May 26, 2024 : 3:11 AM
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पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और उनके परिजनों के नाम भी पैंडोरा पेपर्स में

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के अध्यक्ष जेबी महापात्रा इस जांच दल का नेतृत्व करेंगे. सीबीडीटी के अलावा प्रवर्तन निदेशालय, भारतीय रिज़र्व बैंक और फ़ाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट भी जांच करेगी.

लीक हुए रिकॉर्ड से पता चलता है कि रिलायंस एडीए ग्रुप के चेयरमैन अनिल अंबानी और उनके प्रतिनिधियों के पास कम से कम 18 ऑफ़शोर कंपनियां थीं.

2007 और 2010 के बीच स्थापित इन कंपनियों में से सात कंपनियों ने उधार लिया है और कम से कम 1.3 बिलियन डॉलर का निवेश किया है.

अनिल अंबानी की ओर से इस पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, लेकिन एक अज्ञात वकील ने उनकी तरफ़ से रिपोर्टिंग पार्टनर इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “हमारे मुवक्किल भारत में टैक्स देने वाले नागरिक हैं और उन्होंने भारतीय अधिकारियों से वो सब कुछ बताया है जो क़ानून के मुताबिक़ ज़रूरी है.”

वकील ने कहा, “लंदन कोर्ट में अपनी बात रखते हुए सभी ज़रूरी चीज़ों का ख़्याल रखा गया था. रिलायंस समूह पूरी दुनिया में कारोबार करता है. वैध कारोबार और नियामक ज़रूरतों के लिए कंपनियों को अलग-अलग न्यायिक क्षेत्रों में रखना पड़ता है.”

भारत में साफ़-सुथरी छवि रखने वाले पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और उनके परिजनों का नाम भी पैंडोरा पेपर्स में आया है. उन्हें ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में एक संस्था का लाभार्थी मालिक बताया गया है जो साल 2016 में अस्तित्व में आई थी. सचिन तेंदुलकर, उनकी पत्नी अंजलि तेंदुलकर और उनसे ससुर आनंद मेहता को इस कंपनी का लाभार्थी मालिक और डायरेक्टर बताया गया है.

सचिन तेंदुलकर फ़ाउंडेशन के सीआईओ ने इस बारे में मीडिया में बयान दिया है कि ये सभी निवेश वैध और क़ानूनी तौर पर सही हैं.

पैंडोरा पेपर्स

117 देशों के 600 खोजी पत्रकारों ने इन दस्तावेज़ों की पड़ताल की है. 14 स्रोतों से मिले इन दस्तावेज़ों की कई महीने तक जाँच की गई. फिर इन दस्तावेज़ों के आधार पर रिपोर्ट्स तैयार की गई और इन्हें इस हफ़्ते प्रकाशित किया जा रहा है.

इस डेटा को वॉशिंगटन डीसी स्थित इंटरनेशनल कॉन्सोर्शियम इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट यानी आईसीआईजे ने हासिल किया और दुनिया भर के 140 मीडिया संस्थानों ने अब तक के इस सबसे बड़े ग्लोबल इन्वेस्टिगेशन में हिस्सा लिया.

बीबीसी पैनोरामा और गार्डियन ने मिलकर ब्रिटेन में इस पड़ताल का नेतृत्व किया है.

लीक फ़ाइलें बताती हैं कि कैसे दुनिया के कुछ सबसे शक्तिशाली लोग जिनमें 90 देशों के 330 से अधिक राजनेता शामिल हैं, अपनी संपत्ति छिपाने के लिए सीक्रेट ऑफ़शोर कंपनियों का इस्तेमाल करते हैं.

भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि दोषी पाए जाने वाले लोगों के ख़िलाफ़ उचित कार्रवाई की जाएगी.

विदेश मंत्रालय के मुताबिक़, “इन मामलों की प्रभावी जांच सुनिश्चित करने के लिए सरकार इन करदाताओं/ संस्थाओं के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए विदेशी क्षेत्राधिकारों के साथ भी मिलकर काम करेगी.”

ब्लैक मनी पर सरकार के विशेष जांच दल के प्रमुख रहे सुप्रीम कोर्ट के दो पूर्व न्यायाधीशों ने कहा है कि इस जानकारी के सामने आने के बाद कार्रवाई की जाएगी.

काले धन की जांच के लिए मोदी सरकार ने साल 2014 में एसआईटी का गठन किया था और अब तक सुप्रीम कोर्ट को सात रिपोर्ट सौंप चुकी है.

पैंडोरा पेपर्स में कई अन्य प्रमुख भारतीयों के नाम भी सामने आए हैं जिनमें कुछ हाई प्रोफ़ाइल व्यवसायी और उद्यमी भी शामिल हैं.

इसके अलावा कई प्रमुख प्रवासी भारतीयों के नाम भी इसमें शामिल हैं जिन्होंने भारतीय बैंकों से बड़े लोन लिए और कुर्की की कार्रवाई के बावजूद ऑफ़शोर कंपनियां खोलीं और अपनी मौजूदा संपत्ति का सही विवरण नहीं दिया.

ऑफ़शोर कंपनियों का इस्तेमाल अवैध नहीं है, लेकिन इस बात की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कई बार ऑफ़शोर कंपनियों का इस्तेमाल संपत्ति छिपाने के लिए किया जाता है.

विदेश में पैसा छिपाना कितना आसान है?

इसके लिए टैक्स हैवेन देशों में एक शेल कंपनी बनानी होती है और इसे कौन बना रहा है, मालिक कौन है जैसी जानकारियाँ गुप्त रखी जाती है. ये कंपनियाँ काग़ज़ों पर होती हैं, लेकिन ना तो इनका कोई ऑफ़िस होता है और ना ही कोई कर्मचारी.

लेकिन ऐसी कंपनियाँ बनाने में भी पैसा लगता है. कुछ फ़र्म, जो इस काम में माहिर होती हैं वो आपके नाम पर आपकी शेल कंपनियों को चलाती हैं. ये फ़र्म पैसों के बदले शेल कंपनियों को नाम, पता, पेड बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स का नाम देती हैं और ये सुनिश्चित करती हैं कि कंपनी का असली मालिक कौन है ये कभी सामने न आए.

कितने पैसे छिपाए गए हैं?

ऑफ़शोर में कितने पैसे दुनियाभर के अमीरों ने लगाए हैं, ये ठीक-ठीक बता पाना मुश्किल है. लेकिन आईसीआईजे के अनुमान के मुताबिक़ ये 5.6 ट्रिलियन डॉलर लेकर 32 ट्रिलियन डॉलर तक हो सकता है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का कहना है कि टैक्स हैवेन के इस्तेमाल से दुनिया भर में सरकारों को हर साल 600 अरब डॉलर के टैक्स का घाटा होता है.

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