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त्रयोदशी तिथि पर ही भगवान शिव ने चंद्रमा के क्षय रोग खत्म कर के दिया था जीवनदान

  • हिंदू कैलेंडर के अनुसार महीने में 2 बार किया जाता है प्रदोष व्रत,स्कंद पुराण में बताई गई है इसकी कथा

दैनिक भास्कर

May 04, 2020, 05:49 PM IST

वैशाख महीने के शुक्लपक्ष का प्रदोष व्रत 5 मई, मंगलवार को पड़ रहा है। इस दिन शिवजी की पूजा कर के दिनभर व्रत रखा जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत शुक्ल और कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि पर यानी 13वें दिन किया जाता है। इस तरह ये व्रत महीने में 2 बार आता है। प्रदोष तिथि पर भगवान शिव मृत्युलोक यानी पृथ्वी पर रहने वालों पर ध्यान देते हैं।

प्रदोष का महत्व
इस व्रत में भगवान महादेव की पूजा की जाती है। यह प्रदोष व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते है और उन्हें शिव धाम की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार चंद्रमा को क्षय रोग था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य कष्ट हो रहा था। भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन पुन:जीवन प्रदान किया। इसलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा। इसके अलावा सप्ताह के अलग-अलग दिन में प्रदोष होने से उसका फल अलग होता है। इस बार मंंगलवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ रहा है। इसके प्रभाव से बीमारियों से छुटकारा मिलता है।

प्रदोष व्रत कथा

  • एक नगर में बूढ़ी महिला रहती थी। उसका एक पुत्र था। महिला की हनुमान जी पर बहुत आस्था थी। वो हर मंगलवार नियम से व्रत रखकर हनुमान जी की आराधना करती थी। उस दिन वो अपने कच्चे घर को लीपती भी नहीं थी।
  • एक बार मंगलवार और त्रयोदशी तिथि के संयोग पर भगवान शिव के रूद्र अवतार हनुमान जी साधु का रूप धारण कर वहां गए और बोले कि है कोई हनुमान भक्त जो हमारी इच्छा पूरी करे। ये सुनकर महिला बाहर बोली आज्ञा महाराज, साधु रूप में हनुमानजी बोले मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा। तू थोड़ी जमीन लीप दे। महिला ने ये सुनकर कहा महाराज लीपने और मिट्टी खोदने के अलावा आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं पूरी करूंगी।
  • साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा तू अपने बेटे को बुला। मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा। महिला सोच में पड़ गई। उसने बेटे को बुलाकर साधु को सौंप दिया। उन्होंने महिला के हाथों से ही बेटे को पेट के बल लेटाया और उसकी पीठ पर आग लगाई। आग जलाकर दुखी मन से महिला अपने घर में चली गई। इधर भोजन बनाकर साधु ने महिला को कहा कि बेटे को बुलाओ ताकि वो भी भोजन कर ले।
  • महिला आंसू पोंछकर बोली उसका नाम लेकर मुझे कष्ट न पहुंचाओ। लेकिन जब साधु नहीं माने तो महिला ने बेटे को आवाज लगाई। मां के पुकारते ही बेटा आ गया। बेटे को देखकर महिला खुश हुई और उसे आश्चर्य भी हुआ। उसने फिर साधु को प्रणाम किया साधु यानी हनुमान जी अपने रूप में प्रकट हुए। हनुमान जी के दर्शन कर महिला खुश हो गई। तब से मंगल प्रदोष व्रत किया जा रहा है।

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