- अमेरिका में अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस कस्टडी में मौत के बाद हिंसक घटनाएं भड़क उठी हैं
- राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सेना उतारने की धमकी दी, 40 शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया है
डेलावेयर से रेखा पटेल
Jun 02, 2020, 10:10 PM IST
टेक व्हॉट यू नीड, टेक व्हॉट यू वांट, यह किसी दानवीर या राजा का नारा नहीं है। यह अमेरिका में शुरू हुई उस जंग का सच है, जिसमें श्वेत और अश्वेत का भेदभाव खुलकर सामने आ गया है। हालात जंग जैसे हैं और इन हालात में दुकानें लूटी जा रही हैं, उनमें तोड़फोड़ की जा रही है। यह घटनाएं मीडिया की सुर्खियां बन रहीं हैं। हालात बता रहे हैं कि इतना विकसित होने के बावजूद अमेरिका में आज भी रंगभेद है। वहां जो कुछ हो रहा है, उसे देखकर ऐसा नहीं लगता है कि यह वही सुंदर और सुव्यवस्थित चलने वाला देश है, जिसे लैंड ऑफ ऑपर्च्यूनिटी यानी संभावनाओं की धरती कहा जाता है।
अमेरिका में हिंसा के दौरान 6 पुलिसवालों पर जानलेवा हमला
अमेरिकी पुलिस के हाथों अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद पूरे देश में हिंसा भड़क गई है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मिलिट्री उतारने की धमकी दी है और इसके बाद भी लोग सड़कों से हटने का नाम नहीं ले रहे हैं। हिंसा पर उतारू भीड़ ने 6 पुलिसवालों पर जानलेवा हमला किया है। पुलिस कार्रवाई में दो प्रदर्शनकारियों की मौत भी हुई है। प्रदर्शनकारियों ने अनेक स्टोर्स में तोड़फोड़ और लूटपाट की है। देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के चलते वाशिंगटन डीसी समेत 40 शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया है।
क्या थी घटना?
अमेरिका की मिनीपोलिस शहर की पुलिस ने 25 मई को जार्ज फ्लाॅयड को अफ्रीकन-अमेरिकन की ग्रॉसरी स्टोर में धोखाधड़ी के आरोप में पकड़ा था। इस दौरान पुलिस अधिकारी डेरेक चोवेन ने जॉर्ज फ्लाॅयड को हथकड़ी पहनाई। उसे जमीन पर लिटाकर उसकी गर्दन को 8 मिनट 46 सेकंड तक अपने घुटनों से दबाए रखा। इससे जॉर्ज की सांसें रुक गईं और उसकी मौत हो गई। इस घटना का वीडियो वायरल होते ही अश्वेत भड़क उठे।
गोरों और अश्वेतों के खिलाफ अत्याचार या दुर्भावना अमेरिका में नहीं चलती। लेकिन अगर विरोध अपने ही हाथों और पैरों को आघात पहुंचा रहा है, तो व्यक्ति को सोचना बंद कर देना चाहिए। जॉर्ज को जो सजा दी गई, वह बहुत दु:खद है। इस बात से कोई इनकार नहीं करता कि इसका कारण रंगभेद है। कुछ हद तक यह बुराई अभी भी हर देश में प्रचलित है, इससे अमेरिका भी अछूता नहीं है।
जगह-जगह पुलिस पर हमले
अमेरिका के पूर्व से पश्चिम तट तक हिंसा फैल गई है। न्यूयॉर्क शहर, वाशिंगटन, रिवरसाइड, सिएटल, लुइसविले, अटलांटा और अन्य स्थानों में स्थिति खराब हो गई है। पुलिस पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है। कई स्थानों पर पुलिस पर हमले किए गए हैं। पुलिस स्टेशन और अनेक वाहनों पर पेट्रोल बम फेंके जा रहे हैं। पुलिस की कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया है। सेंट लुईस में 4 और लास वेगास में दो पुलिस कर्मचारी घायल हो गए हैं। न्यूयाॅर्क के बफेलो में पुलिस को कार से कुचलने का प्रयास किया गया। पुलिस ने अटलांटा में 350, न्यूयॉर्क में 200 और मिनीसोटा सेंट पॉल में 66 प्रदर्शनकारियों की धरपकड़ की है।
अमेरिका के विभिन्न हिस्सों में असामाजिक तत्वों ने दुकानों और रेस्तरां में तोड़फोड़ और लूटपाट को अंजाम दिया। न्यूयॉर्क, अटलांटा, फिलाडेल्फिया और मिनियापोलिस में लूटपाट-तोड़फोड़ की सूचना मिली है। लोग दुकानों में जो भी मिला, उसे लेकर भाग रहे हैं।
कई जगहों पर वॉलमार्ट और एपल के स्टोर बंद कर दिए हैं। कुछ स्थानों पर मर्सीडीज कार के शो रूम को तोड़कर कारों को नुकसान पहुंचाया। कुछ लग्जरी ब्रान्ड स्टोर में भी लूटपाट की गई।
जॉर्ज फ्लाॅयड के परिवार द्वारा हिंसा न करने की अपील
जॉर्ज फ्लाॅयड के परिवार ने अपील की है कि हम जॉर्ज के लिए न्याय चाहते हैं, परंतु इस तरह हिंसा, तोड़-फोड़ या संपत्ति को नुकसान न पहुंचाया जाए। न्याय के लिए शांतिपूर्ण तरीके से समर्थन करें। उसके भाई ने कहा कि इस तरह मेरे भाई को न्याय नहीं मिलेगा और हमें इस तरह का न्याय चाहिए भी नहीं। आपको इसी देश में रहना है और आप उसे ही खत्म करने पर तुले हैं।
सरकारी धन पर मौज करती जनता हिंसा में शामिल
हिंसा के दौरान कोरोना का खतरा लोगों के लिए बाधा नहीं बन रहा है। यही जनता जब काम करने की बारी आती है तो बहाना बनाते हुए घर बैठ जाती है और बेरोजगारी के नाम पर प्रदर्शन कर सरकारी धन पर मौज करती है। अब वह एकसाथ मिलकर सड़कों पर हिंसा फैला रही है। हिंसा में अधिकतर युवा शामिल हैं। आश्चर्य होता है कि जिन युवाओं को समझदार माना जाता है, आखिर उनकी सोच इतनी छोटी कैसे हो गई?
अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं अफ्रीकी-अमेरिकी
अमेरिकी प्रदर्शनकारियों को टैक्स चुकाने की कोई चिंता नहीं है। फूड स्टैम्प पर जीने वाले अधिकतर नागरिक ही इस तोड़-फोड़ के लिए जिम्मेदार हैं, ऐसा कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा। सालों से फूड स्टैम्प और बेरोजगारी के बदले में सरकार इन्हें धन देती रही, तब श्वेत-अश्वेत अलग नहीं हुए और एक ही घटना ने उनकी सोच बदल दी। इस आधार पर अमेरिका में मानो अफ्रीकियों पर जुल्म हो रहा है, ऐसा मान कर वे अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के लिए तैयार हो गए हैं।
अफ्रीकी-अमेरिकी का बिजनेस भी प्रभावित
इस हिंसा से केवल भारतीय या अमेरिकियों को ही आर्थिक नुकसान होगा, ऐसा नहीं है। अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिकों का बिजनेस भी बर्बाद हो रहा है। कारण कोई भी हो, परंतु आज अमेरिका की छवि बिगड़ रही है। केवल एक व्यक्ति पर हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए शुरू हुई इस हिंसा के चलते कुछ असामाजिक तत्वों को खुली छूट मिल गई है, जो आम नागरिकों को लूटने में लगे हैं। ये अमेरिका की नशे में डूबी हुई युवा पीढ़ी है, जो अपनी राह से भटक गई है।
(रेखा ने कई किताबें लिखी हैं। पिछले 20 सालों से वे अमेरिका की कई मैगजीन और अखबारों से जुड़ी हैं।)