May 17, 2024 : 9:27 AM
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पीएम मोदी का पोप फ्रांसिस को न्योता

हिंदुओं के जबरन धर्मांतरण के आरोप में कई राज्यों में चर्च के प्रतिनिधियों पर हिंदुवादी संगठनों के हमले की ख़बरों के बाद ईसाई समुदाय में इसे लेकर संदेह की स्थिति है.

जी20 शिखर सम्मेलन के लिए रोम के दो दिनों के दौरे पर गए प्रधानमंत्री मोदी ने जी20 देशों के प्रमुखों से मुलाक़ात की थी. प्रोटोकॉल के अनुसार उन्होंने वैटिकन के प्रमुख पोप फ्रांसिस से भी मुलाक़ात की.

पीएम मोदी रोमन कैथोलिक चर्च के प्रमुख पोप फ्रांसिस से मिलने वाले भारत के पाँचवें प्रधानमंत्री बन गए हैं.उनसे पहले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, आईके गुजराल और अटल बिहारी वाजपेयी पोप फ्रांसिस से मिल चुके हैं.

इरुदया जोती पश्चिम बंगाल के पादरी हैं और फिलहाल त्रिपुरा में काम करते हैं. उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, “पोप से मिलना और उन्हें न्योता देना एक एजेंडे का हिस्सा है. ये राजनीति और धर्म का जहरीला मिश्रण है. इसे राजनीतिक लीपापोती भी कहा जा सकता है.”

गुवाहाटी में नॉर्थईस्ट कैथोलिक के प्रवक्ता ऐलन ब्रूक्स कहते हैं, “इसे केवल एक देश के प्रमुख के दूसरे प्रमुख को दिए गए न्योते के तौर पर नहीं देखा जा सकता. इसके परिणाम आगे देखने को मिलेंगे. क्या ईसाइयों पर हो रहे हमले रुकेंगे? मुझे नहीं लगता. मैं इसे सिर्फ़ एक जनसंपर्क के तरीक़े के तौर पर देखता हूं.”

ऐलन ब्रूक्स असम अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व सदस्य भी रह चुके हैं.

जोती मानते हैं कि इससे चर्च, उसके संस्थानों और कर्मचारियों पर हमले में कोई कमी नहीं आने वाली है.

ऐलन ब्रूक्स कहते हैं, “तुम मेरे लिए मुश्किलें खड़ी करके कहते हो कि हिंदू ख़तरे में है. आज आप कर्नाटक के ईसाई संस्थानों पर सर्वे करना चाहते हो. दूसरे राज्यों में समुदाय को दबाया जा रहा है.”

हालांकि, बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि ने बीबीसी हिंदी से कहा, “वैटिकन एक देश है और समावेश के लिए भारत का पूरी दुनिया में सम्मान किया जाता है. वो बैठक दो देशों के प्रमुखों के बीच थी. हमारे देश के मूल मूल्य केवल सहिष्णुता ही नहीं बल्कि समानता की स्वीकृति है.”

राजनीतिक मायने

जैकोबाइट चर्च के विचार बहुत मायने रखते हैं क्योंकि पीएम मोदी ने केरल विधानसभा चुनाव से पहले जैकोबाइट और रुढ़िवादी धड़े के नेताओं से मुलाक़ात की थी ताकि उनके आपसी मतभेदों को सुलझाया जा सके.

जैकोबाइट धड़े को सुप्रीम कोर्ट ने अपने चर्चों और कब्रगाहों को रूढ़िवादी धड़े को सौंपने का निर्देश दिया था.

चर्च के इन दो धड़ों के बीच आरएसएस का दखल ईसाई वोटों में बीजेपी की सेंध की कोशिशों का पहला ठोस संकेत था. इन वोटों पर अभी तक कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ़) का एकाधिकार रहा है.

केरल में ईसाई वोट बहुत मायने रखता है जो 18.6 प्रतिशत है. ईसाई और मुस्लिम वोटों से यूडीएफ़ सत्ता में जगह बना पाई थी लेकिन पिछले चुनाव में ये वोट सीपीएम के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ़) के खाते में चला गया.

इसे न्योते के मायने को इस बात से भी समझा जा सकता है कि पीएम मोदी और पोप फ्रांसिस की मुलाक़ात के बाद केरल बीजेपी के नेताओं ने उत्साहित होकर बयान दिये हैं.

केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा था कि पीएम और पोप के बीच हुई बैठक दिखाती है कि बीजेपी सरकार ईसाई समुदाय की कितनी चिंता करती है.

हालांकि, कर्नाटक में बीजेपी सरकार के धर्मांतरण-रोधी क़ानून लाने के रुख की ईसाई समुदाय ने कड़ी आलोचना की है.

, पादरियों और अन्य लोगों पर हमला करने वाले कुछ असामाजिक तत्वों के पुलिस थाने के सामने प्रदर्शन करने और “जबरन धर्मांतरण” का आरोप लगाने को देखते हुए यह घोषणा की गई है.

पोप फ्रांसिस को न्योता देने को गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव के संदर्भ में देखे जाने को लेकर बेंगलुरू क्षेत्र के प्रमुख पादरी रेव पीटर मचादो कहते हैं, “इस पर कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा. मुझे यकीन है कि प्रधानमंत्री वैटिकन के दौरे को वोटों पर प्रभाव के लिए इस्तेमाल नहीं करेंगे. इसके बजाय वो लोगों के भले के लिए किए गए कामों के आधार पर अल्पसंख्यकों से वोट मांगेंगे.”

हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अगर पीएम मुख्यमंत्रियों को धर्मांतरण-रोधी क़ानूनों पर जोर ना देने के लिए नहीं कहते हैं तो यह ठीक नहीं होगा.

केसीबीसी के प्रवक्ता फादर जैकब कहते हैं, “हमें संविधान के अनुसार अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार है. हम किसी को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं कर रहे हैं. लोगों की सुरक्षा करना सरकार की ज़िम्मेदारी है.”

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