भोपाल3 घंटे पहले
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- मर्जर एग्रीमेंट में भी थी आफताब जहां की जमीनें
नवाब हमीदुल्ला खां की दूसरी पत्नी आफताब जहां बेगम के नाम की कोहेफिजा, खानूगांव, ईदगाह हिल्स, लालघाटी, संत हिरदाराम नगर समेत कुछ गांवों में स्थित प्रॉपर्टी शत्रु संपत्ति के रूप में सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं होने के मामले में अब एक नई बात भी सामने आई है। मर्जर एग्रीमेंट के तहत लाउखेडी, बोरबन, बेहटा, हलालपुरा, निशातपुरा, शाहपुरा, सेवनिया गौंड, कोटरा की ढाई हजार एकड़ जमीन में भी आफताब जहां बेगम हिस्सेदार थीं। उनके उत्तराधिकारी के रुप में किसी का नाम सरकारी रिकॉर्ड में नहीं है। ऐसे में उनके नाम से हिबानामा-इनायतनामे से जमीनें कैसे बिक गईं और सरकारी क्यों घोषित नहीं हो पाई?
कलेक्टर अविनाश लावनिया ने कहा कि इसकी जांच होगी। कलेक्टोरेट में मंगलवार को नजूल अमला फाइलों काे खंगालता रहा। उन हिबानामों-इनायतनामों को भी खंगाला जा रहा है, जिन्हें आफताब जहां बेगम का होना बताकर जमीनों के अलग-अलग वर्षों में नामांतरण हुए हैं। यह भी पता लगाया जा रहा है कि आफताब जहां बेगम ने 2 मई 1977 को जो पत्र कराची से भारत सरकार को लिखा था, वह अब तक कहां दबा रहा। प्रशासन इस बात का पता लगाएगा कि नवाब हमीदुल्ला खां की संपत्तियों के बंटवारे के केस में दो फैसले भोपाल जिला अदालत से 14 फरवरी 2000 में हुए थे। इनमें आफताब जहां बतौर प्रतिवादी थीं।
लेकिन उनकी ओर से कोई पैरवी पूरे केस में कभी नहीं हुई। इस जजमेंट के दो माह के अंदर ही उनका इंतकाल हो गया था। फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में दो अपील लंबित हैं। उनमें भी उनकी ओर से पैरवी नहीं हो रही। उनके उत्तराधिकारी के रूप में किसी का नाम रिकॉर्ड में नहीं है। ऐसे में उनके नाम से हिबानामा-इनायतनामे से जमीन कैसे बिक गई और सरकारी क्यों घोषित नहीं हो पाईं। वहीं घर बचाओ संघर्ष समिति के उप संयोजक जगदीश छावानी ने आफताब जहां के पत्र की वैधानिकता पर संदेह जताया हैं।
पत्र में आफताब जहां ने लिखा-सभी अधिकार छोड़े
भारत सरकार को लिखे पत्र में उल्लेख है कि नवाब की मृत्यु 4 फरवरी 1960 को होने के बाद वे पाकिस्तान आ गईं। नवाब ने कोहेफिजा, खानूगांव, लाउखेड़ी, बोरवन, बेहटा, हलालपुर समेत सीहोर, रायसेन की जमीनें उन्हें दी थीं। उन्होंने हिबानामा, इनायत नामा और पावर ऑफ अटार्नी किसी को भी नहीं दी है। यदि कोई दावा करता है तो अवैध माना जाए।
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