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दिल्ली में स्टेशन के बाहर निकलते ही खत्म हो गई सोशल डिस्टेंसिंग, सिर्फ गेट से निकलने के लिए आरपीएफ जवान ने लाइन लगवाई

  • स्टेशन के बाहर काली-पीली टैक्सी में पांच-पांच सवारियों को बिठाकर ले गए चालक, एहतियात के तौर पर बस मुंह पर मास्क था, सोशल डिस्टेंसिंग जीरो
  • महीनों से अलग-अलग शहरों में फंसे लोग अपने घरों तक जाने के लिए पहले दिल्ली पहुंचे, यहां से पकड़ेंगे कनेक्टिंग ट्रेन
अक्षय बाजपेयी

अक्षय बाजपेयी

Jun 02, 2020, 05:56 PM IST

भोपाल. निजामुद्दीन स्टेशन से लाइव रिपोर्ट,

भोपाल एक्सप्रेस सुबह करीब सवा आठ बजे दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन स्टेशन पर पहुंच गई थी। ट्रेन से उतरने में यात्रियों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया। हालांकि गेट के पास आरपीएफ के जवान तैनात थे, जिस कारण यहां लाइन में लगाकर लोगों को बाहर किया गया।

लेकिन बाहर निकलते ही यात्री फिर एक साथ जुटने लगे। हर किसी ने मास्क पहना था लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग कोई फॉलो नहीं कर रहा था। टैक्सी चालक चार-चार, पांच-पांच यात्रियों को एक साथ बिठाकर ले गए। गाड़ियों में बैठते वक्त सोशल डिस्टेंसिंग की फ्रिक न ही वाहन चालक ने की और न ही यात्रियों ने इस बारे में कुछ सोचा।

जबलपुर, बेंगलुरू और भोपाल से दिल्ली आने वाली ट्रेनों में कई ऐसे लोग आए हैं, जो महीनों से इधर-उधर फंसे थे। अपने राज्य की सीधी ट्रेन न मिलने के चलते ये लोग पहले दिल्ली आए और यहां से दूसरी ट्रेन पकड़कर अपने घरों को जा रहे हैं।

ट्रेन में भले ही लोग सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रख रहे हों, लेकिन स्टेशन पर उतरते ही लोग भूल गए कि कोरोना से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी है।

भोपाल में पिछले तीन साल से आईएएस की तैयारी कर रहे रिषभ भूटानी भी भोपाल एक्सप्रेस से मंगलवार सुबह निजामुद्दीन पहुंचे। रिषभ ने बताया कि, मैं भोपाल में नेहरू नगर में किराया का कमरा लेकर रहता था। लॉकडाउन के बाद से खाने-पीने की बहुत दिक्कत हुई। मैंने कई दिनों तक थाने में जाकर दोनों टाइम खाना खाया है। वहां से पैकेट मिल जाते थे।

रिषभ जयपुर के रहने वाले हैं। दिल्ली से राजस्थान रूट की ट्रेन पकड़कर जयपुर पहुंचेंगे। बोले मेरे पिताजी एक बार मुझे लेने आए थे लेकिन वे आगरा से आगे नहीं बढ़ सके। अब मैं पढ़ाई जयपुर में रहकर ही करूंगा। भोपाल नहीं आऊंगा।

जबलपुर से दिल्ली पहुंची संगीता वर्मा ने बताया कि, मेरा तीन साल का बच्चा है। वो अपने पापा के साथ दिल्ली में था और मैं अकेली जबलपुर में फंस गई थी। बच्चे के बिना एक-एक पल काटना मुश्किल हो गया। जैसे ही रिजर्वेशन शुरू हुए, सबसे पहले सीट बुक की। करीब ढाई महीने बाद आज अपने बच्चे से मिल पाऊंगी।

स्टेशन के बाहर ठीक वैसे ही भीड़ आज भी जमी थी, जैसी कोरोना के पहले जमी रहती थी। फर्क बस इतना था कि इस बार यात्रियों की संख्या थोड़ी कम थी।

बेंगलुरू से दिल्ली पहुंचे बलबीर सिंह हमें निजामुद्दीन स्टेशन के बाहर मिले। पूछा कहां जा रहे हैं तो बोले, सर राजस्थान जाना है लेकिन वहां की सरकार को तो न ट्रेन बर्दाश्त है न जहाज। बोले, मैं बेंगलुरू में मार्बल का बिजनेस करता हूं। पूरा परिवार हिंडन में रहता है। लॉकडाउन के पहले ही दो महीने से घर नहीं गया था। फिर सब बंद हो गया।

मैंने 1 जून की फ्लाइट की टिकट बुक करवाई थी लेकिन 31 मई को दोपहर में मैसेज आया कि आपकी फ्लाइट कैंसिल हो गई है। पैसा भी रिफंड नहीं मिलेगा। आप चाहें तो टिकट आगे बढ़वा सकते हैं। मैंने 6 हजार रुपए में टिकट बुक की थी। इसके बाद तुरंत बेंगलुरू से दिल्ली वाली ट्रेन में रिजर्वेशन करवाया। यहां से हिंडौल की ट्रेन से उससे करीब 6 माह बाद अपने परिवार के पास जाऊंगा।

दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन स्टेशन की तस्वीरें :

ट्रेन से उतरते ही और स्टेशन से बाहर आते समय यात्री सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना तो भूल ही गए।
प्लेटफॉर्म पर भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाने के लिए एक मीटर की दूरी पर मार्किंग की गई है। आरपीएफ के जवान भी बार-बार लोगों से सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने की अपील कर रही है।
स्टेशन के अंदर चार लोगों के बैठने वाली कुर्सियों पर अब दो ही लोग बैठ रहे हैं। कुर्सी पर दो ही बैठें, इसके लिए बीच की दो कुर्सियों पर क्रॉस मार्किंग कर दी है।
हजरत निजामुद्दीन स्टेशन के गेट के बाहर आरपीएफ का एक जवान खड़ा है। यही लोगों को बाहर आते देख लाइन लगाकर और दूरी बनाकर आने की अपील कर रहा है।
स्टेशन के बाहर डीटीसी की बसें, टैक्सियां और ऑटो वाले खड़े हैं। यात्रियों के बाहर निकलते ही ऑटो वाले उन्हें घेर ले रहे हैं।

ये भी पढ़ें :

पहली रिपोर्ट : भोपाल से दिल्ली, ट्रेन का सफर / आरपीएफ-जीआरपी जवानों को देखते ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते दिखे लोग, उन्हें डर था कि यात्रा से ना रोक दिया जाए

दूसरी रिपोर्ट : भोपाल से दिल्ली, ट्रेन का सफर / पहली बार इस ट्रेन की आधी सीटें खालीं, डर इतना कि लोग आपस में बात करने से भी बच रहे थे

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