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जमाई की लंबी उम्र के लिए किया जाता है षष्ठी का व्रत, अपने आप में अनोखा है ये पर्व

  • दही का तिलक लगाकर करते हैं जमाई की आरती, खाना खिलाकर उपहार में दिए जाते हैं कपड़ें

दैनिक भास्कर

May 28, 2020, 10:52 AM IST

बांग्ला कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ महीने के शुक्लपक्ष की छठी तिथि को जमाई षष्ठी का व्रत किया जाता है। ये एक उत्सव की तरह मनाया जाता है। नाम के अनुसार इस दिन जमाई की सेवा और खातिरदारी की जाती है। साथ ही इस व्रत में बच्चों की अच्छी सेहत की प्रार्थना भी की जाती है। इस अनोखी परंपरा का व्यवहारिक महत्व संबंधों को मजबूत करना है। इसी के साथ मौसम को ध्यान में रखते हुए बीमारियों से बचने के लिए ये व्रत किया जाता है। इस व्रत में जमाई का महत्व इसलिए ज्यादा है क्योंकि भारतीय संस्कृति में उन्हें भी बेटे की तरह माना जाता है। ये पर्व 28 मई, गुरुवार यानी आज मनाया जा रहा है।

परंपरा: दही का तिलक और आरती के बाद जमाई का गृहप्रवेश
परंपरा के अनुसार सास सुबह जल्दी नहाकर षष्ठी देवी की पूजा करती हैं। पूजा के बाद बेटी और दामाद के घर आते ही दोनों की पूजा करती हैं। थाली में षष्ठी देवी का जल, दूर्वा, पान का पत्ता, पूजा की सुपारी, मीठा दही, फूल और फल रखे जाते हैं। जमाई पर षष्ठी देवी की पूजा का जल छिड़का जाता है। इसके बाद उनकी आरती की जाती है। फिर जमाई को दही का तिलक लगाया जाता है और षष्ठी देवी का पीला धागा बांधकर हर तरह की रक्षा और लंबी उम्र की कामना की जाती है। उसके बाद जमाई का गृहप्रवेश होता है।

  • इस दिन जमाई की खातिरदारी की जाती है। बेटी और दामाद के साथ मंगल कामना करते हुए ईश्वर से पूरे परिवार की खुशहाली की कामना की जाती है। नए कपड़े दिए जाते हैं और विशेष भोजन तैयार किया जाता है। बंगाल की परंपरा के अनुसार खासतौर से दामाद को मिठाई, आम-लीची सहित मौसमी फल खिलाए जाते हैं। इसके बाद खाना खिलाया जाता है इस दौरान हाथ पंखे से जमाई को हवा करने की परंपरा भी है। इसके बाद जमाई और बेटी को उपहार दिए जाते हैं।

बिना पानी पिए बच्चों के लिए विशेष पूजा

षष्ठी तिथि के दिन सुबह जल्दी मां बहते जल में नहाकर बच्चों को षष्ठी का जल देती हैं। तीर्थ में नहाने के बाद संतान और जमाई की लंबी उम्र की कामना से षष्ठी देवी की पूजा की जाती है। इसके लिए एक दिन पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं। गांव की महिलाएं खजूर की डाली काटकर थाली जैसा आकार बनाती हैं।

  • पूजा की थाली में दूर्वा घास, धान, करमचा, खजूर के नए पत्ते, पूजा की सुपारी और काला तिल रखती हैं। षष्ठी तिथि के दिन सुबह सभी सामग्री हाथों में रखकर नहाकर गीले कपड़े में बच्चों को पंखे से हवा करेंगी, ताकि संतान पूरी उम्र हर तरह की शारीरिक परेशानियों से दूर रहे। इसके बाद सामग्रियों से बच्चे को आशीर्वाद देती हैं। बच्चों के हाथों में आम, लीची और मौसमी फल देती हैं। उसके साथ ही नए कपड़े भी देती हैं। फिर मां पानी पीती हैं।

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