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सर्वाइकल कैंसरः भारतीय महिलाओं को होने वाला दूसरा बड़ा कैंसर

सांकेतिक तस्वीर

राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा ज़िले में रहने वाली अंजू शर्मा (बदला हुआ नाम) जब अपने पति से संबंध बनाती तो उन्हें कभी कभार हल्की ब्लीडिंग होने लगती थी.

38 साल की अंजू  कहती हैं, ”ऐसा नहीं था कि हर बार संबंध बनाते वक्त ब्लीडिंग होती थी लेकिन एक दो महीने में हल्का सा ख़ून दिखाई देता था. मुझे लगता था शायद संबंध बनाने से हुआ होगा या महीना आने वाला होगा. मैंने आयुर्वेद की दवा खाई लेकिन कुछ असर नहीं हुआ.”

वो आगे बताती हैं कि साल 2020 से उन्हें स्वास्थ्य से संबंधित ये शिकायत हो रही थी. साल बीता और इत्तेफ़ाक़ ही था कि महिला दिवस के दिन यानी आठ मार्च उनके घर के पास सरकारी मेडिकल कैंप लगा हुआ था.अंजू वहां पहुंची और वहां मौजूद डॉक्टर ने उनकी जांच की. डॉक्टरों ने उनके सैंपल भी लिए. तीन दिन बाद नोएडा के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च (एनआईसीपीआर) से उन्हें फ़ोन आया.उनके अनुसार, ”अस्पताल से फ़ोन आया तो मैं डर गई और मैंने पूछा कि कोई बड़ी बात है? उनका कहना था कोई बड़ी बात नहीं है, आपको सर्वाइकल कैंसर हो सकता है तो आप एक बार आकर फिर से जांच करवाएं.”

पता चला सर्वाइकल कैंसर हैं’

अंजू बताती हैं कि उनका पेपस्मीयर टेस्ट किया गया और उन्हें पता चला कि उनका सर्वाइकल कैंसर है जो अभी पहले स्टेज में है.

अंजू की दो सर्जरी हो चुकी हैं और उनकी बच्चेदानी निकाली जा चुकी है. डॉक्टरों का कहना है वे ठीक हो चुकी हैं लेकिन उन्हें हर तीन महीने में पेपस्मीयर की नियमित जांच करवानी होगी.

सर्वाइकल कैंसर का नाम अंजू ने कभी नहीं सुना था लेकिन वे मानती हैं कि उन्हें इस बीमारी के बारे में समय रहते पता चल गया.

डॉ स्वस्ति के अनुसार उनके पास 50 साल के ऊपर की ऐसी कई महिलाएं आती हैं जो ब्लीडिंग, ब्रेस्ट से डिस्चार्ज यानी स्तन से पानी निकलने या सफ़ेद पानी (व्हाइट डिस्चार्ज) जैसी दिक्कतों को किसी से साझा नहीं करतीं. वे सालों तक इस समस्याओं के प्रति लापरवाह रहती हैं या शर्म के मारे नहीं बताती है. जब समस्या बढ़ जाती है तब वे डॉक्टर के पास आती हैं और उसका नतीजा ये होता है कि उनका कैंसर एडवांस स्टेज पर पहुंच जाता है.

एडवांस स्टेज में आती हैं महिलाएं

डॉक्टर स्वस्ति, एक निजी अस्पताल, मैक्स सुपर स्पेशलिटी में स्त्री और कैंसर रोग विशेषज्ञ हैं.

डॉ. स्वस्ति कहती हैं, ”भारत की महिलाओं में सबसे ज्यादा ब्रेस्ट कैंसर के मामले पाए जाए हैं और सर्विक्स या गर्भाशयग्रीवा में होने वाला ये सर्वाइकल कैंसर दूसरे स्थान पर है और इस बीमारी से पीड़ित अधिकतर महिलाएं एडवांस स्टेज में डॉक्टर के पास आती हैं ऐसे में सर्वाइकल कैंसर से होने वाली मौत का आंकड़ा भी बढ़ जाता है.

यौन संबंध से फैलता है वाइरस

डॉक्टर सरिता श्यामसुंदर दिल्ली स्थित वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज में स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं और सर्वाइकल कैंसर पर काम कर रही हैं.

वे बताती हैं कि भारत में एक लाख महिलाओं में से 20 महिलाओं में इस कैंसर के मामले सामने आते हैं.

डॉक्टर सरिता कहती हैं, ”इस कैंसर का कारण वायरस होता है जिसे ह्यूमन पेपिलोमा वायरस कहते हैं जो यौन संबंधों के कारण शरीर में प्रवेश करता है. और अगर बार-बार कोई इस वायरस से संक्रमित होता है तो बाद में जाकर ये सर्वाइकल कैंसर का रूप ले लेता है.”

विश्व स्वास्थ्य संगठन या डब्लयूएचओ के मुताबिक सर्वाइकल कैंसर के 95 फ़ीसद से ज्यादा मामलों का कारण ह्यूमन पेपिलोमा वायरस या एचपीवी होता है.

डॉ स्वस्ति सर्वाइकल कैंसर पर ग्लोबोकेन द्वारा जारी किए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए कहती हैं कि साल 2018 में पूरे भारत से एक साल में सर्वाइकल कैंसर के एक लाख मामले सामने आए और 60-62 हज़ार महिलाओं की मौत हुई थी.

ग्लोबोकेन दरअसल दुनियाभर में कैंसर के मामलों और उससे होने वाली मौतों के आंकड़े रखता है.

वे बीबीसी से बताती हैं कि उनके पास एक महीने में पांच से सात मामले सर्वाइकल कैंसर के आते हैं. इसमें से ज्यादातर महिलाओं की उम्र 45-50 साल से ऊपर होती है.

सर्वाइकल कैंसर के लक्षण

शुरुआत में कोई लक्षण नहीं होते लेकिन अगर लक्षण दिखते हैं तो इन्हें नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए. प्रमुख लक्षणः-

  • माहवारी के अतिरिक्त असामान्य रक्तस्राव (ब्लड स्पॉटिंग) या हल्का रक्तस्राव
  • मैनोपोज़ के बाद स्पॉटिंग या रक्तस्राव
  • यौन संबंध बनाने के बाद रक्तस्राव
  • बार-बार वजाइनल इन्फेक्शन या संक्रमण
  • बार-बार यूरिन इन्फेक्शन, जलन होना
  • सफ़ेद पानी या वजाइनल डिसचार्ज, कभी कभार बदबू देने वाला हो
  • और अगर सर्वाइकल कैंसर एडवांस स्टेज पर पहुंचता है तो ज्यादा गंभीर लक्षण दिखाई देने लगते हैं जैसे लगातार कमर, पैरों या पेल्विक (पेड़ू) में दर्द
  • वज़न कम होना, थकान और भूख ना लगना
  • बदबूदार सफेद पानी आना और वजाइना में असहज महसूस करना
  • पैरों में सूजन
  • हड्डियों में दर्द

    साल 2008 में एचपीवी वैक्सीन को स्वीकृति मिली थी लेकिन इसे राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान का हिस्सा नहीं बनाया गया है. ऐसे में इसकी कीमत के कारण भी ये वैक्सीन या टीका लड़कियों की एक बड़ी आबादी की पहुंच से दूर है.

    हालांकि कुछ राज्यों जैसे दिल्ली, सिक्किम और पंजाब में सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत स्कूल जाने वाली लड़कियों को एचपीवी के टीके देने का प्रावधान शुरू किया गया है.

    डॉ स्वस्ति और सरिता कहती हैं, ”ये टीका भारत में अभी 9 से 26 साल की लड़कियों के लिए है और इससे कैंसर से 70 फ़ीसद रोकथाम हो सकती है. लेकिन बचा हुआ 30 प्रतिशत कैसे पूरा होगा इसके लिए हर पांच साल में स्क्रीनिंग होनी चाहिए.”

    अगर लड़की नौ से 15 साल की है तो उसे एचपीवी के दो टीके दिए जाएंगे और 15 साल के बाद टीका लगता है तो लड़की को टीके के तीन डोज लगेंगे. ये टीके एक नियमित अंतराल पर दिए जाएंगे.

    डॉक्टर स्वस्ति के अनुसार, ”11-13 साल में सेक्शुएल एक्टिवीटी शुरू नहीं हुई होती है. साथ ही इस उम्र में रोग प्रतिरोधक क्षमता या इम्यूनीटि सिस्टम विकसित हो रहा होता है तो इससे एंटीबॉडी और मजबूत हो जाती हैं. और ये टीका लड़कों को भी दिया जाना चाहिए.”

    हर महिला को हर पांच साल में पेपस्मीयर और एचपीवी टेस्ट करवाना चाहिए. अगर किसी महिला की सेक्शुएल एक्टिविटी शुरू हो जाती है तो ऐसे में उन्हें इस एक्टिवीटी के दो साल बाद ये जांच करवाना शुरू कर देना चाहिए चाहे वो शादीशुदा हो या न हो.

    एक मेडिकल वेबसाइट बॉयो मेड सेंट्रल या बीएमसी के अनुसार अनुसार कई देशों कनाडा, यूके, आयरलैंड, इटली और फ्रांस कुछ ऐसे देश हैं जहां सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं हर तीन साल में 25-65 उम्र की सेक्शुएली एक्टिव महिलाओं में पेपस्मीयर टेस्ट की सिफारिश करते हैं. इस वेबसाइट पर मेडिकल, विज्ञान या तकनीक के क्षेत्र में हुए शोध प्रकाशित किए जाते हैं.

    डॉक्टर मानते हैं कि अगर अर्ली स्टेज या शुरुआती चरण में ही कैंसर का पता चल जाता है तो कैंसर पूरी तरह से ठीक हो सकता है और इसमें 95 से 97 प्रतिशत सर्वाइवल रेट यानी जीवित रह सकने की दर होती है.

    विश्व स्वास्थ्य संगठन जहां सर्वाइकल कैंसर को ख़त्म करने और जागरूकता लाने की दिशा में काम कर रहा है.

    वहीं डॉक्टर सरिता भी मानती हैं कि लोगों में सर्कवाइल कैंसर के प्रति जागरूकता आ रही है. और प्राथमिक केंद्रों में भी इसकी जाँच शुरू हो गई है.

    डॉक्टरों का कहना है कि अगर जांच समय पर होती रहे और लड़कियों का टीकाकरण समय से हो तो इस कैंसर से शत प्रतिशत बचा जा सकता है.

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