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- Chinese Eyes On Afghanistan As Soon As America Withdraws; Motorway To Be Built From Peshawar To Kabul, US Army Will Leave Afghanistan By September 11
काबुल2 घंटे पहले
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अमेरिका अफगानिस्तान में अपने सैन्य ठिकानों को खाली कर रहा है। मालवाहक विमान से ले जाते चिनूक हेलीकॉप्टर।
- सीपीईसी के विस्तार के तहत 4.60 लाख करोड़ के निवेश की योजना
अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी को चीन बड़े अवसर के तौर पर देख रहा है। चीन ने अफगानिस्तान में अपने ‘बेल्ट एंड रोड’ प्रोग्राम के विस्तार की योजना बनाई है। वह अफगानिस्तान में 4.60 लाख करोड़ रुपए का निवेश करेगा। काबुल में आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी।
सूत्रों के मुताबिक यह योजना चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का हिस्सा होगी। इसमें उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान से अफगानिस्तान और चीन के बीच एक सीधा कॉरिडोर बनाया जाएगा। इससे चीन को मध्य पूर्व, मध्य एशिया और यूरोप तक व्यापार के लिए रास्ता मिल जाएगा।
अधिकारियों ने काबुल और पेशावर के बीच मोटर-वे बनाने की योजना पर भी चर्चा की है। चीन पांच साल से अफगानिस्तान में अपने ‘बेल्ट एंड रोड’ के विस्तार की योजना बना रहा था। लेकिन अमेरिका की मौजूदगी के कारण आगे नहीं बढ़ा।
हालांकि, चीन सरकार और अफगानिस्तान सरकार के बीच बातचीत चलती रही। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने पिछले महीने पुष्टि की थी कि चीन अफगानिस्तान सहित तीसरे पक्ष के साथ चर्चा कर रहा है। बता दें कि अमेरिका ने इस साल 11 सितंबर तक अपनी सेना की अफगानिस्तान से वापसी का लक्ष्य रखा है। अमेरिकी सैनिक बगराम स्थित प्रमुख सैन्य अड्डा पिछले हफ्ते ही छोड़ चुके हैं।
तालिबान का एक तिहाई हिस्से पर कब्जा, 1000 सैनिक ताजिकिस्तान भागे
अमेरिका की वापसी के ऐलान के बाद से तालिबान ने 421 जिलों में से एक तिहाई जिलों पर कब्जा कर लिया है। उत्तर अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा बढ़ता जा रहा है। खासकर बदख्शां और तखर प्रांत तालिबान के कब्जे में हैं। एक हजार से अधिक सैनिक जान बचाने के लिए ताजिकिस्तान भाग गए। कई क्षेत्रों में सुरक्षा बलों ने बिना किसी लड़ाई के सरेंडर कर दिया है। कुछ वीडियो आए हैं। इनमें दिख रहा है बुजुर्ग तालिबान व सैनिकों के बीच समझौता करा रहे हैं।
तालिबान की धमकी: कोई विदेशी सेना यहां न रहे, हम राजनयिकों को निशाना नहीं बनाएंगे
तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने धमकी दी है कि समयसीमा पूरी होने के बाद कोई भी विदेशी सेना अफगानिस्तान में नहीं रहनी चाहिए। नाटो सेना को भी देश में रहने नहीं दिया जाएगा। राजनयिकों, गैर-सरकारी संस्थाओं और अन्य विदेशी नागरिकों को तालिबान निशाना नहीं बनाएगा। उनकी सुरक्षा के लिए अलग से सेना की जरूरत नहीं है।
पीछे हटने की वजह: अमेरिका ने 20 साल में अफगानिस्तान पर 167 लाख करोड़ खर्च किए, 2442 सैनिक भी गंवाए
अमेरिकी सेनाएं 2001 से अफगानिस्तान में हैं। इन 20 साल में अमेरिका ने अफगानिस्तान में 167 लाख करोड़ रुपए खर्च किए। अमेरिका ने अफगानिस्तान में युद्ध के खर्चों के लिए कर्ज भी लिया था। उसने इस पर 39 लाख करोड़ रुपए ब्याज चुकाया। अफगानिस्तान में तैनात रहे वरिष्ठ और पूर्व सैनिकों की स्वास्थ्य सुविधाओं और देखभाल पर 22 लाख करोड़ रुपए खर्च किए।
अफगानिस्तान युद्ध में अब तक 2,41,000 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें 2,442 अमेरिकी सैनिक और 4,000 अमेरिकी कॉन्ट्रैक्टर शामिल हैं। जबकि इतने साल के संघर्ष में 71 हजार से अधिक आम नागरिक मारे गए हैं। करीब 2.7 करोड़ लोगों को अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा। इनमें से ज्यादा ईरान, पाकिस्तान या यूरोपीय देशों में चले गए। अमेरिका ने सड़कों, नहरों आदि प्रोजेक्ट के लिए अफगानिस्तान को 6.5 लाख करोड़ रुपए की सहायता दी। लेकिन बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया।