एक निलंबित डब्ल्यूएफ़आई द्वारा पुणे के लिए और दूसरी जयपुर के लिए खेल मंत्रालय की ओर से नियुक्त एडहॉक पैनल ने घोषित की हैं.आरोप-प्रत्यारोप और जवाबी चालों से अलग, साल भर तक चले पहलवानों के विरोध प्रदर्शन ने सभी खेलों के युवा एथलीटों और आम जनता की नज़र में भारतीय खेल की सच्चाइयों के प्रति समझ को बदल कर रख दिया है.

संजय सिंह की कुश्ती संघ के चुनाव में जीत के बाद साक्षी मलिक ने कुश्ती से संन्यास की घोषणा कर दी थी

इमेज कैप्शन,

संजय सिंह की कुश्ती संघ के चुनाव में जीत के बाद साक्षी मलिक ने कुश्ती से संन्यास की घोषणा कर दी थी

पहलवानों की राजनीतिक मंशा और तथ्य

इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता कि डब्ल्यूएफ़आई, मंत्रालय या सरकार में शीर्ष पदों पर बैठे लोगों ने पहलवानों के इरादे और मंशा पर सवाल खड़े किए.

लेकिन इन तस्वीरों को हर युवा एथलीट ने देखे और भय महसूस किया और खेल में करियर बनाने के मक़सद को लेकर सवाल किए.

मुझे बताया गया कि खेल विकास कार्यक्रमों में काम करने वालों के पास युवा एथलीटों के अभिभावकों की ओर से फ़ोन आए और उन्होंने पूछा, “अगर मेरे बच्चे के खेल में ऐसा होता है तो क्या होगा? उनके फ़ेडरेशन के अधिकारी के साथ होगा तब? हमें कौन बचाएगा? आप क्या कार्रवाई कर सकते हैं?”

कहा जा रहा है कि पहलवानों के प्रदर्शन में सरकार राजनीतिक मंशा देख रही है.

पहलवानों की राजनीतिक मंशा जो भी हो, तथ्य ये है कि डब्ल्यूएफ़आई का कार्यालय पिछले चुनाव तक बृजभूषण शरण सिंह के सरकारी बंगले में था.

दिल्ली पुलिस के एफ़आईआर में सिंह के ख़िलाफ़ दिया गया विवरण उन्हें पोक्सो एक्ट तहत गिरफ़्तार किए जाने के लिए पर्याप्त है.खेल में अपने बच्चे को भेजने वाला हर भारतीय अभिभावक और यह युवा एथलीट ने इन विवरणों को पढ़ा होगा और चैंपियन खिलाड़ियों के साथ हुए सुलूक को देखा होगा.

खिलाड़ियों का भविष्य

संजय सिंह की अगुवाई वाले निलंबित डब्ल्यूएफ़आई का कहना है कि पहलवानों के प्रदर्शन ने एक साल की प्रतियोगिताओं को बाधित किया है.

हालांकि अगस्त में कुश्ती की विश्व के प्रशासनिक निकाय यूनाइटेड वर्ल्ड ऑफ़ रेसलिंग (यूडब्ल्यूडब्ल्यू) ने समय से चुनाव कराए जाने पर पहले ही डब्ल्यूएफ़आई को निलंबित कर रखा था.

इस निलंबन के कारण सभी भारतीय पहलवान, जिनमें नौ भारतीय पदक विजेता भी शामिल थे, अक्टूबर में अल्बानिया में हुए यूडब्ल्यूडब्ल्यू के वर्ल्ड अंडर 23 चैंपियनशिप प्रतियोगिता में भारत की बजाय यूडब्ल्यूडब्ल्यू के झंडे के तक हिस्सा लिया.

अगर यह मुद्दा हल नहीं होता तो उन्हें आगे भी ऐसा ही करना होगा.

यह ओलंपिक का साल है, कुश्ती ने सितंबर में वर्ल्ड चैंपियनशिप में अंतिम पंघाल के कांस्य पदक के साथ पेरिस 2024 में एक कोटा स्थान पक्का कर लिया है.

इसके अलावा एशियन और ओलंपिक क्वॉलिफ़ाई प्रतियोगिताएं भी हैं, जहाँ भारत के शीर्ष पहलवान और स्थान पक्का करने का ज़ोर लगाएंगे.

इनमें टोक्यो रजत पदक विजेता रवि दहिया या 57 किलोग्राम भार वर्ग में अंडर23 वर्ल्ड चैंपियनशिप के गोल्ड मेडलिस्ट अमन सेहरावत या 86 किलोग्राम भार वर्ग में दीपक पुनिया हैं.

महिलाओं में 76 किलोग्राम भार वर्ग में अंडर 23 वर्ल्ड कप चैंपियन रितिका या 62 किलोग्राम भार वर्ग में सोनम मलिक हो सकती हैं.

कुश्ती

2025 में दिखेगा असर

लेकिन प्रदर्शन का असली असर 2024 पेरिस ओलंपिक्स में नहीं बल्कि 2025 में महसूस होगा, जब जूनियर खिलाड़ी अगले एशियन, ओलंपिक और अन्य विश्व प्रतियोगिताओं के लिए आगे आएंगे.

भारत के शीर्ष पहलवानों की परवरिश डब्ल्यूएफ़आई के सीधे हस्तक्षेप के बाहर होती है.

लेकिन व्यावहारिक रूप से, शीर्ष एथलीटों के एक साल के प्रदर्शन के बाद भारत की कुश्ती अब कहां खड़ी है?

हमेशा की तरह खेल की बजाय राजनीतिक दांव पेच हावी रहे हैं. मंत्रालय और सत्तारूढ़ प्रशासन के अंदर इस बात को लेकर बहस जारी है कि प्रदर्शनकारी पहलवान अब भी लड़ाई के मुद्रा में क्यों नज़र आ रहे हैं.

आख़िरकार, वे जो चाहते थे, उन्हें मिल गया है; डब्ल्यूएफ़आई निलंबित है और बृजभूषण शरण सिंह का महासंघ चलाने में कोई भूमिका नहीं है और मामला कोर्ट में है.

ये सब सही है, फिर भी, जिस पल निलंबित महासंघ अपना सिर उठाता है, विरोध करने वाले पहलवानों को समझ आता है कि अब भी बृजभूषण निर्णय ले रहे हैं.

विरोध कर रहे पहलवान चाहते थे कि सबसे युवा और सबसे कमज़ोर खिलाड़ियों की सुरक्षा के लिए भारतीय कुश्ती महासंघ को जिस तरह चलाया जा रहा है, उसमें आमूलचूल बदलाव किया जाए.

इस मांग से चाहे वो राजनीतिक करियर बना रहे हों या फ़ायदा उठा रहे हों, यह मायने नहीं रखता.

अगर एथलीटों को सुरक्षित महसूस कराया जाता है तो यह उनकी और मंत्रालय में इसका प्रयास कर रहे लोगों की जीत होगी.

अगर हमारे एथलीट को असुरक्षित महसूस करने के लिए छोड़ दिया जाएगा तो यह उन चैंपियन खिलाड़ियों की ग़लती नही है, जिन्होंने सुरक्षित खेल के लिए लड़ाई लड़ी.

दोष उन लोगों का है जो अपनी दिशाहीन ताक़त की लगाम से चिपके हुए हैं.

Related posts

MP में ऑफलाइन पढ़ाई का पहला दिन:जबलपुर में मिस कम्युनिकेशन के कारण सरकारी स्कूलों में स्टूडेंट्स नहीं पहुंचे; भोपाल में सहमति पत्र लेने और वैक्सीनेशन में निकला दिन; इंदौर में जल्दी कर दी छुट्‌टी

News Blast

चीनी साइबर अटैक से US और यूरोप परेशान:बोले- रैनसमवेयर के जरिए ब्लैकमेल करते हैं चीन के हैकर, पहली बार जॉइंट स्टेटमेंट जारी किया

News Blast

RBI JE Recruitment 2021: आरबीआई में जूनियर इंजीनियर की निकली वैकेंसी, 15 फरवरी 2021 तक करें अप्लाई

Admin

टिप्पणी दें