May 20, 2024 : 7:18 PM
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भास्कर इंटरव्यू:अभी अर्थव्यवस्था में डिमांड बढ़ानी है तो लोगों की जेब में पैसे डालने होंगे, सरकार इसके लिए नए नोट छापे; महंगाई की चिंता न करे

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नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: स्कन्द विवेक धर

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नोबेल से सम्मानित अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी मानते हैं हर व्यक्ति को आर्थिक सुरक्षा गारंटी की जरूरत। - Dainik Bhaskar

नोबेल से सम्मानित अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी मानते हैं हर व्यक्ति को आर्थिक सुरक्षा गारंटी की जरूरत।

वर्तमान केंद्र सरकार महंगाई से बहुत डरती है। लेकिन ये वक्त महंगाई की चिंता करने का नहीं है। महंगाई बढ़ने से लोगों की जेब में पैसा भी आता है। सरकार को इस समय मांग में आई कमी को दूर करने के लिए नए नोट छापकर अर्थव्यवस्था में लिक्विडिटी बढ़ानी चाहिए।

अमेरिका, यूरोप के देश ये काम कर रहे हैं। अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार जीत चुके अर्थशास्त्री और अमेरिका की एमआईटी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अभिजीत बनर्जी ने दैनिक भास्कर के साथ खास बातचीत में यह राय जाहिर की। पेश है बातचीत के अंश…

कोविड की दूसरी लहर से भारत बाहर निकल रहा है। आप सबसे बड़ी आर्थिक चुनौती क्या देखते हैं?

सबसे बड़ी चुनौती तो महामारी को नियंत्रण में लाना है। क्योंकि इकोनॉमी के लिए हम लोग बहुत ज्यादा कुछ कर नहीं सकते हैं। लोगों के मन में लॉकडाउन की आशंका रही तो वे अपने आप डर जाते हैं और कुछ डिफेंसिव एक्शन लेने लगते हैं। मेरे ख्याल से इसमें कुछ किया नहीं जा सकता है।

अभी किया ये जाना चाहिए कि ऐसे गरीब लोग जिनके पास खाने को नहीं है और जिनकी रोजमर्रा की जरूरत पूरी नहीं हो पा रही है, उनकी देखभाल सुनिश्चित की जाए। गारंटी हाे कि सबको कुछ न कुछ मिल जाएगा, तो लोग कम डरेंगे। लोग कम डरेंगे तो उनके पास जो पैसे हैं उसे खर्च करेंगे। मेरा सुझाव है कि कम से कम इस साल के लिए मनरेगा गारंटी को 100 दिन से बढ़ाकर 150 दिन कर दिया जाए। इससे ग्रामीण आबादी में आजीविका को लेकर भरोसा बढ़ेगा।

शहरी आबादी के लिए क्या किया जाए?

अभी की परिस्थिति में अर्बन नरेगा असंभव है। आर्थिक संकट के दाैर में ऐसी नई योजना शुरू नहीं की जा सकती। इनमें समय लगता है। मनरेगा एक बहुत जटिल स्कीम थी, जब ये शुरू हुई तो उसमें भी बहुत समस्याएं थीं, भ्रष्टाचार था। अब जाकर यह ठीक हुई है।

कोई नई योजना शुरू करने से बेहतर है कि पीडीएस जैसी योजनाएं जो पहले से चल रही हों, उनके जरिए गरीबों तक राहत पहुंचाई जाए। तमिलनाडु में पीडीएस के जरिए गरीबों को कैश ट्रांसफर किया जा रहा है। ये एक अच्छा कदम है।

कौन से राज्य अच्छे कदम उठा रहे हैं?

मैंने तमिलनाडु का नाम लिया, इसी तरह, पश्चिम बंगाल ने वेंडर्स को टीकाकरण में प्राथमिकता दी है। इससे वे काम जल्दी शुरू करेंगे और उनसे संक्रमण का खतरा कम होगा। मेरा अनुभव है कि राज्यों में ज्यादा अच्छा काम हो रहा है।

पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने सरकार को नए नोट छापने की सलाह दी है। क्या आप सहमत हैं? यदि हां, तो सरकार ऐसा क्यों नहीं कर रही है?

बिल्कुल, मैं तो खुद कई बार सरकार को ये सलाह दे चुका हूं। देश में 2016 से ही मांग में कमी आ रही है। मांग बढ़ाना है तो नए नोट छापने हाेंगे। भारत सरकार के ऐसा न करने के दो कारण लगते हैं-पहला तो ये कि सरकार महंगाई से बहुत डरती है।

राजनीतिक रूप से महंगाई बहुत अलोकप्रिय होती है। लेकिन अर्थव्यवस्था की दृष्टि से थोड़ी महंगाई भारत जैसे देश के लिए फायदेमंद है। अमेरिका व यूरोप के देशों में सरकारें खुलेआम नए करंसी नोट छाप रही हैं। वहां अब तक कोई खास क्राइसिस नहीं हुआ।

दूसरी वजह- हम बॉन्ड रेटिंग एजेंसी से बहुत डरे रहते हैं। लेकिन इस बार स्टैंडर्ड एंड पूअर्स ने भी बोला कि हमें ज्यादा खर्च करना चाहिए। ज्यादातर बैंक महंगाई को लेकर बड़े चिंतित रहते हैं। महंगाई से बॉन्ड यील्ड में कमी से इनका नुकसान होता है। इससे क्रेडिट रेटिंग घटने का खतरा रहता है।

अपनी सुविधा से रेटिंग देती हैं एजेंसियां, हमें परेशान नहीं होना चाहिए

एसएंडपी, फिच, क्रिसिल जैसी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की रेटिंग पर कितना ध्यान देने की जरूरत है?

ये लोग हर दो तीन महीने में अनुमान घटाते-बढ़ाते रहते हैं। मुझे इसके बारे में कुछ खास पता नहीं है, लेकिन ये लोग बहुत दुस्साहसी लगते हैं। क्योंकि ये अनुमान कुछ लगाते हैं और ग्रोथ कहीं और चली जाती है। और ये फिर भी अनुमान लगाते रहते हैं। मुझे ये व्यर्थ की कवायद लगती है। कई एजेंसियां खुद बॉन्ड का बिजनेस करती हैं। अपनी सहूलियत के हिसाब से रेटिंग देती हैं। मुझे इन पर बिल्कुल भरोसा नहीं है। भारत सरकार को रेटिंग से परेशान होने की जरूरत नहीं है।

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