May 19, 2024 : 1:05 PM
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यूएन में बोले मोदी, अफ़ग़ानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकवाद फैलाने के लिए न हो

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधन के दौरान कहा कि ये सुनिश्चित किया जाना ज़रूरी है कि अफ़ग़ानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आंतकवाद के लिए न हो.

अपने भाषण की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा, “गत डेढ़ वर्ष से पूरा विश्व, 100 साल में आई सबसे बड़ी महामारी का सामना कर रहा है. ऐसी भयंकर महामारी में जीवन गंवाने वाले सभी लोगों को मैं श्रद्धांजलि देता हूं और परिवारों के साथ अपनी संवेदनाएं व्यक्त करता हूं.”

“मैं उस देश का प्रधिनिधित्व कर रहा हूं, जिसे मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी का गौरव हासिल है. लोकतंत्र की हज़ारों सालों की महान परंपरा रही है. इस 15 अगस्त को भारत ने अपनी आज़ादी के 75वें साल में प्रवेश किया है. हमारी विविधता, हमारे सशक्त लोकतंत्र की पहचान है. एक देश जिसमें दर्जनों भाषाएं हैं, सैकड़ों बोलियां हैं, अलग-अलग रहन-सहन, खानपान है. ये वाइब्रैंट डेमोक्रेसी का बेहतरीन उदाहरण है.”

“सबसे लंबे समय तक गुजरात का मुख्यमंत्री और फिर पिछले सात साल से भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर मुझे सरकार के मुखिया की भूमिका में देशवासियों की सेवा करते हुए 20 साल होने जा रहे हैं. और मैं अपने अनुभव से कह रहा हूं- हां, लोकतंत्र दे सकता है और लोकतंत्र ने दिया है.”

आतंकवाद का इस्तेमाल पर

“पीछे ले जाने वाली सोच के साथ जो देश आतंकवाद का इस्तेमाल राजनीतिक उपकरण के तौर पर कर रहे हैं, उन्हें ये समझना होगा कि आतंकवाद उनके लिए भी उतना ही बड़ा ख़तरा है. ये तय करना बहुत ज़रूरी है कि अफ़ग़ानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकवाद फैलाने और आतंकी हमलो के लिए न हो.”

“हमारे समंदर भी हमारी साझा विरासत हैं. इसलिए हमें ये ध्यान रखना होगा कि समुद्री संसाधनों को हम इस्तेमाल करें, उसका दुरुपयोग नहीं. हमारे समंदर दुनिया के व्यापार की जीवनरेखा भी हैं. इन्हें हमें विस्तार और अलग-थलग करने की दौड़ से बचाकर रखना होगा. नियम आधारित वर्ल्ड ऑर्डर को मजबूत बनाने के लिए, विश्व समुदाय को एक सुर में आवाज उठानी ही होगी.”

“ये ज़रूरी है कि हम यूएन को ग्लोबल ऑर्डर, ग्लोबल लॉ और ग्लोबल वैल्यूज़ के संरक्षण के लिए लगातार मजबूत बनाएं. भारत के महान कूटनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य ने सदियों पहले कहा था- ‘कालाति क्रमात काल एव फलम् पिबति’. यानी जब सही समय पर सही काम न किया जाए तो समय ही उस काम की सफलता को समाप्त कर देता है. यूएन को ख़ुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए उसे अपने असर को सुधारना होगा, भरोसे को बढ़ाना होगा.

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