- फेसबुक के साथ जियो की पहली डील पर फाइनल मुहर मनोज मोदी ने ही लगाई
- वह किसी भी डील में अधिकारियों को निर्देश देकर परदे के पीछे से नियंत्रण करते हैं
दैनिक भास्कर
Jun 13, 2020, 11:59 AM IST
मुंबई. उनका ना तो कोई लंबा चौड़ा टाइटल है और ना ही भारत के बाहर बहुत लोग उनका नाम जानते हैं। लेकिन रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के गलियारों में मनोज मोदी चुपचाप तरीके से एशिया के सबसे अमीर बिजनेस मैन कॉर्पोरेट साम्राज्य के पीछे सबसे शक्तिशाली ताकतों में से एक बन गए हैं।
मनोज मोदी और मुकेश अंबानी दोनों ही क्लासमेट रहे हैं। दोनों की मुलाकात कॉलेज में हुई, जिसके बाद दोनों अच्छे दोस्त बने। मनोज 1980 से रिलायंस से जुड़े हैं। मनोज मोदी 2007 में रिलासंस रिटेल (Reliance Retail ) के सीईओ बनाए गए, वो अंबानी परिवार की तीनों पीढ़ियों के साथ काम कर चुके हैं।
संकोची स्वभाव, छुपे रुस्तम हैं मनोज मोदी
संकोची स्वभाव और ज्यादातर अदृश्य रहने वाले मनोज मोदी को भारत के बिजनेस की दुनिया में और अन्य लोगों द्वारा अरबपति मुकेश अंबानी के दाहिने हाथ के रूप में देखा जाता है। मोदी ने अप्रैल में फेसबुक इंक के साथ 5.7 अरब डॉलर सौदे के लिए बातचीत के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने अंबानी और उनके बच्चों की आइडिया का समर्थन करते हुए सोशल नेटवर्किंग जायंट के साथ एक समझौता किया था।
ग्रुप में मोदी का फैसला अंतिम होता है
63 वर्षीय मुकेश अंबानी जब पेट्रोकेमिकल्स से इंटरनेट टेक्नोलॉजी तक अपने विशाल समूह का विस्तार करते हैं तो इसके पीछे मोदी को विशेष रूप से प्रभावशाली शख्सियत के रूप में देखा जाता है। एक बार उनका फैसला आ गया, कोई टालता नहीं है। ग्रुप के जियो प्लेटफॉर्म्स में फेसबुक के निवेश के बाद कई प्राइवेट-इक्विटी फंड्स से इसी तरह के सौदे किए गए। 13 अरब डॉलर की राशि इसके जरिए जुटाई गई। इसे सिलिकॉन वैली के रडार पर मजबूती से रखा गया।
मुकेश अंबानी और मनोज मोदी, दोनों एक ही मजबूत टीम के खिलाड़ी
60 साल के मनोज मोदी शायद ही कभी इंटरव्यू देते हैं। इसलिए उनकी प्राइवेट लाइफ के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। फिर भी यह दिखाता है कि कॉर्पोरेट घरानों के लिए भारत में कम जाना माना नाम भी ज्यादा प्रभावशाली हो सकता है। रिलायंस इंडस्ट्रीज ऐसी कंपनी नहीं है कि जिसे अपने संगठनात्मक ढांचे का विज्ञापन करना पड़े। लेकिन उद्योग जगत जानता है कि अंबानी और मोदी एक ही मजबूत टीम के खिलाड़ी हैं। एक साथ सौदा और बातचीत करते हैं और अंतिम स्तर तक नजर बनाए रखते हैं।
मुझे रणनीति समझ में नहीं आती है- मनोज मोदी
मोदी रिलायंस रिटेल लिमिटेड और ग्रुप की टेलीकॉम कैरियर रिलायंस जियो इंफोकॉम लिमिटेड में डायरेक्टर हैं। मोदी ने एक सम्मेलन में कहा कि मैं वास्तव में मोलभाव नहीं करता। मुझे रणनीति समझ में नहीं आती। वास्तव में, लोगों को पता नहीं है कि मेरा अपना कोई विज़न भी है। वे अपनी भूमिका के बारे में कहते हैं कि मैं अपने आंतरिक लोगों से निपटता हूं, उन्हें कोचिंग देता हूं। उन्हें सलाह देता हूं और उनका मार्गदर्शन करता हूं कि किसी टास्क को कैसे पूरा किया जा सकता है।
जब तक हमारे साथ काम करते हुए हर कोई पैसा नहीं बनाता, तब तक आप टिकाऊ बिजनेस नहीं कर सकते
थोड़ी देर सोचकर उन्होंने फिर कहा कि रिलायंस में हमारा सिद्धांत बहुत सरल है। जब तक हर कोई हमारे साथ काम करते हुए पैसा नहीं बनाता, तब तक आप एक टिकाऊ बिजनेस नहीं कर सकते। इंटरव्यू में रिलायंस के साथ कारोबार करने वाले टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री के आधा दर्जन से ज्यादा एग्जिक्युटिव्स ने कहा कि मोदी हार्ड बार्गेन के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कहा कि स्टार्टअप्स से निपटते समय वह अक्सर अधिकारियों को निर्देश देकर परदे के पीछे से बातचीत को नियंत्रित करते हैं। जरूरत पड़ने पर ही सामने आते हैं और बात पक्की कर डालते हैं।
हर डील में मनोज मोदी की होती है दखल
हालांकि रिलायंस के हालिया मेगा निवेश ने सबका ध्यान खींच रखा है, लेकिन इस समूह ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से ब्लॉकचेन तक नई टेक्नोलॉजी में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए कुछ साल पहले छोटी फर्मों को खरीदना शुरू किया। आइडिया यह था कि डिजिटल बिजनेस का माहौल खड़ा किया जाए जो ऑनलाइन रिटेल से स्ट्रीम्ड एंटरटेनमेंट जैसी सभी को इंटरनेट भुगतान से जोड़ दे। चार अलग-अलग स्टार्टअप संस्थापकों ने इंटरव्यू में कहा कि हर डील में मनोज मोदी की दखल होती है और अक्सर उनके साथ होने वाली मीटिंग मंजूरी की अंतिम मुहर का संकेत देती है।
स्मार्ट, सक्षम निगोसिएटर के रूप में जगह बनाए हैं मोदी
2010 में रिलायंस को अपनी कार्गो एयरलाइन में हिस्सेदारी बेचनेवाली बजट कैरियर एयर डेक्कन के संस्थापक जी.आर. गोपीनाथ ने कहा कि मनोज मोदी सिर्फ अपनी वफादारी की वजह से नहीं, बल्कि रिलायंस इंडस्ट्रीज के लिए अपने बहुत चतुर, स्मार्ट और सक्षम निगोसिएटर के तौर पर संगठन में अपनी जगह बनाए हैं। इसी दौरान तेल की कीमतों में बेतहाशा कमी ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के ऑयल और केमिकल डिवीज़न में 15 अरब डॉलर की हिस्सेदारी सऊदी अरब की तेल कंपनी अरामको को बेचने में अनिश्चितता का माहौल बना दिया।
जियो का विस्तार अगले चरण में डिजिटल बिजनेस की भूमिका में हो रहा है
रिलायंस अरामको के साथ डील से अपने ऊपर लदे 20 अरब डॉलर का कर्ज उतारने की कोशिश में है। रिलायंस ने हाल ही में कहा था कि अरामको से बात चल रही है और सही दिशा में आगे बढ़ रही है। जियो प्लेटफॉर्म का एक्चुअल प्लान आगे क्या है? इसके बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है। कहा जा रहा है कि इसका विस्तार अगले चरण में डिजिटल व्यापार रोल में हो रहा है। वेंचर कैपिटलिस्ट कोला का कहना है कि जब आप रणभूमि में अपनी युद्ध क्षमताओं को दिखा सकते हैं, तो अनावश्यक रूप से भाषण करने की जरूरत नहीं है और मनोज मोदी कुछ इसी तरह की भूमिका में हैं।