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सुपरमैन नहीं, सुपर स्प्रेडर हैं डोनाल्ड ट्रम्प; उनको दोबारा राष्ट्रपति चुनना सामूहिक पागलपन होगा

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वॉशिंगटनएक दिन पहलेलेखक: थॉमस एल. फ्रेडमैन

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  • महामारी के दौर में ट्रम्प के नजरिए ने उनके साथ देश को भी नुकसान पहुंचाया
  • फेस मास्क संस्कृति का प्रतीक नहीं है, ये जिम्मेदारी और कॉमन सेंस की बात है

आज की तारीख में सबसे बड़ा सवाल यह नहीं है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कोरोना पॉजिटिव होने के बाद क्या सीखा। क्योंकि वे उन लोगों में शुमार हैं, जो कभी सीखते नहीं हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि बतौर नागरिक हमने क्या सीखा? इससे भी ज्यादा जरूरी यह कि ट्रम्प के समर्थकों ने क्या सीख हासिल की। दरअसल, ट्रम्प सुपरमैन नहीं, बल्कि सुपर स्प्रेडर हैं। महामारी के दौर में उनके नजरिए ने उनके साथ देश को भी खतरनाक तरीके से नुकसान पहुंचाया। अगर, फिर भी उन्हें दोबारा राष्ट्रपति चुना जाता है तो यह सामूहिक पागलपन के अलावा और कुछ नहीं होगा।

दारोमदार ट्रम्प पर
क्या हम जिस तरह सोच रहे हैं, क्या वैसा ही काफी वोटर्स भी सोच रहे हैं? अब यह इस पर निर्भर करता है कि बाइडेन कैसे लोगों को ट्रम्प की बुनियादी गलतियों के बारे में बता पाते हैं। महामारी के दौरान सावधानी रखना कमजोरी नहीं, बल्कि समझदारी है। फेस मास्क संस्कृति का प्रतीक नहीं हैं। ये जिम्मेदारी और कॉमन सेंस की बात है। सबको पहनना चाहिए। महामारी में खुद को बाहुबली की तरह पेश करना ताकतवर होना नहीं है। लॉकडाउन में नियमों का पालन करना आजादी का छिन जाना भी नहीं हैं। वैज्ञानिक और नेताओं में फर्क होता है। अगर आपके कस्टमर्स और स्टाफ मास्क पहन रहे हैं तो इससे दोनों को ही फायदा होगा।

राष्ट्रपति ने गलती की
वैसे तो सरकार का काम हमेशा गंभीर होता है, लेकिन महामारी के दौर में तो यह लोगों की जिंदगी और मौत का मामला हो जाता है। आज टीचर्स से लेकर साइंटिस्ट्स तक हर कोई लीडर की तरफ देख रहा है। लोग निराश और परेशान हैं। इसलिए ट्रम्प लीडर और व्यक्तिगत तौर पर दोहरी गलती करते नजर आते हैं। महामारी के दौर में तो वे सबसे खराब लीडर साबित हुए।

एथिक्स एंड कम्प्लायंस कंपनी के चेयरमैन डव सीडमैन कहते हैं- जिन लोगों पर लोगों की जिंदगी बचाने का जिम्मा है, अगर वे ही गलत सलाह या मिसाल देंगे तो क्या होगा। आज हम उसी लीडरशिप के संकट का सामना कर रहे हैं। लोगों को ये समझ नहीं आ रहा है कि वे आखिर किस पर भरोसा करें।

कुदरत से जंग गलत
महामारी प्रकृति की वजह से आई। लेकिन, ट्रम्प इसे बाजार से जोड़कर देख रहे हैं। राष्ट्रपति और उनके सलाहकार इसकी गंभीरता को कम करके दिखा रहे हैं, ताकि बाजार में अफरातफरी न फैले। इसकी वजह ये है कि मार्केट दुरुस्त रहा तो ट्रम्प के दोबारा जीतने की संभावनाएं भी होंगी।

मार्च की बात है। व्हाइट हाउस में मीडिया से बातचीत के दौरान कैलीन कोन्वे एक सवाल पर इसीलिए भड़क गईं थीं। उन्होंने एक रिपोर्टर से पूछा था- क्या आप डॉक्टर हैं या वकील हैं? जो ये कह रहा है कि वायरस की रोकथाम नहीं हो सकती। महामारी के दौरान प्रकृति आपसे कुछ सवाल करती है। लेकिन, सही जवाब नहीं मिलते तो समाज को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। ट्रम्प प्रकृति के प्रति नर्म नहीं हैं। उनकी नजर में इससे निपटने की विचारधारा राजनीति, बाजार और इलेक्शन कैलेंडर में छिपी हुई है।

फिर क्या चाहते हैं ट्रम्प
राष्ट्रपति चाहते हैं कि लोग सिर्फ दो बातों पर भरोसा करें। पहली- इकोनॉमी को खोल दिया जाए और वायरस को नजरअंदाज किया जाए। दूसरी- इकोनॉमी बंद कर दी जाए और वायरस से डरकर घर में बंद हो जाएं। ट्रम्प का दावा है कि डेमोक्रेट्स डरने वाला ऑप्शन ही पसंद कर रहे हैं। लेकिन, सवाल यह है कि क्या हम इकोनॉमी को सावधान होकर ज्यादा बेहतर तरीके से नहीं खोल सकते। क्या वायरस को नजरअंदाज करना ही जरूरी है।

सही तरीका अपनाएं
इकोनॉमी खोलने में किसको दिक्कत हो सकती है। लेकिन, कुछ आसान कदम उठाकर भी तो ये किया जा सकता है। जैसे- मास्क पहना जाए, सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन की जाए। इससे लोग दुकान, स्कूल या अपने काम पर आसानी से जा पाएंगे। बीमारी से भी बचा जा सकेगा। जो बाइडेन भी तो यही प्रस्ताव दे रहे हैं। लेकिन, ट्रम्प बेफिक्र होकर इकोनॉमी खोलने की बात करते हैं। न मास्क को प्राथमिकता देते हैं और न सोशल डिस्टेंसिंग को। आदमी घर से निकलेगा तो बीमार होकर लौटेगा।

दरअसल, ट्रम्प न तो प्रकृति का सम्मान कर रहे हैं और न हमारा। मैं प्रार्थना करता हूं कि उनके समर्थक सही बात सीखेंगे और समझेंगे। और तीन नवंबर को ट्रम्प के खिलाफ वोट देंगे। कई अमेरिकी नागरिकों की जिंदगी और रोजीरोटी इसी पर निर्भर है।

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