कई भारतीय सैनिकों के शहीद होने के बाद भारत-चीन के बीच सीमा पर तनाव काफी बढ़ गयाहै। यह टेलीकॉम इक्विपमेंट से लेकर हर एक सेक्टर से जुड़ी भारतीय मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों के लिएआत्मनिर्भर बनने के अवसर के रूप में भीआया है। अगर भारत, चीन से आयात न करेतो भारतीय कंपनियों कोदेश में ही 75 अरब डॉलर का बाजार मिल सकता है।हाल में कोविड-19 के 20.97 लाख करोड़ रुपए के पैकेज में प्रधानमंत्री नेआत्मनिर्भर भारत पर जोर दिया था।
भारत चीन से 75 अरब डॉलर से ज्यादा मूल्य के प्रोडक्टका आयात करता है। आयात का यह वॉल्यूम भारतीय कंपनियों के लिए एक बड़ा अवसर है। फार्मा एपीआई, टेलीकॉम, सोलर पैनल, स्मार्ट फोन, टेलीविजन से लेकर हर एक सेक्टर में मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट लगाने से अच्छा खासा रेवेन्यू मिल सकता है।साथ ही, कंपनियां दूसरे देशों को निर्यात भी कर सकती हैं।
टेलीकॉम विभाग के पूर्व सेक्रेटरी श्यामल घोष के नेतृत्व वाली टेलीकॉम इक्विपमेंट प्रोमोशन कॉउन्सिल (टीईपीसी) और टेलीकॉम इक्विपमेंट मैनुफैक्चरिंग एसोसिएशन (टेमा) जैसे संस्थानों ने कहा है कि वे जल्द ही केंद्र से चीन द्वारा संचालित नेटवर्क उपकरणों को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने के लिए कहेंगे।
टेमा के अध्यक्ष एन के गोयल ने कहा कि भारत के साथ कई वर्षों से चीन का सीमा विवाद है। इसलिए भारत में चीन के टेलिकॉम इक्विपमेंट निर्माताओं पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत है। भारतीय कंपनियों ने हालांकि यह भी कहा है कि 2015 में शुरू किए गए मेक इन इंडिया कार्यक्रम के बहुत प्रचार के बावजूद नोडल मंत्रालयों के अधिकारियों द्वारा लोकल उत्पादित प्रोडक्ट्स को कभी भी सच्ची भावना से लागू नहीं किया गया।
बैंक ऑफ बड़ौदा में मुख्य अर्थशास्त्री समीर नारंग कहते हैं कि आने वाले कुछ वर्ष दोनों देशों के आर्थिक हित की तेजी के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। मैनुफैक्चरिंग इम्पोर्ट का स्तर ऊंचा होने के कारण भारत का चीन के साथ बड़ा व्यापार घाटा बढ़ा है। भारत का प्रतिस्पर्धी लाभ (competitive advantage) सर्विस है। अगर भारत चीन के सेवाओं के आयात, विशेष रूप से पर्यटन में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकता है तो भारत के व्यापार घाटे को दूर किया जा सकता है ।
तेजस नेटवर्क्स, विहान नेटवर्क्स, स्टरलाइट टेक्नोलॉजीज, कोरल टेलीकॉम और पॉलीकैब इंडिया जैसी देसी कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वालेटेलीकॉम ग्रुप ने कहा कि वेप्रधानमंत्री से मांग करेंगे किवाणिज्य मंत्रालय और संचार मंत्रालय को कड़े शब्दों में दिशा निर्देश जारी किए जाएं।आत्मनिर्भरपहल के तहत स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा देने के लिए, टेमा द्वारा गठितएसोसिएशन का कहना है कि चीन पर निर्भरता समाप्त करने के लिए यह सबसे अच्छा समय है।
ग्लोबल रेवेन्यू के लिहाज से चीन की भारत में प्रमुख कंपनियां
- चीन की भारत में प्रमुख कंपनियों में ओपो ने 2018-19 में कुल 1.8 अरब डॉलर का रेवेन्यू हासिल किया है।
- विवो ने इसी अवधि में 1.5 अरब डॉलर का रेवेन्यू हासिल किया है।
- फोसन इंटरनेशनल हेल्थकेयर कंपनी है और इसने 15.9 अरब डॉलर का रेवेन्यू जनरेट किया है।
- मीडिया होम अप्लायंस कटेगरी की कंपनी है इसने 38.6 अरब डॉलर का रेवेन्यू 2018-19 में जनरेट किया है। इसकी क्षमता 5 लाख रेफ्रिजरेटर, 6 लाख वॉशिंग मशीन और 10 लाख घरेलू उपकरणों कि निर्माण की है।
- सैक ऑटोमोटिव कंपनी है। यह सालाना 80 हजार यूनिट का निर्माण करती है। इसका रेवेन्यू 5.9 अरब डॉलर का रहा है।
- हायर इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी है। इसका रेवेन्यू 12.4 अरब डॉलर रहा है।
गोयल का कहना है कि पहले भी चीन के साथ गंभीर टकराव हुए हैं और ऐसी अनिश्चित स्थिति से टेलीकॉम में होने वाली चीनी आपूर्ति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ सकता है जो भारतीय टेलीकॉम नेटवर्क के लिए घातक बन सकता है। टेलीकॉम डिपार्टमेंट (डीओटी) के पूर्व सलाहकार राकेश कुमार भटनागर ने कहा कि इंडस्ट्री ने अपने स्तर पर पूरी कोशिश की थी कि अगर हम चीनी टेलीकॉम इक्विपमेंट को तरजीह देते हैं तो सुरक्षा पर चेतावनी भी दें।
दिल्ली स्थित टीईपीसी के पूर्व महानिदेशक भटनागर ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की आक्रामकता और भारत-चीन युद्ध जैसी स्थिति पर चीनी उत्पादों पर एकमुश्त प्रतिबंध लगाने के लिए सरकार की असफलता पर संदेह जताया। उन्होंने कहा, "चूंकि भारतीय सैनिकों द्वारा चीन के खिलाफ हमारी मातृभूमि की रक्षा करने की खबरें हैं, पूरे देश को चीनी वायरस के कारण स्वास्थ्य और आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए अब वक्त आ गया है कि हम एक साहसिक निर्णय लें।
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