
आस्टियोआर्थराइटिस यानी संधिगत वात का उपचार पंचकर्म के साथ ही कंबिनेशन थेरेपी से किया जाए तो रोगी को 85 प्रतिशत तक आराम मिल जाता है, जबकि सिर्फ पंचकर्म से 60 से 65 प्रतिशत तक ही आराम मिल पाता है।यह निष्कर्ष एक शोध में सामने आया है। भोपाल के पंडित खुशीलाल शर्मा सरकारी आयुर्वेद कालेज में आस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित 55 वर्ष की एक महिला पर एक माह तक थेरेपी देकर यह निष्कर्ष निकाला गया है।
जानुधारा (पंचकर्म की क्रिया जिसमें घुटने में तेल की धार गिराई जाती है), पंचतिक्ता छीर बस्ती (पंचकर्म की क्रिया जिसमें एनीमा दिया जाता है) के साथ लाक्षादी गुग्गुल की टैबलेट दी गईं।जानुधारा और छीर बस्ती 21 दिन और लाक्षादी गुग्गुल 30 दिन तक दिया गया। इसके बाद घुटने का एक्सरे कराया गया, जिसमें घुटने में गैप सामान्य की तुलना में 85 प्रतिशत तक सही मिला।
यह शोध पंचकर्म विभाग की विभागाध्यक्ष डा. कामिनी सोनी के निर्देशन डा. हर्षा गुप्ता और डा. छाया बघेल ने किया है जो जर्नल आफ आयुर्वेद एवं होलिस्टिक मेडिसिन (जेएएचएम) में प्रकाशित हुआ है।
डा. कामिनी सोनी ने बताया कि संधिगत वात में घुटने की हड्डियों के बीच अंतर कम हो जाता है। इसका कारण यह है कि हड्डियों के बीच भरा तरल पदार्थ (साइनोवियल फ्लूड) बुढ़ापे में या किसी कारण से सूख जाता है। चलते समय घुटने से आवाज आती है।
इसमें पचकर्म से काफी लाभ मिलता है। अब इसके साथ कुछ दवाएं और अन्य थेरेपी दी गई, जिसमें और अधिक लाभ मिला है। सामान्य लोगों में 25 प्रतिशत पुरुष और 16 प्रतिशत महिलाएं इस बीमारी से प्रभावित होती हैं। मोटापा की वजह से भी यह बीमारी होती है, क्योंकि वजन अधिक होने पर घुटने में ज्यादा भार पड़ता है।