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- Changes In The Monkey’s Genome For Human like Anatomy, Neuro weapons And Better Software Can Be Made Due To The Ongoing Research On Monkeys.
5 घंटे पहले
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एक्टिविस्ट का कहना है कि किसी भी जानवर का रिसर्च में इस्तेमाल नहीं होना चाहिए क्योंकि वे स्वयं सहमति नहीं दे सकते हैं।
यूरोप और अमेरिका में पिछले पांच वर्ष में बंदरों पर रिसर्च ठहर गई है या कम हो गई है। उधर पूर्व एशियाई देश खासकर चीन और जापान इस मामले में आगे बढ़े हैं। शंघाई न्यूरोसाइंस इंस्टीट्यूट का फोकस ऐसे बंदरों की पैदाइश पर है जिनके जीनोम को मानवों जैसी शारीरिक रचना बनाने के लिए बदल दिया गया है। इससे मनुष्यों की कई बीमारियों के अध्ययन में मदद मिलेगी।
मेडिकल प्रयोगों में जानवरों खासतौर से बंदरों के उपयोग का विरोध करने वाले एक्टिविस्ट का कहना है कि किसी भी जानवर का रिसर्च में इस्तेमाल नहीं होना चाहिए क्योंकि वे स्वयं सहमति नहीं दे सकते हैं। इसलिए अमेरिका, यूरोप में बंदरों पर रिसर्च धीमी पड़ गई है। वहीं विस्कांसिन मेडिसन यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञानी एलिसन बेनेट कहती हैं कि बंदरों के बिना कृत्रिम अंग-प्रोस्थेटिक लिंब का निर्माण असंभव था।
बंदरों पर रिसर्च जरूरी मानते हैं कई शोधकर्ता
कई शोधकर्ता बंदरों पर रिसर्च जरूरी मानते हैं। विश्व में दिल की बीमारियों के बाद मानसिक और न्यूरोलॉजिकल बीमारियां मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण हैं। बंदरों के दिमाग को पढ़कर अल्जाइमर, डिमेंशिया, पार्किसंस जैसी बीमारियों का इलाज हो सकेगा।
टेक्नोलॉजी कंपनियों को उम्मीद है कि दिमाग को बेहतर तरीके से समझने पर चतुर और चालाक सॉफ्टवेयर बनाए जा सकेंगे। फौजी जनरल सोचते हैं कि न्यूरोसाइंस अच्छे हथियार बनाने में मददगार साबित होगा।
अमेरिका, यूरोप को पीछे छोड़ा
कई विशेषज्ञ सोचते हैं, चीन को ब्रेन साइंस में आगे निकलने देना सामरिक तौर पर मूर्खतापूर्ण होगा। शंघाई में चीनी न्यूरोसाइंस लेबोरेटरी में जर्मनी के एक प्रमुख साइंटिस्ट निकोस लोगोथेटिक्स बंदरों के दिमाग की रिसर्च में जुटे हैं। वे और उनकी टीम दिमाग तक पहुंचकर उसमें बदलाव करने के नए तरीकों की खोज में लगे हैं। जाहिर है, इस रिसर्च का फायदा सबसे पहले चीन को मिलेगा।