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भास्कर इंटरव्यू: OTT सेंसरशिप पर अभय देओल ने कहा- यह लोगों को तय करने देना चाहिए कि उन्हें क्या देखना है और क्या नहीं

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2 घंटे पहलेलेखक: ज्योति शर्मा

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1962 के भारत-चीन युद्ध पर आधारित वेब सीरीज ‘1962: द वॉर इन द हिल्स’ 26 फरवरी को OTT प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हो चुकी है। इसके जरिए अभय देओल और माही गिल की जोड़ी 12 साल बाद वापस लौटी है। दैनिक भास्कर को दिए इंटरव्यू में अभय ने सीरीज, किसान आंदोलन, माही के साथ अपनी बोन्डिंग और OTT से जुड़े मुद्दे पर खुलकर बात की। उनसे हुई बातचीत के अंश:-

Q. ओटीटी प्लेटफॉर्म की सेंसरशिप पर आप क्या सोचते हैं?A. मेरा मानना है कि यह लोगों को तय करना चाहिए कि उन्हें क्या देखना है और क्या नहीं। अगर आपको कुछ बुरा लग रहा है तो आप उसे मत देखें। सेंसरशिप तब प्रभावी होगा, जब आप इंटरनेट को कंट्रोल कर पाओगे। मान लीजिए आपको लव मेकिंग सीन से आपत्ति है। आप उसे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर तो रोक लेंगे, लेकिन वह इंटरनेट पर हर जगह उपलब्ध है। इसलिए बेहतर है कि आप उसे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर देखें। जिसमें एक मेहनत होती है, एक डायलॉग होता है। मैं एक उदाहरण देता हूं। फिल्म या किसी शो में जब लव मेकिंग सीन दिखाया जाता है तो उसके पीछे एक कैरेक्टर होता है। उस किरदार की आपबीती होती है, उसकी कहानी होती है। हम उसे इसलिए दिखाते हैं कि उसका अलग प्रभाव आप पर पड़े। जिसको सिर्फ लव मेकिंग जैसी चीजें देखना है, वह वैसे भी ऑनलाइन जा सकता है। मेरा व्यक्तिगत तौर मानना है कि लोग वॉयलेंस या हिंसा से इतना प्रभावित नहीं होते। जितना लव मेकिंग को लेकर होते हैं। इसलिए लोग वॉयलेंस देख सकते हैं, लेकिन लव मेकिंग नहीं। अगर आपको मेरी कोई चीज पसंद नहीं तो आप मुझे न देखें। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई भी उसे नहीं देखना चाहता। मैं सेंसरशिप के पक्ष में नहीं हूं। हां! इस पर बात जरूर होनी चाहिए। लेकिन फिल्ममेकर के तौर पर मैं इसके पक्ष में नहीं हूं। मैं चाहूंगा कि मुझे काम करने की पूरी आजादी होनी चाहिए। जिसके बाद आप हमारा काम देखें और उसे पसंद या नापसंद करें। लेकिन इसे रोकने के लिए आप हमारे पंख ही काट दें तो यह सही नहीं है।

Q. ‘1962’ में अपने किरदार के लिए क्या खास तैयारी की थी?A. हर फील्ड में मेहनत तो करनी पड़ती है। एक्टिंग के लिए थोड़ा ज्यादा करनी पड़ती है। जब हम लेह-लद्दाख गए थे तो वहां सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। हमें खुद को वहां के मौसम के हिसाब से ढालना पड़ा। शरीर को वहां के वातावरण के हिसाब से एडजस्ट करना पड़ा। हमारे काम के घंटे भी ज्यादा होते हैं। आमतौर पर हम 10-12 घंटे रोज काम करते थे। शो की प्रोडक्शन यूनिट के लोग बहुत अच्छे थे। महेश (मांजरेकर) जी डायरेक्टर थे, तो ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं है। वे अपने थॉट में क्लियर होते हैं कि उन्हें क्या चाहिए? वे बेहतरीन डायरेक्टर हैं। माही के साथ सालों बाद काम कर रहा हूं। उसके लिए बहुत ज्यादा एक्साइटेड था। यह शो 1962 के युद्ध पर आधारित है। इसका फोकस एक्शन पर कम, मानवीय संवेदनाओं पर ज्यादा है। एक मां का बेटा जब बॉर्डर पर जाता है तो उस पर क्या बीतती है? आपको अपनी बीवी को बाय बोल कर जाना पड़ता है। आपको पता नहीं होता कि आप वापस भी आओगे या नहीं? उसका क्या मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है ? इस शो की सबसे खास बात बात यही है कि इसमें व्यक्तिगत रिश्तों, मानवीय संवेदनाओं के ताने-बाने को ज्यादा महत्व दिया है। हालांकि एक्शन भी है। लेकिन महेशजी ने पारिवारिक कहानी को ज्यादा तरजीह दी है।

Q.12 साल बाद माही के साथ लौटे हैं। उनके साथ तालमेल कैसा रहा?A. माही बहुत ही टैलेंटेड एक्ट्रेस हैं। मेरे दिल में उनकी हमेशा से बहुत इज्जत है। जब मैंने सुना कि मुझे उनके साथ काम करना है तो मैं बहुत खुश हो गया। क्योंकि जब आप अच्छे एक्टर के साथ काम करते हैं तो आपका काम भी आसान हो जाता है। जब आप कुछ अलग करते हैं तो सामने से उसका रिएक्शन मिलता है। हम पहले भी साथ काम कर चुके हैं। इसलिए हमारे बीच कम्फर्ट लेवल पहले से ही था। जैसा कि कहते हैं न कि ‘ब्रेक द आइस फर्स्ट’। इंसान को समझो, उससे बात कर उसे कम्फर्टेबल करो। हमें इसकी जरूरत नहीं पड़ी। हम एक-दूसरे के लिए फैमिलीयर थे। हम अच्छे दोस्त हैं। वे बेहतरीन एक्ट्रेस हैं। माही की सबसे खास बात यह है कि एक कलाकार के तौर पर उनकी एनर्जी लाजवाब है।

Q. शूट के दौरान क्या रियल फौजियों से वास्ता पड़ा?A. जी नहीं ! न ही इसकी जरूरत थी और न ही ऐसा हुआ। हालांकि, मेरी फैमिली के लोग आर्मी में हैं। मेरी मां की तरफ के लोग फौज में हैं। मेरे कजिन, मेरी भतीजी और भतीजे हैं। मैं उनके साथ पला-बढ़ा हूं। हम एक ही शहर में रहते थे। इसलिए थोड़े-बहुत संस्कार और कल्चर से मैं परिचित था।

Q. अगर आप एक्टर नहीं होते तो क्या आर्मी में होते या कोई दूसरा प्रोफेशन चुनते?A. दिल से मुझे युद्ध पसंद नहीं हैं। इसलिएमुझे नहीं लगता कि मैं आर्मी में जाता। मुझे लगता है कि अगर मौका मिलता तो मैं किसी क्रिएटिव फील्ड में ही रहता। वह ग्राफिक्स डिजाइनिंग भी हो सकता था या फिर पेंटिंग भी। लेकिन कंफर्म कुछ नहीं बोल सकता।

Q. फिल्म के सेट जुड़ा कोई किस्सा?A. डॉन ली हमारे कोरियोग्राफर और एक्शन डायरेक्टर थे। उनका बहुत अच्छा करियर रहा है। उन्होंने लॉस एंजिलिस में काफी समय बिताया है। वे अपने विचारों से बहुत ज्यादा क्लियर थे। क्या करना है? क्या दिखाना है? मैं एक इंजरी से रिकवर हो रहा था तो ज्यादा एक्शन कर नहीं पाया। हालांकि, मुझे एक्शन पसंद नहीं है। फिर भी ऐसे कुछ सीन किए हैं। डॉन ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया। मैंने कुछ एक्शन सीन उनके साथ किए हैं। मेरे करियर को 15 साल हो गए हैं, इसलिए ऐसी कोई खास चीज नहीं देखी, जो मैंने पहले न देखी हो।

Q. देश में लंबे समय से किसान आंदोलन चल रहा है। इस पर आपकी क्या राय है?A. प्रजातंत्र में हर किसी को प्रदर्शन करने और अपनी बात रखने का हक होता है। प्रजातंत्र में ये सारी चीजें होती हैं। हमें इसका हल निकालना चाहिए। किसानों और सरकार के बीच बात होनी चाहिए। मुझे उम्मीद कि यह प्रोटेस्ट शांति से चलेगा और जल्द ही बातचीत के जरिए इसका हल निकलेगा। सच्चाई यह है कि हर कोई अपने काम पर वापस लौटना चाहता है। तो मैं इस समस्या के जल्द से जल्द हल निकलने की उम्मीद करता हूं।

Q. फिल्म, वेब सीरीज या फिर आपके प्रोडक्शन हाउस की तरफ से दर्शकों को भविष्य में क्या कुछ देखने को मिलेगा?A. फिलहाल तो 1962 रिलीज हुई है। उसके बाद यूनाइटेड डिज्नी के लिए हमने एक फिल्म की है, जो इस साल के मध्य में रिलीज होने वाली है। इसके अलावा एक प्रोजेक्ट मैंने अभी साइन किया है। मेरे प्रोडक्शन हाउस में भी कई चीजें पाइप लाइन में है। जैसे ही वह फाइनल होती हैं, हम आपको जरूर सूचित करेंगे।

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