May 3, 2024 : 1:01 PM
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IAS तपस्या परिहार ने रचाई शादी, नहीं कराया कन्यादान, पिता से बोलीं- ‘मैं दान की चीज नहीं

2018 बैच की IAS तपस्या परिहार (IAS Tapasya Parihar) ने पचमढ़ी में 12 दिसंबर को आइएफएस गर्वित गंगवार (IFS Garvit Gangwar) के साथ शादी रचाई है. शादी में तपस्या ने जो कदम उठाया, वो सभी को हैरान कर गया. उन्होंने कन्यादान कराने से पिता विश्वास परिहार को रोक दिया. UPSC में 23वीं रैंक हासिल करने वाली तपस्या ने पिता से कहा -‘पापा मैं आपकी बेटी हूं और हमेशा रहूंगी. मैं कोई दान की चीज नहीं हूं.’ उन्होंने कहा कि जब दो परिवार एक हो रहे हैं, तो ऐसे में दान की कोई बात ही नहीं आनी चाहिए. यह सुनकर पिता ने बेटी को गले लगा लिया.

कहते हैं कि हिंदू संस्कृति में कन्यादान का अपना विशेष महत्व होता है, पर नरसिंहपुर जिले में जन्मी IAS तपस्या परिहार ने इस परंपरा को तोड़ दिया. उन्होंने अपनी शादी में पिता से कन्यादान नहीं कराया. उनके इस कदम में परिवार ने भी साथ दिया. इस वजह से ये शादी अब चर्चा में है. तपस्या नरसिंहपुर के करेली के पास छोटे से गांव जोबा की रहने वाली हैं. वे 2018 बैच की आईएएस हैं.उनकी शादी 12 दिसंबर को IFS गर्वित गंगवार के साथ पचमढ़ी में हुई. इस मौके पर तपस्या ने कहा- बचपन से ही मेरे मन में समाज की इस विचारधारा को लेकर प्रश्न था. कैसे कोई मेरा कन्यादान कर सकता है, वह भी मेरी बिना इच्छा के. यही बात धीरे-धीरे मैंने अपने परिवार से चर्चा की. इस बात को लेकर परिवार भी मान गए और वर पक्ष भी इस बात के लिए राजी हो गए कि बगैर कन्यादान किए भी शादी की जा सकती है.

वहीं, दूसरी ओर तपस्या के पति IFS गर्वित का भी कहना है कि क्यों किसी लड़की को शादी के बाद पूरी तरह बदलना चाहिए. चाहे मांग भरने की बात या कोई ऐसी परंपरा जो यह सिद्ध करे कि लड़की शादी शुदा है. जबकि, यह लड़के के लिए कभी लागू नहीं होता और इस तरह की मान्यताओं को हमें धीरे-धीरे दूर करने की कोशिश करनी चाहिए.

 IAS अधिकारी तपस्या के पिता विश्वास परिहार कहते हैं कि कानून भी यही प्रयास करता है कि बेटे-बेटी को समान माना जाए. सामाजिक परम्पराएं ही गलत हैं. ये बेटी को दान करके उनके हक से उन्हें वंचित करती हैं. बेटियों के मामले में दान शब्द ही उन्हें ठीक नहीं लगता.
IAS अधिकारी तपस्या के पिता विश्वास परिहार कहते हैं कि कानून भी यही प्रयास करता है कि बेटे-बेटी को समान माना जाए. सामाजिक परम्पराएं ही गलत हैं. ये बेटी को दान करके उनके हक से उन्हें वंचित करती हैं. बेटियों के मामले में दान शब्द ही उन्हें ठीक नहीं लगता.

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