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सिख दंगे के 36 साल बाद मिले खून के धब्बे:कानपुर में बाप-बेटे की हत्या कर जला दी थी लाशें, तब से बंद था घर; SIT ने जांच की तो खून और शव फूंकने के निशान मिले

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कानपुर2 घंटे पहले

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1984 सिख दंगों के दौरान कानपुर में 127 लोगों की हत्या हुई थी। (फाइल फोटो) - Dainik Bhaskar

1984 सिख दंगों के दौरान कानपुर में 127 लोगों की हत्या हुई थी। (फाइल फोटो)

कानपुर में 1984 में हुए सिख दंगों की जांच कर रही स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) को 36 साल बाद एक मकान से खून के धब्बे और लाशों को फूंकने के सबूत मिले हैं। ये मकान दंगों के बाद से ही बंद पड़ा था। SIT ने फॉरेंसिंक टीम के साथ इस मकान की जांच की। गोविंद नगर के दबौली में स्थित इस मकान में सिख परिवार रहता था। दंगों में अपनों के मारे जाने के बाद ये परिवार पंजाब के जालंधर में शिफ्ट हो गया था।

SIT के SSP बालेंद्रु भूषण ने बताया कि 1 नवंबर 1984 को सिख दंगे के दौरान कारोबारी तेज प्रताप सिंह (45) और बेटे सत्यवीर सिंह (22) की घर में हत्या कर दी गई थी। इसके बाद शव जला दिया गया था। इस मामले में गोविंद नगर थाने में अपराध संख्या 333/84 दर्ज की गई थी। SIT को जांच के दौरान न ही FIR की कापी मिली थी और न गवाह। ऐसे में मुकदमे को बंद कर दिया गया था।

हालांकि, बाद में पीड़ित परिवार और प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही के बाद SIT ने बंद फाइल को फिर से खोला है। गवाह का कोर्ट में बयान भी दर्ज करा दिया है। गवाहों के मिलने के बाद अब SIT को इससे जुड़े अन्य मामलों में भी चार्जशीट दाखिल करने में सहूलियत मिलेगी।

दंगे के दौरान का फाइल फोटो

दंगे के दौरान का फाइल फोटो

दंगे में मारे गए सत्यवीर के बेटे ने की पुलिस की मदद
मामले की जांच कर रहे दरोगा कमलेश कुमार कनौजिया और सुनील अवस्थी पिछले दिनों पंजाब गए थे। यहीं पर जांच के दौरान उनकी मुलाकात दंगे में मारे गए सत्यवीर सिंह के बेटे चरणजीत सिंह से हुई। पूछताछ में उन्होंने बताया कि गोविंद नगर थाने में उनके पिता और भाई की हत्या की FIR दर्ज कराई थी। उसकी कापी भी SIT को उपलब्ध कराई। इसके साथ ही बताया कि आज भी दबौली एल-ब्लॉक मकान संख्या-28 बंद पड़ा है।

इसके बाद एसआईटी ने घटना के चश्मदीद चरणजीत सिंह की मौजूदगी में मंगलवार को फॉरेंसिक टीम के साथ दबौली स्थित घर में दाखिल हुई। एसएसपी ने बताया कि फॉरेंसिक टीम को मौके से खून के धब्बे और हत्या के बाद शव जलाने के साक्ष्य मिले हैं। इसके बाद एसआईटी ने चरणजीत सिंह का कोर्ट में बयान भी कराया।

दंगे की दास्तां बताते-बताते फफक पड़े चरणजीत…
चरणजीत ने बताया कि दंगे में पिता और भाई की नृशंस हत्या के बाद वह अपनी पत्नी और परिवार के साथ पंजाब के जालंधर में शिफ्ट हो गए। दादी (तेज प्रताप सिंह की पत्नी) का कुछ साल पहले निधन हो गया था। एसआईटी जांच के मुताबिक, 1 नवंबर 1984 को भीड़ ने तेज प्रताप सिंह के घर में घुसकर उन्हें और सत्यवीर को पकड़ लिया था। इस दौरान परिवार के अन्य सदस्य छिप गए थे। दोनों की हत्या के बाद घर में लूटपाट की थी। इसके बाद मकान को फूंक दिया।

1984 में हुए सिख दंगे में कानपुर में 127 लोग मारे गए थे। (फाइल फोटो)

1984 में हुए सिख दंगे में कानपुर में 127 लोग मारे गए थे। (फाइल फोटो)

भाजपा सरकार बनने के बाद सिख दंगे की जांच शुरू हुई
SSP बालेंद्रु भूषण ने बताया कि सिख दंगे में कानपुर के अलग-अलग इलाकों में 127 लोग मारे गए थे। साल 2019 में भाजपा सरकार ने दंगे से जुड़े कानपुर में दायर सभी 1,251 मामलों की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया था।

एसआईटी गठन के बाद 1,251 मामलों में से 40 को शॉर्टलिस्ट किया गया। कानपुर पुलिस इनमें से 11 मामलों में चार्जशीट की ओर जांच बढ़ रही है। बाकी 9 मामलों में एफआर लगा दी है। 11 मामलों में 54 आरोपी सामने आए हैं। इनमें से कई बुजुर्ग और बेहद बीमार हैं। फिलहाल, जांच के बाद आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजने की कार्रवाई की जाएगी।

एक और मकान में मिल चुके हैं खून के धब्बे और सबूत
इसी साल जनवरी में एसआईटी ने नौबस्ता इलाके में एक घर से खून के नमूने और आगजनी के सबूत एकत्र किए थे। यहां दंगे के दौरान सरदुल सिंह और उनके रिश्तेदार गुरुदयाल सिंह की हत्या कर दी गई थी और आग लगा दी गई थी। इस मामले में भी परिजन घर को जस का तस बंद छोड़कर चले गए थे।

इस मकान को भी खुलवाकर एसआईटी ने फॉरेंसिक टीम के साथ जनवरी 2021 में जांच की थी। मृतकों के परिजनों ने पुलिस को बताया कि दंगों के बाद से ही वो कमरा बंद है, जहां दोनों की बेरहमी से हत्या की गई थी। फर्श भी साफ नहीं किया गया था।

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