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UP में ब्राह्मण क्यों हैं जरूरी?:मायावती ने 14 साल बाद क्यों खेला ब्राह्मण कार्ड? BJP, सपा और कांग्रेस ने भी बनाई प्लानिंग; 10 पॉइंट में समझें हर पार्टी की रणनीति

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  • Role Of Brahmin Voters In Uttar Pradesh, BSP,BJP,SP And Congress Target Brahmin Voters; Why Did Mayawati Play The Brahmin Card After 13 Years? BJP, SP And Congress Also Made Planning; Understand In 10 Points

लखनऊएक घंटा पहलेलेखक: आदित्य तिवारी

अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसे जीतने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां हर तरह का हथकंडा अपनाने में जुटी हैं। कोई धर्म के नाम पर तो कोई जाति के नाम पर वोट मांग रहा है। मायावती को भी 14 साल बाद ब्राह्मणों की याद आई है। सबसे पहले 2007 में मायावती ने ब्राह्मण-दलित की सोशल इंजीनियरिंग की थी। तब ब्राह्मणों ने दिल खोलकर मायावती को वोट दिया और वह मुख्यमंत्री की कुर्सी तक भी पहुंच गईं।

यूपी की सियासत में ये दूसरी बार था जब ब्राह्मणों ने परंपरागत पार्टी कांग्रेस और BJP को छोड़कर किसी दूसरी पार्टी को एकजुट होकर वोट दिया हो। इससे पहले जनेश्वर मिश्र के रहते बड़ी संख्या में ब्राह्मण समाजवादी पार्टी से भी जुड़े थे। 10 पॉइंट में समझें उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण क्यों जरूरी हैं? मायावती ने क्यों 14 साल बाद ब्राह्मण कार्ड खेला और अब BJP, सपा और कांग्रेस की क्या प्लानिंग है?

1. यूपी में ब्राह्मण क्यों जरूरी?
यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों का वर्चस्व हमेशा से रहा है। आबादी के लिहाज से प्रदेश में लगभग 13% ब्राह्मण हैं। कई विधानसभा सीटों पर तो 20% से ज्यादा वोटर्स ब्राह्मण हैं। ऐसे में हर पार्टी की नजर इस वोट बैंक पर टिकी है। बलरामपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर, प्रयागराज में ब्राह्मणों वोट 15% से ज्यादा हैं। यहां उम्मीदवार की हार-जीत में ब्राह्मण वोटर्स की अहम भूमिका होती है। 2017 में 56 सीटों पर ब्राह्मण उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी। इनमें 44 BJP के थे।
2. 14 साल बाद मायावती को क्यों ब्राह्मण याद आए?

2007 में मायावती की अगुआई में BSP ने ब्राह्मण+दलित+मुस्लिम समीकरण पर चुनाव लड़ा तो उनकी सरकार बन गई। बसपा ने इस चुनाव में 86 टिकट ब्राह्मणों को दिए थे। तब मायावती को ब्राह्मणों ने दिल खोलकर वोट दिया था। इसके दो कारण थे। पहला ये कि मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग का कॉन्सेप्ट रखा था और दूसरा ब्राह्मण समाजवादी पार्टी से नाराज थे। उस दौरान सपा के विकल्प में बसपा ही सबसे मजबूत पार्टी थी। कांग्रेस और BJP की स्थिति ठीक नहीं थी। अब 2022 के चुनाव के लिए BSP की प्लानिंग है कि वह करीब 100 ब्राह्मणों और मुस्लिमों के अलावा अन्य जाति के उम्मीदवारों को टिकट दें।
3. BJP से ब्राह्मण क्यों नाराज हैं?
यूपी में पिछले 3 साल से ब्राह्मण BJP से नाराज बताए जा रहे हैं। इसके पीछे कई तर्क दिए जा रहे हैं। सबसे पहला कि योगी मंत्रिमंडल में ब्राह्मणों को सही तरजीह नहीं दी गई। 56 मंत्रियों के मंत्रिमंडल में 8 ब्राह्मणों को जगह दी गई, लेकिन दिनेश शर्मा और श्रीकांत शर्मा को छोड़ किसी को अहम विभाग नहीं दिए गए। 8 क्षत्रिय को भी मंत्री बनाया गया और उन्हें ब्राह्मणों से बेहतर विभाग दिए गए।

यूपी में लगातार हुए एनकाउंटर में ज्यादातर ब्राह्मण ही मारे गए। इसे विपक्ष ने ब्राह्मण विरोधी का तमगा देकर प्रचारित किया। अफसरों की नियुक्ति में भी योगी सरकार पर ब्राह्मणों से भेदभाव करने के आरोप लगते आए हैं। BJP के कार्यकाल में सबसे ज्यादा SC-ST मुकदमे भी ब्राह्मणों पर ही दर्ज हुए हैं।
4. सपा और कांग्रेस ने कैसा समीकरण बनाया है?
अगले साल होने वाले चुनाव के लिए सपा की नजर यादव+ कुर्मी+ मुस्लिम+ ब्राह्मण समीकरण पर है। इसी तरह कांग्रेस ब्राह्मण+ दलित+मुस्लिम और ओबीसी का वो तबका जो भाजपा, सपा के साथ नहीं उसे अपनी ओर खींचने में जुटा है। बताया जाता है कि दोनों पार्टियां इस पर तेजी से काम कर रही हैं।

5. BSP ने अभी तक क्या किया?

2007 में सतीश चंद्र मिश्र ने ही ब्राह्मणों को BSP से जोड़ा था।

2007 में सतीश चंद्र मिश्र ने ही ब्राह्मणों को BSP से जोड़ा था।

बसपा प्रमुख मायावती ने पार्टी से ब्राह्मणों को जोड़ने का जिम्मा राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद सतीश चंद्र मिश्र को दिया है। मिश्र कोरोनावायरस की लहर से पहले प्रदेश में 40 से ज्यादा सभाएं कर चुके हैं। पार्टी के सूत्रों ने बताया कि मंडलवार और जिलों को मिलाकर यह ब्राह्मणों के दबदबे वाली विधानसभा सीटें हैं।

6. सपा-बसपा में मूर्ति लगाने की होड़
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पार्टी के तीन ब्राह्मण नेता- अभिषेक मिश्र, मनोज पांडे और माता प्रसाद पांडे को ब्राह्मणों को एक करने के लिए लगाया है। अभिषेक मिश्र की ओर से लखनऊ में 108 फीट की परशुराम की प्रतिमा लगाने की घोषणा की गई है।

सपा की इस घोषणा के कुछ घंटे बाद ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि अगर वह 2022 में सत्ता में आएंगी तो भगवान परशुराम की इससे भी ऊंची प्रतिमा लगाएंगी। यही नहीं उन्होंने तो पार्क और अस्पताल के नाम भी परशुराम के नाम पर करने की घोषणा कर दी।

7. कांग्रेस अब प्रमोद तिवारी, ललितेशपति के सहारे

प्रमोद तिवारी की पकड़ प्रतापगढ़ और प्रयागराज के आस-पास की सीटों पर काफी मजबूत मानी जाती है। इन सीटों पर ब्राह्मण वोटर्स की संख्या काफी अधिक है।

प्रमोद तिवारी की पकड़ प्रतापगढ़ और प्रयागराज के आस-पास की सीटों पर काफी मजबूत मानी जाती है। इन सीटों पर ब्राह्मण वोटर्स की संख्या काफी अधिक है।

ब्राह्मण वोटर्स हमेशा से कांग्रेस का मजबूत स्तंभ माने जाते रहे हैं, लेकिन कई सालों से ये टूटने लगा है। कांग्रेस में अब कम ही ब्राह्मण नेता रह गए हैं। हाल ही में जितिन प्रसाद भी कांग्रेस का दामन छोड़कर BJP में शामिल हो गए हैं। अब कांग्रेस के पास यूपी में प्रमोद तिवारी और मिर्जापुर से ललितेशपति त्रिपाठी दो ऐसे बड़े नेता हैं जिनका ब्राह्मण समाज में काफी सम्मान है। पार्टी ने भी इन्हीं दोनों नेताओं को ब्राह्मण वोटर्स को कांग्रेस से जोड़ने की जिम्मेदारी दी है। कांग्रेसी गांधी परिवार को ही प्रदेश में सबसे बड़े ब्राह्मण के रूप में स्थापित करने में जुटी है।

8. 2009, 2014 में किसके साथ रहे ब्राह्मण?
सेंटर फॉर द स्टडी डेवलपिंग सोसायटी (CSDS) ने अपने एक सर्वे में बताया कि पिछले दो लोकसभा चुनावों में ब्राह्मण किसके साथ नजर आए हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में 31% ब्राह्मणों ने वोट किया था जबकि 2014 में उसके पक्ष में सिर्फ 11% ही रह गए।

2009 में बीजेपी को 53% ब्राह्मणों ने वोट किया। जबकि 2014 में 72% का समर्थन मिला। बीएसपी को इस वर्ग का 2009 में 9% जबकि 2014 में सिर्फ 5% वोट मिला। समाजवादी पार्टी इन्हें नहीं रिझा पाई। उसे 2009 और 2014 दोनों लोकसभा चुनाव में पांच-पांच फीसदी ही ब्राह्मण वोट हासिल हुए।

9. यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों की क्या भूमिका रही है?

भाजपा

विधानसभा चुनाव का साल ब्राह्मण उम्मीदवार जीते
1993 17
1996 14
2002 8
2007 3
2012 6
2017 44

समाजवादी पार्टी

विधानसभा चुनाव का साल ब्राह्मण उम्मीदवार जीते
1993 2
1996 3
2002 10
2007 11
2012 21
2017 01

कांग्रेस

विधानसभा चुनाव का साल ब्राह्मण उम्मीदवार जीते
1993 5
1996 4
2002 1
2007 2
2012 3
2017 01

10. रूठे ब्राह्मणों को मनाने के लिए BJP का दांव

BJP से ब्राह्मणों को जोड़े रखने की जिम्मेदारी डॉ. दिनेश शर्मा के पास है।

BJP से ब्राह्मणों को जोड़े रखने की जिम्मेदारी डॉ. दिनेश शर्मा के पास है।

BJP ने भी नाराज चल रहे ब्राह्मणों को मनाने के लिए दांव चल दिया है। कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे जितिन प्रसाद को पार्टी में लाना BJP का पहला कदम माना जा रहा है। अजय मिश्र टेनी को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करना दूसरा सबसे बड़ा कदम है। इसके अलावा पार्टी की कोशिश होगी कि वह डॉ. दिनेश शर्मा, रीता बहुगुणा जोशी की बदौलत ज्यादा से ज्यादा ब्राह्मणों को पार्टी से जोड़े रखे।

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