उज्जैन नगर निगम का ड्रेनेज घोटाला रोज नए राज उगल रहा है। नगर निगम की विभागीय जांच पूरी हो चुकी है, जिसमें खुलासा हुआ है कि दस साल में आरोपी पांच ठेकादारों और अफसरों ने 188 से ज्यादा फाइलों में फर्जीवाड़ा किया। 107 करोड़ के फर्जी बिल निगम के लेखा विभाग में लगाए जा चुके थे। आंख मूंदे बैठे लेखा विभाग ने 81 करोड़ का भुगतान भी कर दिया।
जमीनों और प्लाॅटों में करते थे निवेश
पुलिस अफसर जांच में पता लगा रहे हैं कि घोटाले का पैसा आरोपी कहां लगाते थे। घोटाले का मुख्य कर्ता धर्ता नगर निगम का इंजीनियर अभय राठौर था। लेखा विभाग के कर्मचारियों के साथ वह फर्जी बिल लगाता था और घोटाले का 50 प्रतिशत हिस्सा खुद रखता था और बाकी ठेकेदार व मदद करने वाले अन्य अफसरों में बंटता था।
न कामों के टेंडर निकले, न काम हुए, बस भुगतान होता रहा
आरोपियों ने फर्जी फाइलें बनाकर जमकर नगर निगम का खजाना लूटा, जिन फाइलों को जांच में लिया, उनमें से अधिकांश में जिन कामों की एवज में ठेकेदारों ने नगर निगम से पैसा लिया। उन कामों के टेंडर ही कभी नहीं हुए और न ही मौके पर काम हुए। बस नगर निगम के खजाने से पैसा जारी होता रहा।
28 करोड़ के फर्जी बिलों से मिला घोटाले का सुराग
बिलों के भुगतान की मंजूरी के लिए आई 28 करोड़ की फाइलों को लेकर लेखा विभाग के अफसरों को शंका हुई थी। इसके बाद तत्कालीन निगमायुक्त हर्षिका सिंह ने उनकी जांच के आदेश दिए थे। लेकिन उनके तबादले के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। जब नगर निगम के अधीक्षक यंत्री सुनील गुप्ता की कार से घोटाले की फाइल चोरी हुई तो उन्होंने थाने में शिकायत की। प्रारंभिक रूप से शुरुआती तौर पर 28 करोड़ के घोटाले की शिकायत एमजी रोड थाने में हुई थी। लेकिन जब जांच कर रहे अफसर इसकी गहराई में घुसे तो घोटाले की राशि 107 करोड़ रुपये तक जा पहुंची।