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पहली बार कोरोना मरीज के दोनों फेफड़े बदलने वाले मेरठ के डॉ. अंकित ने अनुभव शेयर किया, और भारत के लिए मैसेज दिया

  • डॉ. अंकित भरत के मुताबिक- लंग ट्रांसप्लांट से वे मरीज वेंटिलेटर से वापस लौट सकते हैं जिनके फेफड़ों को कोरोना डैमेज कर चुका होता है
  • दैनिक भास्कर से बातचीत में उन्होंने कहा- कोरोना जाने वाला नहीं है, इससे आज भी लड़ना है और आने वाले कल में भी
अंकित गुप्ता

अंकित गुप्ता

Jun 14, 2020, 12:06 PM IST

मेरठ में जन्मे थोरेसिक स्पेशलिस्ट डॉ. अंकित भरत के नेतृत्व में पहली बार, किसी कोरोना मरीज के दोनों फेफड़े ट्रांसप्लांट किए गए हैं। अमेरिका के शिकागो के नार्थ-वेस्टर्न मेमोरियल हॉस्पिटल में किए गए इस काम की इसलिए चर्चा है क्योंकि, कोरोनावायरस सबसे पहले फेफड़ों को ही निशाना बनाता है। 

उनके हॉस्पिटल में यह सर्जरी 5 जून को की गई थी लेकिन, मरीज की कंडीशन के तमाम पहलुओं को देखते हुए इसकी सफलता की घोषणा एक हफ्ते बाद की गई। हॉस्पिटल ने इसे एक माइलस्टोन बताया है।

दुनियाभर के वैज्ञानिक भारत के एक डॉक्टर परिवार के बड़े बेटे अंकित को बधाई देते हुए इस सर्जरी को महत्वपूर्ण बता रहे हैं। माना जा रहा है इसके बाद वेंटिलेटर पर तड़प रहे गंभीर रोगियों को ट्रांसप्लांट के जरिये बचाने की उम्मीद जगी है। हर साल करीब 50 लंग ट्रांसप्लांट करने वाले डॉ. अंकित के पास दुनियाभर से कॉल आ रहे हैं। अब ऐसे ट्रांसप्लांट की चाह रखने वाले मरीजों की लिस्ट लम्बी होती जा रही है।

शिकागो के हॉस्पिटल के लंग्स ट्रांसप्लांट प्रोग्राम के डायरेक्टर और सर्जन डॉक्टर अंकित भरत ने दैनिक भास्कर की ओर से भेजे गए सवालों के जवाब दिए। उन्होंने बताया कि, ये सर्जरी कितनी चुनौतीभरी रही और कोरोना महामारी को लेकर वह भारत की वर्तमान स्थिति को किस नजरिए से देखते हैं।

बातचीत से पहले 4 पांइट में पूरा केस  

  • नॉर्थ वेस्टर्न हॉस्पिटल में 26 अप्रैल से भर्ती संक्रमित युवती कोविड आईसीयू की सबसे बीमार मरीज थी। उसे 20 से भी कम उम्र में कोरोना ने इस तरह जकड़ लिया था कि बचने की उम्मीद बहुत कम थी।
  • वायरस के कारण फेफड़ों में इतना नुकसान हो चुका था कि उनका ठीक होना संभव नहीं था। तमाम विकल्प आजमाने के बाद डॉ.अंकित और उनकी टीम ने उसके फेफड़े ट्रांसप्लांट करने का फैसला लिया।
  • डॉ.अंकित की सहयोगी डॉ.बेथ मालसिन ने बताया कि हमें दिन-रात यह देखना होता था कि उसके सभी अंगों तक पर्याप्त ऑक्सीजन पहुंच रही है या नहीं, ताकि ट्रांसप्लांट के दौरान वे ठीक रहे।
  • इसके बाद जैसे ही उसकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई, हमने ट्रांसप्लांट की तैयारी शुरू कर दी। 48 घंटे बाद फेफड़ों को ट्रांसप्लांट कर दिया। 10 घंटे तक चली यह सर्जरी सफल रही और अब मरीज रिकवरी स्टेज में है। 

अब सवाल – जवाब

1. ये सर्जरी इतनी महत्वपूर्ण क्यों बताई जा रही है? क्या आगे कोरोना के कारण मौत की कगार पर पहुंचे मरीजों के लिए जीवनदायक हो सकती है?
डॉ.अंकित: हां, ऐसा हो सकता है क्योंकि, एक बार जब आपका शरीर सक्षम हो जाता है तो वायरस को निकाल बाहर फेंकता है। और, इस तरह के लंग ट्रांसप्लांट की मदद से वे मरीज वेंटिलेटर से वापस लौट सकते हैं जिनके फेफड़ों को कोरोना वायरस के कारण गंभीर नुकसान पहुंच चुका होता है।

पहली फोटो, लंग ट्रांसप्लांटेशन से पहले हुए एक्स-रे की है। दूसरी फोटो, कोरोना मरीज के वो फेफड़े हैं जो पूरी डैमेज हो चुके थे और उसकी लगातार बिगड़ती हालत के बाद ट्रांसप्लांट किया गया।

2. अगर मरीज के दोनों फेफड़े खराब हैं तो लंग ट्रांसप्लांटेशन में सबसे बड़ा चैलेंज क्या है?
डॉ. अंकित: ऐसे में सबसे बड़ा चैलेंज उस मरीज की बीमारी होती है और ये देखना होता है कि वो किस स्टेज पर है। आमतौर पर, ऐसे गंभीर मरीजों को हफ्तों तक नली लगाकर ऊपर से सांस देनी होती है क्योंकि वे बहुत कमजोर हो जाते हैं। ऐसे मामलों में मरीज के दूसरे अंगों पर भी बुरा असर पड़ता है और उनकी भी काम करने की क्षमता कम होती जाती है।

इसीलिए, ऐसे मरीजों में ट्रांसप्लांटेशन करना बहुत चैलेंजिंग काम होता है। इस सर्जरी में उम्र बहुत मायने रखती है क्योंकि हमें मरीज की इम्यूनिटी और रिकवरी की संभावनाओं के हिसाब से ये बेहद पेचीदा सर्जरी करनी होती है। मैचिंग डोनर का वक्त पर मिलना भी एक बड़ा चैलेंज है।

3. कोरोना से जूझने में भारत की स्थिति और तैयारियों को आप कैसे देखते हैं?
डॉ. अंकित: यकीनन, ये दौर दुनिया के हर देश के लिए बहुत मुश्किल है और, मैं कहूंगा कि जो हालात हैं उनको देखते हुए भारत बहुत अच्छा कर रहा है। मुद्दे की बात ये है कि अभी भी ये स्पष्ट नहीं है कि हमारे पास पब्लिक हेल्थ पॉलिसीज क्या होनी चाहिए क्योंकि, ये वायरस अब जाने वाला तो नहीं है।

इससे आज भी लड़ना है और आने वाले कल में भी। हालांकि, अगर लोग घर और कम्युनिटी के स्तर पर हाइजीन और बचाव के बुनियादी नियमों का पालन करेंगे तो इस वायरस के प्रभाव को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।

यह तस्वीर 10 घंटे चली सर्जरी की है। डॉ. अंकित भरत के मुताबिक, ऐसी स्थिति सबसे बड़ा चैलेंज उस मरीज की बीमारी होती है और ये देखना होता है कि वो किस स्टेज पर है

4. अमेरिका में रहकर आपने कोरोना के संकट को बहुत करीब से देखा है, भारत सरकार और भारतवासियों को कोई खास मैसेज देना चाहेंगे?
डॉ. अंकित: मुझे लगता है कि देश में एकता बनाए रखने, हाइजीन और मेडिकल रिसर्च के प्रमाणों को लेकर लोगों को जागरूक करने में बतौर मीडिया हाउस आप लोग और सरकार बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। मैं ये भी सोचता हूं कि बतौर एक सोसायटी के रूप में हमें पर्सनल हाइजीन को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी खुद ही लेनी होगी और, तभी हम कोविड-19 और भविष्य में होने वाली किसी भी ऐसी महामारी को फैलने से रोक पाएंगे। मैं यही मैसेज देना चाहता हूं कि, हमें एक होकर लड़ना होगा, क्योंकि सामूहिक प्रयासों और सबके एक साथ आए बिना इस वायरस से जीतना संभव नहीं लगता। 

5. आप मेरठ से हैं और क्रिश्चियन कॉलेज से पढ़ें हैं, यूपी से शिकागो तक की यात्रा में भारत याद आता है?
डॉ. अंकित: हां, बिल्कुल। रोज याद आता है। भारत में पैदाइश और बड़े होने की यादें बहुत गुदगुदाती है। यहां, अमेरिका में भारत का स्वादिष्ट और देसी खाना बहुत याद आता है।

12 जून को शिकागो में हॉस्पिटल के बाहर मीडिया को इस सर्जरी के बारे में बताते डॉ. अंकित। 2019 में उन्होंने ही पहली बार रोबोट की मदद से लंग सर्जरी की थी। 

मेरठ से अमेरिका तक के सफर के 5 पड़ाव

  • 1980 में मेरठ में जन्में डॉ. अंकित भरत ने 10वीं की पढ़ाई 1995 में मेरठ छावनी के सेंट मेरीज एकेडमी से की और डीपीएस आरकेपुरम से वर्ष 1997 में 12वीं की पढ़ाई पूरी की। 
  • वेल्लोर के मशहूर क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई पूरी करके 2003 में इंटर्नशिप करने के बाद नई तकनीक सीखने अमेरिका गए और फिर वहीं बस गए।
  • कॅरिअर के शुरुआती दिनों बतौर रेजिडेंट काम करने के बाद 2013 में नॉर्थवेस्टर्न मेमोरियल हॉस्पिटल में प्रोफेसर के पद पर नौकरी ज्वाॅइन की। 
  • थोरेसिक सर्जन डॉ अंकित भरत नॉर्थवेस्टर्न हॉस्पिटल में ही लंग ट्रांसप्लांट प्रोग्राम के डायरेक्टर बने। उन्हें पिछले साल नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की ओर से अमेरिका की सबसे बड़ी 17 करोड़ रुपए की आरओ-1 ग्रांट मिली। 
  • उनके पिता डॉ. भरत गुप्ता सुभारती मेडिकल कॉलेज के बायोकेमिस्ट्री डिपार्टमेंट में प्रोफेसर व एचओडी हैं और मां डॉ. विनय भरत भी इसी कॉलेज में पैथोलॉजी विभाग में प्रोफेसर हैं। उनके छोटे भाई डॉ.अंचित भी अमेरिका के इंडियाना पोलिस स्टेट स्थित वेल्स मेमोरियल अस्पताल में फिजिशियन हैं।
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बाएं से- डॉ. अंकित अपनी मां डॉ. विनय भरत, पिता डॉ. भरत कुमार गुप्ता और भाई डॉ. अंचित भरत के साथ।

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