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6 घंटे पहले
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केरल में जीका वायरस के 15 मामले सामने आने के बाद अलर्ट जारी किया गया है। स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज का कहना है, संक्रमण का पहला मामला 24 साल की गर्भवती महिला में सामने आया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, इसका सबसे ज्यादा खतरा गर्भवती महिलाओं को होता है। इसका असर जन्म लेने वाले बच्चे पर भी पड़ सकता है।
जीका वायरस क्या है, यह कितना खतरनाक है और इसका इलाज क्या है…पढ़िए
क्या है जीका वायरस?
जीका वायरस का संक्रमण एडीज इजिप्टी मच्छर के काटने पर होता है। यह मच्छर डेंगू और चिकनगुनिया की वजह भी बनता है। संक्रमित मरीज के साथ सेक्स करने पर यह स्वस्थ इंसान में भी फैल सकता है।
जीका वायरस का पहला मामला 1947 में युगान्डा में दिखा था। इसके पांच साल बाद यह वायरस इंसानों में पाया गया। पहली बार जीका वायरस से जुड़ी महामारी प्रशांत महासागर के याप आइलैंड में 2007 में आई थी। इसके बाद ब्राजील, अमेरिका और एशिया में भी महामारी आई।
कितना खतरनाक है जीका?
जीका वायरस से संक्रमित होने का सबसे ज्यादा खतरा गर्भवती महिलाओं को रहता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है, जहां जीका के कारण महामारी फैली वहां गुलिएन-बैरे-सिंड्रोम के मामले बढ़े। यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जो इंसान में लकवा और मौत की वजह बन सकता है।
गर्भवती महिलाओं में संक्रमण होने पर नवजात में माइक्रोसिफेली और दूसरी जन्मजात बीमारियां हो सकती हैं। इसे कन्जेनिटल जीका सिंड्रोम कहते हैं। यह गर्भवती महिलाओं की प्रेग्नेंसी में कॉम्प्लिकेशन बढ़ाने के साथ मिस्कैरेज का खतरा भी बढ़ाता है। ब्राजील में 2017 में आई महामारी बताती है कि इससे संक्रमित होने पर मौत का खतरा 8.3 फीसदी तक था।
संक्रमित महिलाओं से जन्मे बच्चे को माइक्रोसिफेली हो सकता है। ऐसी स्थिति में बच्चे का सिर छोटा हो जाता है।
कौन से लक्षण दिखने पर अलर्ट हो जाएं?
जीका से संक्रमित कई मरीजों में लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। जिनमें लक्षण दिखते हैं वो फ्लू से काफी मिलते जुलते हैं। बुखार, सिरदर्द जैसे लक्षण गंभीर होने पर अलर्ट हो जाएं। इसके अलावा डेंगू की तरह स्किन पर चकत्ते हो सकते हैं। कुछ मरीजों में कंजेक्टिवाइटिस भी हो सकता है। संक्रमण से करीब 3-4 दिन बाद लक्षण दिखने लगते हैं।
कैसे हो सकता है इसका इलाज?
विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है, जीका से संक्रमित मरीजों के लिए अब तक कोई सटीक इलाज या वैक्सीन नहीं तैयार की जा सकी है। हल्के लक्षण दिखने पर मरीज को आराम करने की सलाह दी जाती है। शरीर में पानी की कमी न होने दें। कुछ पेनकिलर्स और बुखार कंट्रोल करने वाली दवाएं दी जा सकती हैं।