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मिलिंद सोमण, पूनम पांडे के केस को लेकर छिड़ी बहसः क्या अश्लील है और क्या नहीं?

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  • Milind Soman Latest News | Poonam Pandey Latest News Update | The Case Against Milind Soman; What Is Obscenity: All You Need To Know | What Is Legal Definition Of Obscenity?

3 घंटे पहले

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  • कानूनों में अश्लीलता की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं होने से आती है समस्या
  • सोमन ने 55वें जन्मदिन पर न्यूड रन की तस्वीर पोस्ट की थी, जिस पर केस

एक्टर और मॉडल मिलिंद सोमण ने अपने 55वें जन्मदिन पर 4 नवंबर को गोवा के बीच पर बिना कपड़ों के दौड़ लगाई। दो दिन बाद उनके खिलाफ गोवा के कोंकण पुलिस स्टेशन में केस दर्ज हुआ। इससे कुछ दिन पहले ही एक्ट्रेस पूनम पांडे को गोवा के ही एक प्रतिबंधित क्षेत्र में कथित अश्लील फोटोशूट के लिए गिरफ्तार किया गया था। दोनों पर सार्वजनिक स्थल पर अश्लीलता फैलाने के आरोप हैं।

एक ही हफ्ते में दो हाई-प्रोफाइल केस दर्ज हुए। सोशल मीडिया पर तमाम तरह की टिप्पणियां भी आ गई हैं। सबसे ज्यादा इस बात पर सवाल उठने वाले हैं कि मिलिंद सोमण ने जो किया, उसके लिए उनकी बॉडी की तारीफ हो रही है। वहीं, पूनम पांडे को क्यों निशाने पर लिया जा रहा है। दोनों ने जो किया, उसमें बहुत ज्यादा अंतर नहीं है।

और तो और, पूनम पांडे के मुकाबले मिलिंद ने तो पूरे ही कपड़े उतार दिए। ऐसे में अश्लीलता से जुड़े कानून भी सवालों के घेरे में हैं। खासकर वेब सीरीज और OTT प्लेटफॉर्म्स के इस युग में, जहां इनके कंटेंट को लेकर आपत्ति उठाने वालों की संख्या कम नहीं है। आइए जानते हैं कि भारतीय कानून में अश्लील क्या है और इसकी सजा क्या है?

अश्लील या ‘ऑब्सीन’ किसे माना जा सकता है?

  • अश्लीलता की परिभाषा बहुत ही जटिल है। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी कहती है कि नैतिकता और शालीनता के मापदंडों के विपरीत आचरण अश्लील है। यह हो गया भाषाई अर्थ। इसकी कानूनी परिभाषा उलझाने वाली है। अदालतों और वकीलों के अनुसार बदल भी सकती है।
  • कोई किताब या वस्तु तब अश्लील होती है जब IPC के सेक्शन 292 के मुताबिक वह कामुक या अविवेकशील हो या किसी को कमजोर करने का इफेक्ट डालने वाली या किसी को भ्रष्ट करने वाली हो। कामुक, विवेकशील, कमजोर और भ्रष्ट की परिभाषा यहां स्पष्ट नहीं है। इससे क्या ऑब्सीन है और क्या नहीं, यह तय करना अदालतों का काम हो गया है। इसमें भी तीन महीने तक की सजा भी है।
  • इंफर्मेशन टेक्नोलॉजी (IT) एक्ट (इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट में अश्लील सामग्री), इंडिसेंट रिप्रेजेंटेशन ऑफ वुमन प्रोहिबिशन एक्ट (महिलाओं का अश्लील चित्रण), यंग पर्संस हार्मफुल पब्लिकेशन एक्ट (बच्चों को भ्रष्ट करने वाली अश्लील सामग्री) और सिनेमेटोग्राफ एक्ट (फिल्मों में अश्लील दृश्य) में भी अश्लील सामग्री को परिभाषित किया गया है। इसके लिए अलग-अलग सजा तय है।

अदालतें कैसे तय करती हैं कि क्या अश्लील है और क्या नहीं?

  • सुप्रीम कोर्ट ने 1965 में रणजीत उदेशी मामले में ब्रिटिशकालीन हिकलिन टेस्ट को अपनाया। इसके आधार पर तय होने लगा कि कोई वस्तु या किताब अश्लील है या नहीं। इसके मुताबिक कोई मामला अश्लील माना जा सकता है, यदि उसमें लोगों के दिमाग को भ्रष्ट करने की क्षमता हो। यह प्रकाशन ऐसे लोगों के हाथों में पड़ सकता हो, जिनका दिमाग इसे पढ़कर भ्रष्ट हो जाएं।
  • हालांकि, 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अवीक सरकार केस में हिकलिन टेस्ट को खारिज किया। इसके स्थान पर अमेरिकन रोथ टेस्ट को अपनाया। यह आधुनिकता के करीब है। इसका कहना है कि सामान्य व्यक्ति की नजर में जो सामग्री अश्लील हो, वह अश्लील है। इसमें उस समय के कम्युनिटी स्टैंडर्ड्स को आधार बनाना चाहिए।
  • नई व्यवस्था का मतलब यह है कि कम्युनिटी स्टैंडर्ड्स टेस्ट में समाज के बदलते मूल्यों को ध्यान में रखा जाए। एक सदी या एक दशक पहले जो अश्लील था, वह आज भी अश्लील हो यह जरूरी नहीं।

क्या यह अश्लीलता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे से बाहर है?

  • नहीं। यह दोनों अलग मामले हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले कई केस में कहा है कि संविधान के आर्टिकल 19 के मुताबिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि आप स्वच्छंद हो जाओ। आप जो भी करो, वह नैतिकता और शालीनता के दायरे में होना ही चाहिए।
  • इसका मतलब यह है कि जब बात अश्लीलता या अश्लील सामग्री की आती है तो उसे नैतिकता पर समुदाय के स्टैंडर्ड्स पर खरा उतरना चाहिए। भारतीय अदालतों ने हमेशा से नैतिकता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विवाद में आर्टिस्टिक फ्रीडम का पक्ष लिया है। 2008 में एमएफ हुसैन केस में यही व्यवस्था दी गई थी।
  • सुप्रीम कोर्ट ने 2016 के पेरुमल मुरुगन जजमेंट में कहा कि कला अक्सर उत्तेजक होती है और यह सबके लिए नहीं होती। किसी सामग्री को इस आधार पर अश्लील नहीं कहा जा सकता कि वह समाज के एक तबके के स्टैंडर्ड्स पर खरी नहीं उतरती।

क्या इससे पहले भी इस तरह के मामलों में मुकदमे चले हैं?

  • आजादी मिलने के पहले से ही अश्लीलता कानून के तहत मुकदमे चलते रहे हैं। सआदत हसन मंटो, इस्मत चुगतई समेत कई लेखकों के खिलाफ भी कामुकता को लेकर केस दर्ज हुए हैं। लेडी चैटर्ली’ज लवर जैसे नॉवेल और भारत माता पेटिंग्स से लेकर बैंडिट क्वीन एआईबी रोस्ट जैसे कॉमेडी शो भी अश्लीलता के आरोपों से घिरे रहे हैं।
  • हॉलीवुड एक्टर रिचर्ड गेर ने 2007 में एड्स अवेयरनेस कार्यक्रम में शिल्पा शेट्टी को गाल पर चूम लिया था। इस पर गेर के खिलाफ अरेस्ट वारंट तक जारी हो गया था। केरल में 2014 में पब्लिक में किसिंग के खिलाफ किस ऑफ लव कैम्पेन चला। सरकार ने अश्लीलता कानून के तहत कार्रवाई की धमकी दी तो कैम्पेन खत्म हुआ।
  • सोमन की ही बात करें तो 1995 में मॉडल मधु सप्रे के साथ एक एडवरटाइजमेंट में बिना कपड़े के दिखने पर अश्लीलता के आरोपों पर केस चला है। 14 साल चले ट्रायल के बाद उन्हें बरी किया गया। फिर प्रोतिमा बेदी का किस्सा भी तो है जब 1974 में वह मैगजीन फोटोशूट के लिए मुंबई के बीच पर बिना कपड़ों के दौड़ गई थीं।

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