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कानपुर9 घंटे पहले
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बाढ़ का पानी कम होते ही गांवों में दिखने लगी बर्बादी।
कानपुर में यमुना ने 39 साल बाद अपना रौद्र रूप दिखाया है। 1982 के बाद ये पहली बार है जब कानपुर के घाटमपुर तहसीर के गड़ाथा, अमरतेरपुर, कटरी, मोहटा समेत कई गांवों में 12 फीट तक पानी चढ़ा। अब तक हर तरफ सिर्फ पानी ही पानी नजर आता था और अब 8 दिन बाद जब पानी घटने लगा है तो बर्बादी नजर आने लगी है। 15 हजार बीघा से ज्यादा की फसल बर्बाद हो चुकी है। गांवों में अब बीमारी फैलने का डर सताने लगा है। चारों तरफ कीचड़ और सड़ांध होने लगी है। दैनिक भास्कर ने ग्राउंड पर जाकर इसका जायजा लिया। पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
फोटो गड़ाथा गांव की है। यहां अब भी खेतों में 2 फीट तक भरा हुआ है पानी।
हर तरफ फैली है बदबू
15 हजार बीघा से ज्यादा फसल बर्बाद हो चुकी है। गांवों में मातम जैसा माहौल है। दर्जनों मकान गिर गए हैं। हर तरफ कीचड़ हैं। जानवर लापता हैं। अनाज घरों में सड़ने लगा है। गांव में बाढ़ के बाद इस कदर दुर्गंध है कि खड़ा होना भी मुश्किल है। ग्रामीणों ने बताया कि रात में अचानक पानी चढ़ने लगा, जितना अनाज निकाल पाये उतना निकाल लिया। बाकी भींगकर सड़ रहा है। बीमारियां गांव के द्वार पर खड़ी हैं और सरकारी मदद कोसों दूर हैं।
बाढ़ में गांवों की ओर जाने वाले रास्ते पेड़ गिरने से हो गए हैं बंद।
फूट पड़ा ग्रामीणों का गुस्सा
बाढ़ग्रस्त क्षेत्र के सबसे बड़े और प्रभावित गांव गड़ाथा में जब दैनिक भास्कर की टीम ने ग्रामीणों से हालात और सरकारी इंतजामों के बारे में पूछा तो ग्रामीणों का गुस्सा फट पड़ा। गांव के बुजुर्ग श्रीपाल सिंह ने बताया कि फसल बर्बाद हो गई, घर गिर गया, गांव की छत पर रहकर गुजर-बसर कर रहे। सरकारी सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं मिला। रामकुमार तिवारी ने बताया कि बाढ़ के बाद सबसे ज्यादा स्वास्थ्य विभाग की जरूरत होती है। टीमें आती हैं लेकिन 1 किमी. अजगरपुर में बैठी रहती है। गांव में आज तक नहीं आई।
बाढ़ में टेंपो तक बर्बाद हो गई।
3 साल बाद भी नहीं मिला मुआवजा
ग्रामीण रघुनाथ सिंह ने बताया कि 2018 में भी बाढ़ आई थी, 15 बीघा फसल नष्ट हो गई थी। लेखपाल ने सर्वे कर रिपोर्ट तैयार की, लेकिन आज तक मुआवजा नहीं मिला। शिवपाल की 13 बीघा, मुन्ना सिंह की 4.50 बीघा और शुभम सिंह की 40 बीघा जमीन की फसलें नष्ट हो गई थी। शुभम और अन्य ग्रामीणों की फसल भी पूरी तरह नष्ट हो गई है। ग्रामीणों ने बताया कि 2018 का मुआवजे का एक रुपया भी आज तक नहीं मिला।
बाढ़ की चपेट में गांवों के दर्जनों मकान टूट गए और रहने लायक तक नहीं बचे।
39 साल बाद आई ऐसी बाढ़
गांव के रामकुमार ने बताया कि 1982 में ऐसी बाढ़ देखी थी। इस बार उससे भी ज्यादा भयावह बाढ़ देखी। 3 साल पहले भी बाढ़ आई थी, लेकिन इतने बुरे हालात नहीं थे। अब पानी उतरने लगा है, लेकिन बाढ़ का खतरा अब भी टला नहीं है। जानवरों के लिए चारा और इंसान के लिए दाना दोनों ही नहीं है। रिश्तेदारों के यहां अनाज मंगाकर खा रहे हैं। गांव में अब बीमारी फैलने का खतरा मंडराने लगा है।
पानी उतरने के बाद घरों में कीचड़ और गंदगी के अलावा कुछ भी नहीं बचा।
8 दिनों से नहीं है बिजली
ग्रामीण राकेश सिंह ने बताया कि बाढ़ के बाद से अभी तक लाइट नहीं आई है। रात में पूरे गांव में दिये से रोशनी कर काम चलाना पड़ रहा है। मोबाइल तक बंद हो चुके हैं। गांव में बाढ़ के बाद से सांप बहुत हो गए हैं। उनका भी डर सताता रहता है। रात में घर का कोई सदस्य जागता है कि रात में बाढ़ का पानी न चढ़ने लग जाए।
गांव को जोड़ने वाली रोड भी धंसने लगी है।
खाने के लाले पड़ गए हैं
ग्रामीण संतोष ने बताया कि उड़द, अरहर, मूंग, तिली, बाजरा और धान की फसल प्रमुखता से होती है। बाढ़ से पूरी फसल ही नष्ट हो गई। बैंक का कर्ज है। अब कैसे जिंदगी चलेगी, नहीं जानते हैं। वहीं गांव में जहां तक पानी चढ़ा था, वहां हरियाली भी पूरी तरह नष्ट हो गई है। वहीं गांव में कोई भी गाड़ी रुकती है तो उसकी तरफ दौड़ पड़ते हैं कोई अधिकारी आया होगा और उनकी बात सुनेगा और उनकी पहाड़ जैसी समस्याओं का हल कराएगा।