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1994 में नरसंहार का दोषी 25 साल बाद फ्रांस में गिरफ्तार, पहचान छुपाकर रह रहा था

  • रवांडा में 1994 में 8 लाख लोगों की हत्या हुई थी, 100 दिनों तक चला था नरसंहार
  • दोषी काबुगा पर अमेरिका समेत कई देशों ने ईनाम घोषित कर रखा था

दैनिक भास्कर

May 16, 2020, 09:41 PM IST

पेरिस. मध्य-पूर्व अफ़्रीका स्थित रवांडा में नरसंहार के दोषी फेलिसिएन काबुगा को फ्रांस की राजधानी पेरिस के पास से गिरफ्तार कर लिया गया है। फ्रांस की जस्टिस मिनिस्ट्री ने इसकी जानकारी दी है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, काबुगा को पुलिस ने असनियरेस-सुर-सीन से गिरफ्तार किया है। यहां वह फेक पहचान बनाकर रह रहा था। काबुगा 1994 में रवांडा में हुए नरसंहार का दोषी है। 1997 में यूएन की इंटरनेशनल क्रिमिनल ट्रिब्यूनल ने उसे दोषी ठहराया था।

काबुगा की गिरफ्तारी पर यूएन के इंटरनेशनल क्रिमिनल ट्रिब्यूनल के चीफ प्रोसिक्यूटर सर्ज ब्रामर्ट्ज ने कहा कि कितने भी साल बीत जाएं नरसंहार के लिए जिम्मेदार किसी भी शख्स को नहीं छोड़ा जाएगा। फ्रांसीसी कानून की सभी प्रक्रियाएं पूरी होने के बाद काबुगा को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ हेग में पेश किया जाएगा, जहां उसे ट्रायल पर भेजा जाएगा।
रवांडा का बिजनेस मैन था काबुगा
काबुगा एक समय में रवांडा का अमीर बिजनेसमैन था। उस पर रवांडा नरसंहार में साथ देने, नरसंहार के लिए उकसाने और फंडिंग करने का आरोप लगाया गया था। कई देशों ने उस पर ईनाम घोषित कर रखा था। अमेरिका ने भी उस पर 50 लाख डॉलर ( करीब 38 करोड़ रुपये) का ईनाम रखा था। 

रवांडा में 100 दिनों तक चला था नरसंहार
रवांडा में 1994 में अप्रैल से लेकर जून तक 100 दिनों के भीतर 8 लाख लोगों की हत्या हुई थी। नरसंहार की शुरुआत रवांडा के तब के राष्ट्रपति जुवेनल हाबयारिमाना की हत्या के बाद हुई थी। जुवेनल अप्रैल 1994 को बुरुंडी के राष्ट्रपति केपरियल नतारयामिरा के साथ प्लेन से जा रहे थे, जिसे रवांडा के किगाली में मार गिराया गया था। राष्ट्रपति जुवेनल हूतू समुदाय से थे, जो रवांडा में बहुसंख्यक थे। हूतू समुदाय के लोगों ने वहां तुत्सी समुदाय को हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया और हत्याओं का दौर शुरू हो गया।

रवांडा में हूतू और तुत्सी का इतिहास जानिए
रवांडा की कुल आबादी में 85 प्रतिशत लोग हूतू समुदाय से हैं, लेकिन काफी लंबे समय से तुत्सी अल्पसंख्यकों ने देश पर राज किया। 1959 में हूतू ने तुत्सी शासन को खत्म कर दिया। इसके बाद हजारों तुत्सी लोग युगांडा समेत दूसरे देशों में भाग गए। इसके बाद एक तुत्सी समूह ने विद्रोही संगठन रवांडा पैट्रिएक फ्रंट (आरपीएफ) की स्थापना की। यह संगठन 1990 में रवांडा आया और संघर्ष शुरू हुआ। हालांकि, 1993 में हूतू और तुत्सी में शांति समझौता हुआ, जिसके बाद सब शांत हो गया। एक साल बाद ही हूतू राष्ट्रपति की हत्या के बाद नरसंहार शुरू हो गया।

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