अमेठी से चुनाव नहीं लड़ने के फ़ैसले के बाद से ही राहुल गांधी के लिए सोशल मीडिया पर ‘डरो मत लड़ो’ जैसे हैशटैग चलाये जाने लगे, लेकिन गौरीगंज कांग्रेस कार्यालय में एक कार्यकर्ता ने एकदम उलट बात कही, “असल में अमेठी में अब चुनाव लेवल में हो रहा है. राहुल गांधी, भाजपा नेता स्मृति इरानी के सामने चुनाव लड़ें, उनका इतना छोटा कद नहीं हैं.”
साल 1980 के बाद से अमेठी लोकसभा सीट पर गांधी परिवार का कब्जा रहा और राहुल गांधी तीन बार यहां से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे.
लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी की आंधी में भाजपा प्रत्याशी स्मृति इरानी ने उन्हें 55,120 मतों से हरा कर इस पारिवारिक और परंपरागत सीट को छीन लिया था.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी के रायबरेली से चुनाव लड़ने की ख़बर आने के बाद उन पर निशाना साधते हुए कहा कि ‘वे वायनाड में भी हार रहे हैं, इसलिए रायबरेली से रास्ता ढूंढ रहे हैं’. वहीं अमेठी से भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार और मौजूदा सांसद स्मृति इरानी ने मीडिया के सामने कहा कि कांग्रेस पार्टी का ये फ़ैसला बताता है कि अमेठी में उनकी हार तय थी
इमेज कैप्शन,रायबरेली से नामांकन दाखिल करते राहुल गांधी
ऐसे में यह तय है कि अमेठी के बजाय रायबरेली से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने को लेकर कांग्रेस और राहुल गांधी को कई सवालों का सामना करना पड़ेगा. अगर राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ना चाहते थे तो निर्णय लेने में इतनी देर क्यों की? “अमेठी में अगर स्मृति इरानी को गैर-गांधी परिवार के किसी प्रत्याशी से हराया जा सकता है तो यह एक ज्यादा बड़ा मैसेज जाएगा. राहुल गांधी से अगर स्मृति इरानी हार भी जाती हैं तो स्मृति इरानी का राजनीति में वजूद बचा रहता. 2014 मेंवो हार गई थीं लेकिन इसके बावजूद उन्हें मंत्री बनाया गया था.”
कलहंस स्मृति इरानी की अमेठी में होने वाली मुश्किलों के बारे में बताते हैं, “राजनीति में स्मृति इरानी का जो उत्थान हुआ है वह गांधी परिवार के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ने के कारण ही हुआ है. स्मृति इरानी के पास न तो जाति-बिरादरी का वोट है और न वो कोई बड़ी सेलिब्रिटी हैं. राहुल गांधी से वो टक्कर लेती हैं और हरा देती हैं, यही उनका राजनीति में कुल हासिल है.”