- लद्दाख के गुलाम रसूल गलवान ने इस घाटी को खोजा था, अंग्रेजों ने गलवान के नाम पर ही घाटी का नामकरण कर दिया
- गलवान के पोते ने कहा- चीन ने 1962 में भी घाटी पर कब्जा करने की कोशिश की थी, सेना के जवानों को सलाम किया
दैनिक भास्कर
Jun 18, 2020, 10:49 PM IST
लेह. पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारत-चीन के बीच का विवाद बढ़ता ही जा रहा है। इस बीच इस घाटी की खोज करने वाले गुलाम रसूल गलवान के पोते सामने आए हैं। उन्होंने घाटी की पूरी कहानी बताई। यह भी कहा कि गलवान घाटी शुरू से ही भारत की रही है। इसमें किसी को भी कोई संदेह नहीं होना चाहिए। चीन जो दावा कर रहा है वो पूरी तरह से फर्जी है। 1962 में भी चीन ने गलवान घाटी पर कब्जा की कोशिश की थी।
अंग्रेजों की मदद करते समय रसूल ने खोजी थी घाटी
गलवान घाटी का नाम लद्दाख के रहने वाले गुलाम रसूल गलवान के नाम पर रखा गया है। गुलाम रसूल के पोते अमीन गलवान ने मीडिया से बातचीत की। बोले- गलवान घाटी पिछले 200 सालों से भारत की ही रही है। यहां एक बार मशहूर अंग्रेज टूरिस्ट सर फ्रांसिस यंगहसबैंड भारत की यात्रा पर थे। वह तिब्बत-लद्दाख की पहाड़ियों में घूम रहे थे। इस बीच वह रास्ता भटक गए। उस वक्त मेरे दादा रसूल गलवान केवल 12 साल के थे। उन्होंने उनकी मदद की थी और उन्हें सही रास्ता दिखाया। इससे वह काफी खुश हुए थे और इस घाटी का नाम गलवान घाटी रख दिया गया।
घाटी पर झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हुए, चीन के 43 से ज्यादा हताहत
सोमवार रात पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प में एक कर्नल समेत 20 भारतीय जवान शहीद हो गए थे जबकि चीन के भी 43 से ज्यादा जवान हताहत हुए। चीन लगातार गलवान घाटी पर खुद का दावा कर रहा है।
चीन की सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने धमकी दी है कि पाकिस्तान और नेपाल की तरफ से भी सैन्य दबाव का सामना करना पड़ सकता है। वहीं, भारत ने भी साफ कर दिया है कि गलवान घाटी शुरू से भारत की रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं कि अगर कोई हमें उकसाएगा तो हम उसका पुरजोर जवाब देंगे।