- सरकार को संदेह है कि कई ऐसे देशों से होकर भी बड़े पैमाने पर चीन के माल भारत में आ रहे हैं, जिनके साथ भारत का व्यापार समझौता है
- अन्य देश से होकर चीन से भारत में हो रहे आयात, इन्वर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर और स्रोत संबंधी नियमों में अस्पष्टता जैसे मुद्दों पर गौर कर रही सरकार
दैनिक भास्कर
Jun 22, 2020, 03:57 PM IST
नई दिल्ली. चीन से हो रहे आयात पर देश की निर्भरता घटाने के लिए सरकार कई अन्य देशों के साथ अपने व्यापार समझौतों की समीक्षा कर रही है। सरकार को संदेह है कि कई ऐसे देशों से होकर भी बड़े पैमाने पर चीन के माल भारत में आ रहे हैं, जिनके साथ भारत का व्यापार समझौता है। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने कहा कि किसी तीसरे देश से होकर चीन से भारत में हो रहे आयात, उल्टी (इन्वर्टेड) शुल्क संरचना और स्रोत संबंधी नियमों में अस्पष्टता जैसे मुद्दों पर सरकार की नजर है। जिन वस्तुओं का मुक्त व्यापार समझौतों और द्वीपक्षीय समझौतों के तहत व्यापार हो रहा है और जिन उत्पादों के मामले में इन्वर्टेड ड्यूटी स्ट्र्रक्चर जैसे मुद्दे उठ रहे हैं, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय उन वस्तुओं और उत्पादों के लिए स्थानीय उद्योग की स्थापित क्षमता के विवरण जुटा रहा है।
सिंगापुर, जापान, दक्षिण कोरिया व श्रीलंका के साथ द्वीपक्षीय समझौतों की खास तौर से समीक्षा होगी
इस कवायद के जरिये सरकार यह जानना चाहती है कि क्या इन समझौतों के कारण तैयार उत्पादों पर लगने वाला शुल्क इंटरमीडिएट या कच्चे माल पर लगने वाले शुल्क से कम हो जाता है। ऐसी स्थिति को इन्वर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर कहा जाता है। साउथ एशियन फ्री ट्र्रेड एरिया (साफ्टा) के तहत आने वाले दक्षिण एशियाई देशों और आसियान समूह के देशों के साथ ट्र्रेड अरेंजमेंट और सिंगापुर, जापान, दक्षिण कोरिया व श्रीलंका के साथ द्वीपक्षीय समझौतों की खास तौर से समीक्षा की जा रही है। सरकार उन खामियों को दूर करना चाहती है, जो चीन से होने वाले आयात को बढ़ाने का काम करती हैं। भारत को संदेह है कि चीन इन देशों से होकर अपने माल भारत में भेजता है।
ऐसे आयातों की भी जांच होगी, जिनमें वस्तुओं की कीमत कम दिखाई जा रही है
भारत और चीन के बीच एकमात्र सक्रिय व्यापार समझौता एशिया पैसेफिक ट्रेड एग्रीमेंट या एपीटीए (पुराना नाम बैंकॉक एग्रीमेंट) की भी समीक्षा की जा रही है। इस समूह के सदस्यों में दक्षिण कोरिया, बांग्लादेश, लाओस और श्रीलंका भी शामिल हैं। एक अधिकारी के मुताबिक यह संदेह है कि इन देशों के साथ हुए मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) का दुरुपयोग हो रहा है और स्रोत संबंधी नियमों का उल्लंघन करते हुए इन देशों से होकर चीन के सामान भारत में प्रवेश कर रहे हैं। चीन से होने वाले ऐसे आयातों की भी जांच की जाएगी, जिनमें वस्तुओं की कीमत कम दिखाई जा रही है। इन्हें अंडर एनवॉयसिंग कहा जाता है।
अन्य देशों के जरिये मामूली शुल्क पर भारत आ रहे चीनी माल
2017-18 में सिंगापुर, जापान और आसियान देशों से होने वाले आयात में अचानक भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। इसके बाद से इन देशों से काफी आयात हो रहा है। कारोबारी साल 2019-20 के पहले 11 महीनों में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा करीब 47 अरब डॉलर का था। उद्योग के एक अधिकारी ने कहा कि चीन वियतनाम में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है। वहां से उसके माल का बिना जांच-पड़ताल के आयात हो रहा है, वह भी काफी कम शुल्क पर।
भारत चीन को प्राथमिक वस्तुओं और कच्चे माल का निर्यात करता है
भारत मोटे तौर पर चीन को प्राथमिक वस्तुओं और कच्चे माल का निर्यात करता है। इनमें पेट्रोलियम उत्पाद, ऑर्गनिक केमिकल्स, लौह अयस्क, कॉटन और प्लास्टिक रॉ मटेरियल्स शामिल हैं। दूसरी ओर चीन से मुख्यत: इंटरमीडिएट और फिनिश्ड गुड्स का आयात होता है। इनमें टेलीकॉम इंस्टट्र्रूमेंट्स, इलेक्ट्र्रॉनिक कंपोनेंट्स, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, एक्टिव फार्माश्यूटिकल इनग्रेडिएंट्स और मशीनरी जैसे उत्पाद शामिल हैं।
गैर जरूरी आयात को जब्त करने का अधिकार कस्टम अधिकारियों को दिया जा सकता है
स्टील जैसे डुअल यूज प्रोडक्ट्स में इन्वर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर को ठीक किया जाना कठिन है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि जिन वस्तुओं का भारत में उत्पादन हो रहा है उनके गैर जरूरी आयात को जब्त करने का अधिकार कस्टम अधिकारियों को दिया जा सकता है। अधिकारी ने कहा कि हम जरूरत से ज्यादा आयात को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए सभी टैरिफ और नॉन टैरिफ इंस्ट्रूमेंट्स का उपयोग किया जाएगा। इनमें एंटीडंपिंग ड्यूटी, काउंटरवेलिंग ड्यूटी, सेफगार्ड ड्यूटी और क्वालिटी कंट्र्रोल भी शामिल हैं।
चीन ने भारत के प्रतियोगियों के लिए शुल्क में भारी कटौती कर दी है
मुद्दा इसलिए भी गंभीर है क्योंकि चीन ने भारत के प्रतियोगियों जैसे पेरू, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और आसियान समूह के साथ मुक्त व्यापार समझौता कर उनके लिए शुल्क में भारी कटौती कर दी है। इसके कारण भारत से चीन को होने वाला कुछ निर्यात खिसक कर उन देशों में चला गया है। दिल्ली के एक व्यापार विशेषज्ञ ने कहा कि भारत यदि रीजनल कंप्रीहेंसिव इकॉनोमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) में शामिल हो जाता, तो सरकार इस तरह के कदम उठाने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। ऐसे में कोई भी यह समझ सकता है कि घरेलू उद्योग की मुश्किल कितनी बढ़ जाती।