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स्नान-दान का पर्व: कुंभ संक्रांति आज, रोग और परेशानियों से मुक्ति के लिए की जाती है सूर्य पूजा

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2 घंटे पहले

कॉपी लिंककुंभ संक्रांति के बाद से होता है ऋतु परिवर्तन जिससे प्रकृति में होने लगते हैं सकारात्मक बदलाव

सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को संक्रांति कहते हैं। ऐसा एक साल में 12 बार होता है और हर संक्रांति का अलग महत्व होता है। अलग-अलग वार और नक्षत्र के मुताबिक संक्रांति का फल होता है। सूर्य के कुंभ राशि में आने को कुंभ संक्रांति कहते हैं। आज सूर्य मकर से निकलकर कुंभ में प्रवेश करेगा। 12 फरवरी को रात तकरीबन 9 बजकर 27 मिनट पर सूर्य कुंभ राशि में प्रवेश कर रहा हैं।

काशी के ज्योतिषाचार्य पं गणेश मिश्र बताते हैं कि इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में सूर्य पूजा कर के अर्घ्य देने से शारीरिक परेशानियां दूर होती हैं। परिवार में किसी भी सदस्य पर कोई मुसीबत या रोग नहीं आता। साथ ही भगवान आदित्य के आशीर्वाद से कई तरह के दोष भी दूर हो जाते हैं। इससे प्रतिष्ठा और मान-सम्मान भी बढ़ता है। इस दिन खाद्य वस्तुओं, वस्त्रों और गरीबों को दान देने से दोगुना पुण्य मिलता है।

कुंभ संक्रांति के बाद होते हैं मौसम में बदलावकुंभ संक्रांति को बहुत खास माना गया है। क्योंकि इस समय माघ महीने का शुक्लपक्ष, गुप्त नवरात्र, वसंत पंचमी, रथ सप्तमी और जया एकादशी जैसे खास पर्व आते हैं। इसके बाद पतझड़ की आने की शुरुआत होने लगती है। मौसम में बदलाव आते हैं। फिर मीन और मेष संक्रांति के दौरान वसंत ऋतु और उसके बाद हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है।

कुंभ संक्रांति पर तीर्थ स्नानज्योतिष शास्त्र मे सूर्य को सभी ग्रहों का पिता माना गया है। सूर्य के उत्तरायन और दक्षिणायन होने से ही मौसम और ऋतुएं बदलती हैं। हिन्दू धर्म मे संक्रांति का बहुत ज्यादा महत्व है। इसलिए इसे पर्व कहा जाता है। इस पर्व पर सूर्योदय से पहले नहाना और खासतौर से गंगा स्नान का बहुत महत्व है। ग्रंथों का कहना है कि संक्रांति पर्व पर तीर्थ स्नान करने वाले को ब्रह्म लोक मिलता है। देवी पुराण में कहा गया है कि संक्रांति के दिन जो नहीं नहाता वो बीमारियों से परेशान रहता है। संक्रांति के दिन दान और पुण्य कर्मों की परंपरा सदियों से चली आ रही है।

कुम्भ संक्रांति मुहूर्त: 12 फरवरी, शुक्रवारशुभ मुहूर्त – दोपहर 12:45 से शाम 6:17 तक (5 घंटे 32 मिनट)महापुण्य काल – शाम 4:30 से 6:19 तक (1 घंटा 51 मिनट)

कुंभ संक्रांति का महत्वहिन्दू धर्म में पूर्णिमा अमावस्या और एकादशी तिथि का जितना महत्व है उतना ही महत्व संक्रांति तिथि का भी है। संक्रांति के दिन स्नान ध्यान और दान से देवलोक की प्राप्ति होती है। कुंभ संक्रांति के दिन प्रातः उठ कर स्नान करें और स्नान के पानी मे तिल जरूर डाल दें। स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें। उसके बाद मंदिर जाकर श्रद्धा अनुसार दान करें ।अपनी इच्छा से ब्राह्मणों को भोजन कराएं। बिना तेल-घी एवं तिल और गुड़ से बनी चीजे ही खाएं।

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