May 5, 2024 : 8:12 PM
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पीएम मोदी ने जिनके नाम पर यूनिवर्सिटी का किया शिलान्यासराजा -महेंद्र प्रताप सिंह

इस यूनिवर्सिटी के शिलान्यास कार्यक्रम के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलीगढ़ पहुँचने और इस यूनिवर्सिटी को खोले जाने को लेकर राज्य सरकार और भारतीय जनता पार्टी जिन बातों को प्रचारित कर रही थी उसमें कहा जा रहा था कि वह उन लोगों को सम्मान देने का काम कर रही है जिन्हें पिछली सरकारों में भुला दिया गया.

यूनिवर्सिटी का शिलान्यास करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “हमारी आज़ादी के आंदोलन में कई महान व्यक्तित्वों ने अपना सबकुछ खपा दिया. लेकिन यह देश का दुर्भाग्य रहा है कि आज़ादी के बाद ऐसे राष्ट्र नायक और नायिकाओं को अगली पीढियों को परिचित ही नहीं कराया गया.”पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़्ज़फ़्फ़रनगर से सांसद और केंद्र सरकार में राज्य मंत्री संजीव बालियान कहते हैं, “राजा महेंद्र प्रताप सिंह स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रहे हैं, उन्होंने भारत की पहली निर्वासित सरकार बनाई. उन्होंने समाज के लिए कई तरह के संस्थान खोले थे. एएमयू जैसी यूनिवर्सिटी के लिए उन्होंने ज़मीन दी थी. लेकिन उनके योगदान को पूरी तरह भुला दिया गया. उनसे कम योगदान देने वालों का नाम पिछली सरकारों में हर दूसरे तीसरे दिन लिया जाता रहा, लेकिन जाट समुदाय के इतने महान नेता के योगदान को याद नहीं रखा गया.”

राजा महेंद्र प्रताप सिंह

इमेज स्रोत,AMU

इमेज कैप्शन,अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में राजा महेंद्र प्रताप सिंह की लगी तस्वीर.

राजा महेंद्र प्रताप थे कौन?

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आख़िर राजा महेंद्र प्रताप सिंह थे कौन और उनका जाट समाज के लिए क्या योगदान रहा है. राजा महेंद्र प्रताप सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले के मुरसान रियासत के राजा थे. जाट परिवार से निकले राजा महेंद्र प्रताप सिंह की शख़्सियत के कई रंग थे. वे अपने इलाक़े के काफ़ी पढ़े-लिखे शख़्स तो थे ही, लेखक और पत्रकार की भूमिका भी उन्होंने निभाई. पहले विश्वयुद्ध के दौरान अफ़ग़ानिस्तान जाकर उन्होंने भारत की पहली निर्वासित सरकार बनाई. वे इस निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति थे.

एक दिसंबर, 1915 को राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अफ़ग़ानिस्तान में पहली निर्वासित सरकार की घोषणा की थी.

निर्वासित सरकार का मतलब यह है कि अंग्रेज़ों के शासन के दौरान स्वतंत्र भारतीय सरकार की घोषणा. राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने जो काम किया था, वही काम बाद में सुभाष चंद्र बोस ने किया था. इस लिहाज़ से देखें तो दोनों में समानता दिखती है.

हालांकि सुभाष चंद्र बोस कांग्रेसी थे और राजा महेंद्र प्रताप सिंह घोषित तौर पर कांग्रेस में नहीं रहे. हालांकि उस दौर में कांग्रेस के बड़े नेताओं तक उनकी धमक पहुँच चुकी थी. इसका अंदाज़ा महेंद्र प्रताप सिंह पर प्रकाशित अभिनंदन ग्रंथ से होता है जिसमें उनके महात्मा गांधी से संपर्क का ज़िक्र है.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में राजा महेंद्र प्रताप सिंह पर उर्दू में लिखी किताब
इमेज कैप्शन,अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में राजा महेंद्र प्रताप सिंह पर उर्दू में लिखी किताब

इस ग्रंथ में महात्मा गांधी के विचारों को भी जगह दी गई है. गांधी ने महेंद्र प्रताप सिंह के बारे में कहा था, “राजा महेंद्र प्रताप के लिए 1915 में ही मेरे हृदय में आदर पैदा हो गया था. उससे पहले भी उनकी ख्याति का हाल अफ़्रीका में मेरे पास आ गया था. उनका पत्र व्यवहार मुझसे होता रहा है जिससे मैं उन्हें अच्छी तरह से जान सका हूं. उनका त्याग और देशभक्ति सराहनीय है.”

बहरहाल, सुभाष चंद्र बोस निर्वासित सरकार के गठन के बाद स्वदेश नहीं लौट सके, लेकिन राजा महेंद्र प्रताप सिंह भारत भी लौटे और आज़ादी के बाद राजनीति में भी सक्रिय हुए. 32 साल तक देश से बाहर रहे राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने भारत को आज़ाद कराने की कोशिशों के लिए जर्मनी, रूस और जापान जैसे देशों से मदद माँगी. हालांकि वे उसमें कामयाब नहीं हुए.

1946 में जब वो भारत लौटे तो सबसे पहले वर्धा में महात्मा गांधी से मिलने गए. लेकिन भारतीय राजनीति में उस दौर की कांग्रेस सरकारों के ज़माने में उन्हें कोई अहम ज़िम्मेदारी निभाने का मौक़ा नहीं मिला.

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