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नक्शे पर भारतीय इलाकों को अपना दिखाता रहा, भारत ने पूछा तो बोला- नया नक्शा बनाने का टाइम नहीं; 63 साल पहले बिना बताए अक्साई चिन से हाईवे निकाला

  • 1954 और 1958 में चीन ने किताबों और मैगजीन में छापे नक्शे में भारतीय इलाकों को भी अपना हिस्सा दिखा दिया
  • 1956-57 में चीन ने शिंजियांग से तिब्बत तक हाईवे बना दिया, इसकी सड़क अक्साई चिन से भी गुजार दी, भारत को इसकी जानकारी भी नहीं दी

दैनिक भास्कर

Jun 18, 2020, 06:34 AM IST

नई दिल्ली. भारत-चीन के बीच 42 दिन से जारी तनाव अब गहराता जा रहा है। सोमवार रात लद्दाख के पास गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए। इस झड़प में चीन के भी 43 सैनिकों के हताहत होने की खबर है, लेकिन चीन ने अभी तक इसे कबूला नहीं है।

पिछले महीने 5 मई को पूर्वी लद्दाख में दोनों सेनाओं के 200 सैनिक आमने-सामने आ गए थे। तनाव बढ़ने लगा था। फिर दोनों देशों के बीच बातचीत भी हुई और तनाव थोड़ा कम भी हुआ। लेकिन, सोमवार रात को हिंसक झड़प होने के बाद तनाव अब और बढ़ गया है।

लेकिन, ये पहली बार नहीं है जब चीन ने इस तरह की हरकत की हो। चीन में कम्युनिस्ट सरकार आने के 10 साल बाद से ही भारत-चीन के बीच सीमा विवाद शुरू हो गया था और इसकी शुरुआत भी चीन ने ही की थी। इसका नतीजा ये हुआ कि भारत तो हिंदी-चीनी भाई-भाई करता रहा, लेकिन चीन बार-बार झगड़ा करने की फिराक में लगा रहा। 

चीन की 10 हरकतें
1) अपने नक्शों में भारतीय इलाके दिखाए

भारत और चीन के बीच 1 अप्रैल 1950 से डिप्लोमैटिक रिलेशन हैं। 1949 से लेकर 1958 तक चीन ने कभी सीमाओं को लेकर आपत्ति नहीं जताई। हालांकि, 1954 में चीन की एक किताब ‘अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ मॉडर्न चाइना’ में छपे नक्शे में चीन ने लद्दाख को अपना हिस्सा बताया।

बाद में जुलाई 1958 में भी चीन से निकलने वालीं दो मैगजीन ‘चाइना पिक्टोरियल’ और ‘सोवियत वीकली’ में भी चीन ने अपना जो नक्शा छापा, उसमें भारतीय इलाकों को भी शामिल किया गया। भारत ने दोनों ही बार इस पर आपत्ति जताई। लेकिन, चीन ने ये कह दिया कि ये नक्शे पुराने हैं और उनकी सरकार के पास नक्शे ठीक करने का समय नहीं है।

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीन के पहले राष्ट्रपति झोऊ इन-लाई। अप्रैल 1960 में झोऊ भारत दौरे पर आए थे। 

2) हमारे इलाकों में ही हमारी सेना की तैनाती पर आपत्ति
1954 में चीन ने उत्तरप्रदेश के बाराहोती इलाके में भारतीय सैनिकों की तैनाती पर आपत्ति जताई। उस समय उत्तराखंड नहीं था और ये इलाका उत्तरप्रदेश में ही था। चीन का कहना था कि बाराहोती उसका हिस्सा है, जिसे वो वू-जी नाम से बुलाता था। इसके बाद चीन ने भारतीय इलाकों में घुसपैठ शुरू कर दी।

सितंबर 1956 में चीनी सैनिकों ने शिपकी-ला इलाके (अरुणाचल) में घुसपैठ की। जुलाई 1958 में चीनी सैनिकों ने लद्दाख के पास खुरनाक किले पर कब्जा कर लिया। सितंबर-अक्टूबर 1958 में चीन अरुणाचल प्रदेश के लोहित फ्रंटियर डिविजन के अंदर तक आ गया। भारत ने हर बार आपत्ति जताई।

3) बिना बताए ही भारतीय इलाके में सड़क बना दी
अखबार के माध्यम से भारत को पता चला कि चीन ने शिंजियांग से लेकर तिब्बत के बीच एक हाईवे बनाया है। इसकी सड़क अक्साई चिन से भी गुजरी है, जो भारतीय हिस्से में है। इसे कन्फर्म करने के लिए 1958 की गर्मियों में भारत ने दो टीम अक्साई चिन भेजी। चीन ने पहली टीम को तो गिरफ्तार ही कर लिया।

दूसरी टीम जो लौटकर आई, उसने बताया कि शिंजियांग-तिब्बत हाईवे बनकर तैयार है और उसकी सड़क अक्साई चिन से भी गुजर रही है। इस पर भारत ने 18 अक्टूबर 1958 को चीन को लेटर भी लिखा। चीन का जवाब आया कि जो हाईवे बना है, वो पूरी तरह से चीन के हिस्से में है।

4) चीन के राष्ट्रपति ने भारतीय इलाकों को अपना हिस्सा बताया
पूरी स्थिति पर उस समय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चीन के राष्ट्रपति झोऊ इन-लाई को पत्र लिखा। इस पर झोऊ ने 23 जनवरी 1959 को जवाब दिया और सीमा विवाद का मुद्दा उठाते हुए दावा किया कि उसका 5 हजार स्क्वायर मील (करीब 13 हजार स्क्वायर किमी) का इलाका भारतीय सीमा में है। ये पहली बार था जब चीन ने आधिकारिक रूप से सीमा विवाद का मुद्दा उठाया। झोऊ ने ये भी कहा कि उनकी सरकार 1914 में तय हुई मैकमोहन लाइन को भी नहीं मानता।

मैकमोहन लाइन 1914 में तय हुई थी। इसमें तीन पार्टियां थीं- ब्रिटेन, चीन और तिब्बत। उस समय ब्रिटिश इंडिया के विदेश सचिव थे- सर हेनरी मैकमोहन। उन्होंने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किमी लंबी सीमा खींची। इसे ही मैकमोहन लाइन कहा गया। इस लाइन में अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा ही बताया था। 

हालांकि, आजादी के बाद चीन ने दावा किया कि अरुणाचल तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा है और क्योंकि तिब्बत पर अब उसका कब्जा है, इसलिए अरुणाचल भी उसका हुआ। जबकि, भारत का कहना है कि जो भी ब्रिटिशों ने तय किया था, वही भारत भी मानेगा।

ये तस्वीर 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के समय की है। पहाड़ी इलाका होने की वजह से भारतीय सेना को अपने हथियार लाने-ले जाने में काफी दिक्कतें उठानी पड़ती थीं। चीन ने भी उस समय अचानक हमला कर दिया था। भारत उस समय युद्ध के लिए तैयार भी नहीं था।

5) व्यापारिक समझौते पर भारत ने मना किया, तो युद्ध कर दिया
3 दिसंबर 1961 को चीन ने भारत के सामने एक नया व्यापारिक समझौता पेश किया। इस पर भारत ने साफ कर दिया कि जब तक चीन 1954 से पहले की स्थिति पर नहीं आता और अपने सैनिकों को वापस नहीं बुलाता, तब तक हस्ताक्षर नहीं करेगा। इसका नतीजा ये हुआ कि भारत-चीन के बीच जो पहले व्यापारिक समझौता हुआ था, वो 23 मई 1962 को खत्म हो गया। 

1959 के बाद पहली बार 8 सितंबर 1962 को चीन ने मैकमोहन लाइन को पार किया। 13 सितंबर 1962 को चीन ने फिर प्रस्ताव दिया कि अगर भारत समझौते पर हस्ताक्षर करने को तैयार होता है, तो उसकी सेना 20 किमी पीछे जाने को तैयार है। भारत इस पर बात करने को तैयार हो गया। लेकिन, 20 सितंबर को चीन के सैनिक और भारतीय सैनिकों के बीच झड़प हो गई। उसके बाद एक महीने तक बॉर्डर पर तनातनी रही और आखिरकार 20 अक्टूबर 1962 को दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू हो गया। 22 नवंबर 1962 को युद्धविराम हो गया।

6) चीन में भारतीय दूतावास के अधिकारियों को हिरासत में लिया
13 जून 1967 को चीन ने भारतीय दूतावाद के दो अधिकारियों पर जासूसी का आरोप लगाते हुए उन्हें निष्कासित कर दिया और भारतीय दूतावास को सीज कर दिया। भारत ने भी यही किया और नई दिल्ली स्थित चीनी दूतावास को सीज कर दिया। बाद में चीन ने भारतीय दूतावास के अधिकारियों को छोड़ दिया। 

7) सिक्किम में नाथूला के पास चीनी सैनिकों ने मोर्टार दागे
11 सितंबर 1967 को चीन ने तिब्बत-सिक्किम सीमा के पास नाथूला में मोर्टार दागे। 1962 के युद्ध के बाद ये पहला मौका था, जब चीन ने गोलाबारी और फायरिंग की थी। इतना ही नहीं, चीन ने भारतीय सैनिकों के शव को अपने पास ही रख लिया और 15 सितंबर को उन्हें लौटाया। न सिर्फ नाथूला बल्कि छोला के पास भी भारत-चीन के सैनिकों के बीच लड़ाई हुई। हालांकि, दोनों जगह चीनी सेना को ज्यादा नुकसान पहुंचा। नाथूला में भारत के 88 जवान शहीद हुए थे, जबकि चीन के 300 जवान मारे गए थे। वहीं, छोला में चीन के 40 जवानों की जान गई थी।

8) 1962 जैसी हरकत फिर दोहराने लगा
1980 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वास्तविक रेखा (एलएसी) के पास भारतीय सेना की तैनाती बढ़ा दी। साथ ही विवादित जगहों पर इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का काम भी शुरू करवा दिया। 1984 में भारतीय सेना ने अरुणाचल प्रदेश के पास समदोरांग चू  घाटी के पास पैट्रोलिंग बढ़ा दी। उसके दो साल बाद 1986 की सर्दियों में चीनी सेना भी समदोरांग चू घाटी पर तैनात हो गई और वांडुंग में हेलीपैड बना दिया।

चीन की इस हरकत पर उस समय के आर्मी चीफ जनरल के. सुंदराजी ने इलाके में सेना तैनात कर दी। इससे चीनी सेना को पीछे जाना पड़ा। 1987 तक चीन का रुख 1962 की तरह ही रहा और उसकी सेना बार-बार उकसा रही थी। हालांकि, उस समय विदेश मंत्री एनडी तिवारी और प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बातचीत से मसला सुलझा लिया।

जून 2017 में भारत-चीन की सेनाएं डोकलाम के पास 73 दिन तक आमने-सामने थीं। लेकिन, इस दौरान दोनों देशों के बीच हिंसक झड़प नहीं हुई थी।

9) चाल देखिए अरुणाचल के अफसर को वीजा नहीं दिया
चीन शुरू से ही ऐसी चालें चलते आ रहा है, जिससे दुनिया को दिखा सके कि उसकी सीमा से लगे भारतीय हिस्से विवादित हैं। 2007 में अरुणाचल प्रदेश के एक आईएएस अफसर गणेश कोयू को चीन ने वीजा देने से मना कर दिया। गणेश कोयू ने चीन की यात्रा करने के लिए वीजा आवेदन दिया था। लेकिन, चीन ने ऐसा कहते हुए मना कर दिया कि अरुणाचल भी चीन का ही हिस्सा है, इसलिए उन्हें उनके देश में घूमने के लिए वीजा की जरूरत नहीं है।

10) हम सड़क बनाएं तो आपत्ति, खुद सड़क बनाए तो कुछ नहीं
जून 2017 में भारत-चीन की सेनाएं 73 दिन तक आमने-सामने थीं। दरअसल, भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों को सड़क बनाने से रोक दिया था। जिस पर चीन का दावा था कि वो अपने इलाके में सड़क बना रहा था। दोनों सेनाओं के बीच डोकलाम इलाके में तनातनी हुई थी। ये इलाका उस जगह है, जहां भारत, चीन और भूटान की सीमा मिलती है। इसे भूटान में डोकलाम और भारत में डोका ला कहते हैं। 

(नोट : ये स्टोरी भारत-चीन के संबंधों पर हुई रिसर्च पर आधारित है)

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