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- Anganwadi Running In Water Dripping From The Roof, 25 Lakhs Spent On Wages From MNREGA In 4 Months, Villagers Said GRS Fills Fake Muster Rolls
गुना2 घंटे पहले
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पंचायत भवन में घूमते मवेशी।
गुना जिले के जामनेर इलाके में स्थित बेरवास गांव सुर्खियों में हैं। इस गांव से गुजरात के अहमदाबाद में नौकरी करने गए एक ही परिवार के 9 लोगों की सिलेंडर में ब्लास्ट होने से मौत हो गई। इनमें से 6 लोगों का एक ही चिता पर अंतिम संस्कार किया गया। इस दर्दनाक हादसे के बाद ग्रामीण स्तर पर रोजगार और मनरेगा जैसी योजनाओं पर सवाल उठ रहे हैं। 1300 की आबादी वाले इस गांव में रोजगार की स्थिति खराब होने से पलायन लगातार जारी है।
दैनिक भास्कर की टीम गुना से 70 किमी का सफर करने के बाद बेरवास गांव पहुंची। यहां गांव तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क जरूर है जो गांव के मुहाने पर आकर खत्म हो जाती है। पूरे गांव में लगभग अधिकतर घर कच्चे ही बने हुए हैं। गांव में राजपपोट, मीना और अहिरवार समाज के अधिकतर लोग रहते हैं। गांव की शुरुआत में ही पंचायत भवन और प्राथमिक स्कूल है। बारिश के चलते दोनों परिसरों में पानी भरा हुआ था। वहीं रास्ते भी कीचड़ से भरे हुए थे।
कीचड़ भरे रास्ते से अंतिम संस्कार के लिए शव ले जाते ग्रामीण।
पंचायत भवन की जर्जर बिल्डिंग
गांव में स्थित पंचायत भवन जर्जर स्थिति में था। यह पंचायत भवन 17 साल पहले बनाया गया था। इतने वर्षों बाद इसकी हालात खस्ता हो गई है। बिल्डिंग के गेट और खिड़कियां टूट चुकी हैं। एक कमरा तो पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है। उसमें मवेशी बैठे हुए मिले। ग्रामीणों ने बताया कि पंचायत भवन केवल कुछ कार्यक्रमों के दौरान ही खुलता है। बाकी समय यह बंद ही रहता है। पंचायत भवन की केवल एक ही दीवार बची है। बाकी तीन दीवारें टूट चुकी हैं। अब केवल एक छत और दीवार ही है। उसी से लगी हुई राशन की दुकान एक 5×5 स्क्वायर फीट के कमरे में चलाई जा रही है। यह जिले में सबसे छोटी राशन की दुकान है। सवाल यही है कि इतने छोटे कमरे में कैसे खाद्यान्न सामग्री रखी जाती है और कैसे वितरण होता होगा।
मनरेगा में 4 महीने में 40 लाख का काम
एक तरफ प्रशासन दावा कर रहा है कि मनरेगा में निरंतर ग्रामीणों से काम कराए जा रहे हैं। दूसरी तरफ ग्रामीणों का कहना है कि अधिकतर काम मशीनों से ही करवा लिया जाता है। रातों-रात फर्जी मस्टर रोल सचिव और ग्राम रोजगार सहायक द्वारा भर लिए जाते हैं। आंकड़ों के अनुसार पिछले चार महीनों में गांव में मनरेगा के तहत 41 लाख रुपए के काम कराए गए हैं। इनमें से 25 लाख तो मजदूरी के नाम पर भुगतान दिखाया गया है। इसके अनुसार गांव के मजदूरों को 25 लाख का भुगतान किया गया है, जबकि स्थिति इसके बिल्कुल उलट है। ग्रामीणों ने कहा कि पंचायत के आंकड़े फर्जी हैं। गांव में किसी को काम नहीं दिया गया। ग्राम रोजगार सहायक और सचिव द्वारा मिलीभगत से यह पैसा निकाल लिया गया है।
जर्जर आरोग्य केंद्र।
सरकारी जमीन पर कब्जे से मुक्तिधाम का रास्ता बंद
3 वर्ष पहले ही गांव में मुक्तिधाम बनाया गया है। पहले यहां तक जाने के लिए रास्ता था, लेकिन गांव के ही कई लोगों ने सरकारी जमीन पर कब्जा कर रास्ता बंद कर दिया। इस वजह से अब ग्रामीणों को पुलिया से कच्चे रास्तों से नीचे उतरकर मुक्तिधाम तक जाना पड़ता है। अहमदाबाद हादसे में जान गंवाने वाले 6 लोगों के अंतिम संस्कार के लिए प्रशासन ने इतिश्री करने के लिए अस्थायी रास्ता बनाया। प्रशासन ने बाद इतनी व्यवस्था कर दी कि पुलिया से कूदना न पड़े। 3 ट्रॉली पत्थर डालकर पुलिया और जमीन के बीच की ऊंचाई को कम कर दिया। तहसीलदार निशा भारद्वाज का कहना था कि जल्द ही रास्ते वाली जमीन पर से कब्जा हटवा दिया जाएगा।
टपकते पानी में चल रही आंगनबाड़ी
गांव की आंगनबाड़ी की हालत भी बेहद खराब ही दिखी। आंगनबाड़ी की छतों से लगातार पानी टपक रहा था। खिड़कियों की जाली भी टूट गई है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने कहा कि टीकाकरण के दौरान ग्रामीणों ने खिड़की की जाली तोड़ दी। रात में कोई भी अंदर घुस सकता है। वहीं छतें टपकने लगी हैं। यहां बैठने में भी डर लगता है कि कहीं दीवार या छत गिर न जाए। जिस कमरे में बच्चों को दी जाने वाली सामग्री रखी होती है, उसकी दीवारों से भी पानी रिस रहा है। सरपंच-सचिव से कई बार बोला गया, लेकिन उन्होंने नहीं सुनी।