May 18, 2024 : 1:23 AM
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सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फ़ैसले से क्यों चर्चा में है केरल का श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर?

ऐसा लगता है कि केरल के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के लिए ही वो कहावत बनी है कि आप जितने संपन्न होंगे, आपकी समस्याएं और कानूनी लड़ाई उतनी ही बड़ी हो जाएगी.

दुनिया के इस सबसे संपन्न मंदिर के लिए हाल में सुप्रीम कोर्ट का एक फ़ैसला आया. शीर्ष अदालत ने मंदिर के ट्रस्ट के 25 सालों (1989-90 से 2013-14) के खातों की विशेष ऑडिट का आदेश दिया है. पिछले कई सालों से तमाम चुनौतियों का सामना कर रहे मंदिर के प्रबंधकों और उसके ऑडिटरों के लिए ताज़ा फ़ैसला एक नई चुनौती है.

अदालत द्वारा नियुक्त एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) की एक रिपोर्ट और कुछ सालों पहले देश के तत्कालीन कैग (नियंत्रक एवं लेखा परीक्षक) विनोद राय ने खातों की एक सीमित ऑडिटिंग की थी. उसके बाद केरल सरकार को आनन-फानन में मंदिर की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था करने को बाध्य होना पड़ा था.

उस ऑडिट रिपोर्ट में एक अनुमान लगाया गया था कि मंदिर के सभी ‘कल्लारों’ या तिजोरियों में लगभग एक लाख करोड़ रुपए के गहने पड़े हो सकते हैं. ये आंकड़े आने के बाद तब कई लोगों ने कहा कि इतनी राशि से तो भारत के राजकोषीय घाटे में ख़ासी कमी लाई जा सकती है. हालांकि मंदिर में मौजूद कई प्राचीन वस्तुओं का मूल्यांकन अब तक नहीं हो सका है.

माना जा रहा है कि एक दशक बाद मंदिर की संपत्तियों का मूल्य निश्चित तौर पर बढ़ा होगा. लेकिन यह एक विडंबना ही है कि मंदिर की प्रशासनिक समिति को मंदिर के संचालन के लिए धन की मांग करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा.

केरल के सबसे वरिष्ठ जिला जज की अध्यक्षता में काम करने वाली मंदिर की प्रशासनिक समिति ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसे ‘अभूतपूर्व वित्तीय संकट’ का सामना करना पड़ रहा है और वो दैनिक ख़र्चे भी पूरा कर पाने में लाचार है.

कोरोना के चलते पिछले एक साल से भी अधिक समय से बंद रहने के चलते श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर की मासिक आय घटकर 50-60 लाख रुपए हो गई है. लेकिन मंदिर से जुड़े कर्मचारियों को वेतन देने और पूजा-अनुष्ठान कराने के लिए मंदिर को हर महीने 1.25 करोड़ रुपये ख़र्च करना पड़ता है. ऐसे में मंदिर को अपनी तेजी से घटती बचत और फ़िक्स्ड डिपॉज़िट की राशि का उपयोग करने को बाध्य होना पड़ा.

प्रशासनिक समिति ने मुश्किल की इस घड़ी में जब मंदिर के ट्रस्ट का दरवाजा मदद के लिए सबसे पहले खटखटाया तो उसे घोर निराशा हुई. उसे वहां से कोई मदद नहीं मिली.

इतिहासकार एमजी शशिभूषण ने इस मंदिर पर ‘वर्ल्डस रिचेस्ट टेंपल: दि श्री पद्मनाभस्वामी टेंपल’ नामक किताब लिखी है. उन्होंने  बताया कि प्रशासनिक समिति और मंदिर ट्रस्ट के बीच शीतयुद्ध सा चल रहा है. यह दिख भले न रहा हो, पर है.

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर की कहानी

भगवान विष्णु की आराधना के लिए आठवीं सदी में बना ये मंदिर भारत के 108 विष्णु मंदिरों में से एक है. केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम का नाम श्री अनंत पद्मनाभस्वामी भगवान के नाम पर ही पड़ा है.

मंदिर के एक कार्यकर्ता राहुल ईश्वर ने बीबीसी हिंदी को बताया, ”ये मंदिर अद्वितीय है, क्योंकि त्रावणकोर के महाराज (चितिरा तिरुनल बलराम वर्मा) ने अपना पूरा राज्य भगवान को समर्पित कर दिया था. देवता की एक क़ानूनी सत्ता मानी जाती है. महाराज ने अपनी भक्ति के चलते मंदिर के ट्रस्ट का गठन किया था. तकनीकी रूप से मंदिर से आय हासिल करने वाला ये ट्रस्ट नहीं है.”

रियासतों के विलय के समय, भारत सरकार ने एक अपवाद रखा और त्रावणकोर के तत्कालीन महाराज को मंदिर चलाने की अनुमति दे दी. हालांकि अन्य सभी मंदिरों को ‘देवसोम बोर्ड’ के तहत शामिल कर लिया गया था.

लेकिन समस्या तब पैदा हुई, जब 1931 से 1941 तक शासन करने वाले बलराम वर्मा की जुलाई 1991 में मृत्यु हो गई. उनके भाई उत्तरादम तिरुनल मार्तंड वर्मा ने मंदिर के प्रबंधन की बागडोर संभाली और दावा किया कि मंदिर और उसकी संपत्ति उनके परिवार की है.

मंदिर के भक्तों ने इसे लेकर निचली अदालतों में कई मामले दायर किए गए. उन्हें चिंता थी कि मंदिर के गहने शाही परिवार के पास चले जाएंगे. वहीं मार्तंड वर्मा हाईकोर्ट चले गए.

केरल हाईकोर्ट का फैसला

हालांकि केरल हाईकोर्ट ने जनवरी 2011 में फ़ैसला सुनाया कि सरकार के साथ प्रतिज्ञापत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद मार्तंड वर्मा अब ‘शासक’ नहीं हो सकते. हाईकोर्ट ने केरल सरकार को मंदिर, उसकी संपत्ति और उसके प्रबंधन का नियंत्रण करने के लिए तुरंत एक निगम या ट्रस्ट बनाने का निर्देश जारी किया. इसने तीन महीने की समय-सीमा भी तय की.

जस्टिस सीएन रामचंद्रन नायर और जस्टिस के. सुरेंद्र मोहन की बेंच ने एक कदम आगे बढ़ते हुए सरकार से कहा कि वो सभी ‘कल्लारों’ या तिजोरियों को खोले और सामानों को रखने के लिए एक भंडार बनाए. हाईकोर्ट के अनुसार जनता देख सके इसके लिए सभी निधियों को रखने के लिए एक संग्रहालय भी बनाया जाए.

हालांकि मार्तंड वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परिवार के पास ‘सेवैत’ (प्रबंधक) के अधिकार हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सेवैत की शक्तियों को एक प्रशासनिक समिति को सौंपने का निर्देश दिया.

अदालत ने प्रसिद्ध अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम को एमिकस क्यूरी बनाया और मंदिर के खर्च के आकलन के लिए विनोद राय की अध्यक्षता में एक ऑडिट समिति गठित की.

उसी समय ये अनुमान लगाया गया कि ”श्री पद्मनाभस्वामी की 18 फ़ीट लंबी मूर्ति को सुशोभित करने के लिए तैयार किए गए मुकुट, कंगन, अंगूठी, रत्न जड़ित हार, अनूठे हार आदि” की क़ीमत क़रीब एक लाख करोड़ रुपए है.

शशिभूषण ने अपनी किताब में लिखा है, ”यहां तक कि मंदिर के संरक्षकों और कर्मचारियों को भी इन वस्तुओं के मूल्य का अंदाज़ा नहीं था.

हालांकि, ऑडिट समिति ‘बी’ तिजोरी को नहीं खोल सकी क्योंकि शाही परिवार ने कहा कि इससे ‘दैवीय क्रोध’ उत्पन्न हो सकता है.

प्रशासनिक समिति बनाम ट्रस्ट

मंदिर के ट्रस्ट की स्थापना 1965 में बलराम वर्मा ने की थी. इसका उद्देश्य मंदिर परिसर के इमारतों की मरम्मत के अलावा पूजा, होम और अनुष्ठानों का संचालन करना था.

एमीकस क्यूरी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि ट्रस्ट की आय का उपयोग अच्छे से नहीं हुआ, इसलिए हिसाब की ऑडिटिंग ज़रूरी है.

मंदिर के ट्रस्ट ने जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ को ये भी बताया कि उसका गठन मंदिर के रोज़मर्रा के कामों के प्रबंधन के लिए पैसे देने के लिए नहीं हुआ.

विनोद राय की अध्यक्षता वाली ऑडिट कमेटी के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी हिंदी को बताया, ”इस ट्रस्ट को दुनिया भर के लोगों से चंदा मिलता है.”

इसी समिति के एक अन्य सदस्य और पूर्व आईएएस अधिकारी प्रेमचंद्रन कुरुप ने बीबीसी हिंदी को बताया, ‘ये एक सार्वजनिक ट्रस्ट है, लेकिन ये किसी निजी ट्रस्ट की तरह व्यवहार करता हुआ मालूम पड़ता है.” इतिहासकार शशिभूषण भी प्रेमचंद्रन कुरुप से सहमत हैं.

एमजी शशिभूषण कहते हैं, ”हाईकोर्ट के आदेश तक कोई ख़ास समस्या नहीं थी. लेकिन जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट गया और अदालत ने ‘सेवैत के अधिकारों’ के तहत ‘आंशिक स्वामित्व’ दिया तो समस्या पैदा हुई. राजपरिवार साफ़ तौर पर मंदिर पर पूर्ण नियंत्रण चाहता है.”

उन्होंने कहा कि प्रशासनिक समिति और पूर्व शाही परिवार के सदस्यों के बीच का तनाव जिला जज की नियुक्ति के कारण सकता है.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में ट्रस्ट की वकालत करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार हितों के टकराव वाले इस मामले पर बीबीसी हिंदी से कहा, ”नहीं, नहीं! ट्रस्ट को निजी उद्देश्यों के लिए उपयोग नहीं कर सकते. इसका पूजा और अनुष्ठान कार्यों के लिए ही उपयोग हो सकता है और कुछ नहीं.”

”दरअसल, विनोद राय समिति ने बताया था कि कुछ गहने गायब हो गए या कुछ गहनों में सोना कम हो गया था. सब कुछ झूठा साबित हो चुका है. कोर्ट ने इस मामले पर ग़ौर तक नहीं किया. यदि खातों में हेराफेरी होती तो हमें बहुत पहले ही हटा दिया जाता.”

दातार ने ये बताया कि ट्रस्ट ऑडिट के लिए क्यों तैयार नहीं था. वो कहते हैं, ”एमिकस क्यूरी ने इससे पहले 1989-90 से 2013-14 के बीच के खातों की ऑडिट कराने को कहा था. हमने सुप्रीम कोर्ट के सामने बताने की कोशिश की कि ये हो चुका है. लेकिन, हमने कोर्ट का फैसला मान लिया. दुर्भाग्य से मीडिया ने इस मामले को तूल दे दिया.”

इतिहासकार टी.पी. शंकरन कुट्टी ने प्रशासनिक समिति के समक्ष पर्याप्त धन की कमी के मुख्य मुद्दे पर अपनी बात रखते हुए कहा,”मंदिर ट्रस्ट के पास सोना है, नक़दी नहीं.”

आशंकाएं

लेकिन कई लोगों के मन में एक डर है. इन लोगों में मंदिर के कार्यकर्ता राहुल ईश्वर जैसे लोग हैं, जो सामने आकर बोल रहे हैं, जबकि कई लोग अपनी पहचान ज़ाहिर नहीं करना चाहते.

ईश्वर कहते हैं, ”हां, मंदिर और ट्रस्ट दोनों के प्रशासन में कुछ चीज़ें साफ़ नहीं हैं. पूर्व राजपरिवार को अधिक महत्व देने की आवश्यकता है. राजपरिवार को बुरा बताने की कोशिश नहीं होनी चाहिए”

वो पूर्व महाराजाओं के उदाहरण देते हैं जिन्होंने मंदिर से सोना लिया पर ब्याज के साथ उसे लौटा भी दिया. हम भक्तों को डर है कि यदि सरकार ने मंदिर पर क़ब्ज़ा कर लिया, तो वो सब कुछ ले लेगी और हम या मंदिर उसे कभी वापस नहीं पा सकेंगे.”

हालांकि, ईश्वर के पास इस मंदिर की समस्या का समाधान भी है.

”क्यों न अतिरिक्त धन या पूर्व राजघराने की संपत्तियों से अस्पताल और स्कूल बनवाए जाएं? हमें उन संस्थाओं के नाम श्री पद्मनाभस्वामी के नाम पर रखने चाहिए.

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