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बचपन में पिता की मौत, निरक्षर मां ने की अनुकंपा नौकरी, बेटा एनआईटी से बना इंजीनियर

दैनिक भास्कर

Jun 03, 2020, 04:30 PM IST

एजुकेशन डेस्क. बिहार के मधुबनी के बरदाही गांव के रहने वाले हरिओम के पिता रामकृपाल महतो पेशे से केमिस्ट्री के प्रोफेसर थे। वे अपने चार बच्चे-बच्चियों के साथ हंसी-खुशी जीवन यापन कर रहे थे। उनके चार बच्चों में हरिओम सबसे बड़ा था।
बात उस समय की है जब हरिओम आठवीं कक्षा में पढ़ रहा था। हरिओम के पिता को एक बार खांसी क्या हुई घर में तूफान आ गया। उन्हें साधारण खांसी थी, लेकिन गांव के डॉक्टर्स ने टीबी करार दे दिया और उसकी दवा शुरू कर दी। इसका असर सीधा किडनी पर हुआ। धीरे-धीरे उनकी किडनी पूरी तरह से खराब हो कई। लेकिन, पैसे के अभाव में हरिओम के पिता की असमय मृत्यु हो गई।

अचानक ही पूरे परिवार की जिम्मेदारी हरिओम की मां वीणा देवी के कन्धों पर आ गयी। निरक्षर वीणा देवी के लिए घर-परिवार चलाना एक चुनौती से कम नहीं था। वीणा देवी ने अपने पति की जगह पर अनुकंपा के आधार पर मिलने वाली नौकरी के लिए आवेदन कर दिया था। नौकरी मुजफ्फरपुर शहर में लगी। हरिओम ने बताया कि उसकी मां के लिए नए शहर में अपने चारों बच्चों के साथ रहना बड़ा कठिन काम था। चूंकि मां की शिक्षा पर्याप्त नहीं थी, लिहाजा आदेशपाल की नौकरी से ही गुजर-बसर करना पड़ा।

किताब खरीदने के लिए बेचना पड़ा था घर का सामान 
उस छोटी सी नौकरी से मिलने वाले वेतन से चार बच्चों की परवरिश करना कोई आसान काम नहीं था। कई बार बच्चों की किताब खरीदने के लिए घर का कुछ सामान बेचना पड़ता था। एक बार परिस्थिति इतनी विकराल बन गई कि घर के कुछ बर्तन तक बेचने पड़े। लेकिन हरिओम मां का दामन थामे रहा और मां ने हौसलों का। बहुत शांत रहने वाला हरिओम बचपन से ही कुछ नया करना चाहता था लेकिन, अब परिस्तिथियां बदल चुकी थीं। हरिओम सरकारी स्कूल से दसवीं और फिर बारहवीं पास करके मेरे सामने खड़ा था। हालात ने उसे संकोची बना दिया था, लेकिन सच्ची प्रतिभा संकटों के काले बादल को चीर कर आगे बढ़ जाती है। क्लास के बाद हरिओम कुछ भी नहीं करता था। बस चुपचाप कमरे के एक कोने में बैठकर घंटों पढ़ते रहता था।

आईआईटी में प्रवेश न मिलने पर भी हार नहीं मानी 
लगातार कठोर परिश्रम के बावजूद वह आईआईटी प्रवेश परीक्षा में सफल नहीं हो सका। लेकिन, उसी साल 2005 में उसे एनआईटी पटना में अच्छे ब्रांच में प्रवेश मिला गया। वहां भी उसने जमकर पढ़ाई की। कहते हैं कि मेहनत इतनी खामोशी से करनी चाहिए कि सफलता शोर मचा दे। और कुछ ऐसा ही कर दिखाया हरिओम ने। 2009 में पढ़ाई खत्म होने से पहले ही एनटीपीसी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में उसकी नौकरी लग गई। आज उसकी मां को बेटे पर बहुत गर्व है। यही नहीं उसने अपने तीनों छोटे भाई-बहन को भी अच्छे से पढ़ा दिया है। हरिओम की छोटी बहन अधिकारी बन गई है। एक छोटा भाई बीएसएनएल में इंजीनियर है। एक और भाई अभी दिल्ली में पढ़ाई कर रहा है। आज हरिओम के गांव में उसकी पहचान एनटीपीसी वाले इंजीनियर साहब की है।

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