May 20, 2024 : 4:32 AM
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300 साल पुराने रामेश्वर मंदिर से दूर हो रहे भक्त:यहां स्वयंभू शिवलिंग के चरण पखारती थीं गंगा, अब दोनों ओर गंदे पानी के नाले बह रहे, भक्तों ने आना ही छोड़ दिया

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कानपुर11 घंटे पहलेलेखक: रवि पाल

श्रावण मास में पूरी दुनिया में शिव की आराधना हो रही है, लेकिन कानपुर के 300 साल पुराने रामेश्वर मंदिर से भक्तों ने किनारा कर लिया है। वजह यह है कि मंदिर के आसपास नाले का गंदा पानी भर रहा है।

एक वक्त था जब गंगा भी यहां शिव के चरणों को प्रणाम करने के लिए मंदिर के द्वार तक आती थी। लेकिन अब मंदिर के दोनों ओर नाले बहते हैं। गंदगी और बदबू ने रहना दूभर कर दिया है।

मंदिर के महंत के मुताबिक ये शिवालय 300 साल पुराना है। नाले की गंदगी और बदबू की वजह से यहां अब भक्तों ने आना ही छोड़ दिया है।

बीते 60 सालों से महंत केशव गिरी इस मंदिर में पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं। जूना अखाड़ा ने उन्हें यहां की जिम्मेदारी सौंपी है। महंत बताते हैं कि पहले यहां भक्तों को बड़ा जमावड़ा लगता था। शहर में स्थित आनंदेश्चर मंदिर, खेरेश्वर मंदिर, सिद्धनाथ मंदिर की तरह ही यहां भी 24 घंटे हजारों भक्तों की भीड़ रहती थी। हालांकि, बगल में स्थित परमिया नाला इस कदर बहता है कि अब यहां भक्त आते ही नहीं हैं।

बारिश में और बिगड़ जाते हैं हालात

नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत 36 करोड़ रुपए से परमिया नाला समेत 6 नालों को टैप किया जा चुका है। पीएम नरेंद्र मोदी ने 2019 में अटल घाट के इनॉग्रेशन के साथ ही बोट के जरिए यहां गंगा तट का निरीक्षण किया था। पीएम के जाने के बाद लगातार ये नाला गंगा में सीसामऊ नाले की तरह गिर रहा है। मानसून में यहां का और भी बुरा हाल हो जाता है। गंगा में जलस्तर बढ़ने के साथ ही नाले बैक मारने लगते हैं। इससे मंदिर के आगे खाली पड़ी जमीन में नाले का पानी उफनाने लगता है।

यहां स्वयंभू है शिवलिंग

महंत बताते हैं कि भगवान यहां कैसे आए ये हमारे गुरुओं को भी नहीं मालूम है। मूल शिवलिंग को देखें तो ये खुद जमीन से निकला हुआ है, जिसे हम स्वयंभू कहते हैं। इसे दशकों पहले तोड़ने का प्रयास भी किया गया। हालांकि, शिवलिंग जस का तस बना हुआ है।

मुगलकाल की ईंटों से बना है

महंत के मुताबिक ये मंदिर करीब 300 साल पुराना है। इसका निर्माण मुगलकाल की ईंटों से कराया गया है। मेरे गुरुओं ने बताया कि यहां सबसे पहले शंकर गिरी, उसके बाद महंत प्रसादी गिरी, फिर महंत बेनी गिरी, इनके बाद महंत बंशी गिरी, कैलाश गिरी ने मंदिर की देखरेख की। कैलाश गिरी से महंत केशव गिरी को मंदिर की जिम्मेदारी मिली है।

सावन का आखिरी शनिवार मनाया जाता है

यूं तो हर शिव मंदिर में सावन सोमवार भव्य तरीके से मनाया जाता है। रामेश्वर घाट मंदिर में सावन को आखिरी शनिवार भव्य तरीके से मनाया जाता है। यहां हर साल आयोजन तो होता है, लेकिन कुछ स्थानीय लोगों के अलावा कोई नहीं आता है। नालों की वजह से मंदिर के वैभव में ग्रहण लग गया है।

खंडहर होता जा रहा मंदिर

मंदिर का मुख्य गर्भगृह कुछ सुरक्षित हैं। लेकिन मंदिर कैंपस में बने कमरे और आसपास की दीवारें अब जर्जर होने लगी हैं। कुछ हिस्सा अब ढहने भी लगा है और कई हिस्से में कब्जे भी हो गए हैं। जिनका मामला कोर्ट में चल रहा है। मूल रूप से मछुआ नगर, पुराना कानपुर में ये मंदिर स्थित है। यहां के स्थानीय निवासी गौतम शुक्ला बताते हैं कि मेरी उम्र 58 साल हो गई। तब से हम लोग इसे नाले को देखते आ रहे हैं। मंदिर के दूसरी ओर स्थित नाले में चैंबर तो बना दिए गए, लेकिन सफाई न होने से ये नाले उफनाने लगते हैं। नरक जैसा जीवन हो गया है। यहीं के निवासी रामलाल और ओम प्रकाश ने बताया कि मंदिर को बचाने के लिए जो बन पड़ता है करते हैं। आलम ये है कि अब भगवान को फूल-माला तक के लिए बड़ी मुश्किल से पैसा जुटाना पड़ता है।

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