- डीन कमेटी ने उनके स्टाइपेंड निर्धारित करने से संबंधित फाइल को किया पास
दैनिक भास्कर
Jun 16, 2020, 04:00 AM IST
नई दिल्ली. देश के सबसे बड़े अस्पताल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के फॉरेन नेशनल रेसिडेंट डॉक्टर्स के लिए सोमवार को अच्छी खबर आई है। अब फॉरेन नेशनल रेसिडेंट डॉक्टर्स को भी बतौर मेहनताना एक फिक्स्ड स्टाइपेंड देने का रास्ता अब साफ होता दिख रहा है। सोमवार को डीन कमेटी ने फॉरेन नेशनल रेसिडेंट डॉक्टर्स के स्टाइपेंड निर्धारित करने से संबंधित फाइल को पास कर दिया है।
डीन के द्वारा इस फाइल पर मोहर लगने के बाद अब यह फाइल मंजूरी के लिए स्टाफ काउंसिल के पास गई है। इसके बाद यह फाइल काउंसिल कमेटी से होते हुए गवर्निंग बॉडी तक पहुंचेगी। यहां से फाइल पास होते ही फॉरेन नेशनल रेसिडेंट डॉक्टर्स का स्टाइपेंड शुरू हो जाएगा। एम्स प्रशासन के अनुसार यह अगले तीन महीने के भीतर सारी औपचारिकताएं पूरी कर ली जाएगी।
फॉरेन नेशनल रेसिडेंट डॉक्टर्स को नहीं मिलता था स्टाइपेंड
फॉरेन नेशनल रेसिडेंट डॉक्टरों के अनुसार इससे पहले एम्स के फॉरेन नेशनल रेसिडेंट डॉक्टर्स का स्टाइपेंड नहीं मिलता था, वे शोषण के शिकार हो रहे थे। उन्होंने बताया कि कि जब कि वो वही काम करते हैं जो एम्स में पोस्ट ग्रेजुएट वाले छात्र करते है, पर उन्हें एम्स के तरफ से प्रति माह 70-80 हजार रुपए मिलते हैं मेहनताना दिया जा रहा है। जबकि यहां पर जूनियर व सीनियर रेसिडेंट के तौर पर काम करने वाले फॉरेन विदेशी नागरिकों को मेहनताना के तौर पर एम्स द्वारा कुछ नहीं दिया जा रहा है। अस्पताल में काम करने वाली एक नेपाल के रहने वाले डॉक्टर के अनुसार उन्हें एम्स में दूसरे भारतीय समकक्ष की तरह ही काम करते हैं, उन्हें भी कभी-कभी 24 घंटे तक लगातार ड्यूटी करनी पड़ती है।
एम्स में हैं बड़ी संख्या में विदेशी छात्र
एम्स में लगभग 70 विदेशी नागरिक हैं। जो अलग-अलग मेडिकल स्पेशलाइजेशन कोर्स में दाखिला लिए हैं। ये पढ़ाई के साथ-साथ एम्स में जूनियर और सीनियर रेसिडेंट के तौर पर काम भी करते हैं। पर इससे पहले इन्हें इस काम के बदले उन्हें अपने भारतीय समकक्ष की तरह सैलरी या स्टाइपेंड नहीं मिलती है।
नेपाल का एक मेडिकल छात्र डॉ. यू हक ने बताया कि अब वो खुश है कि उन्हें भी स्टाइपेंड मिलेगी। उन्होंने बताया कि नेपाल में भारत के एम्स का बहुत क्रेज है। यहां डॉक्टरी की पढ़ाई की चाह छात्रों का सपना होता है इसके लिए वे कठिन एंट्रेंस परीक्षा पास कर यहां आते हैं। साथ ही पढ़ाई करने के लिए बैंकों से लोन भी लेना पड़ता है। उन्होंने बताया कि एम्स के नाम पर वहां बैंक भी लोन देने को हमेशा तैयार रहते हैं। डा. यू हक ने बताया कि हमें कोविड ड्यूटी पर लगाया गया है। यह ऐसा दौर है कि हम घर से भी पैसे नही मंगा सकते हैं।