May 6, 2024 : 12:32 AM
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किसान आंदोलन चुनावी राजनीति में कितना असरदार

महापंचायत में किसानों की मौजूदगी ने इसका जवाब देने की भरपूर कोशिश की और क़ामयाब भी रहे लेकिन किसान नेता राकेश टिकैत के “वोट पर चोट” की अपील यूपी और उत्तराखंड में आगामी विधानसभा चुनाव में कितना असर दिखाएगी, यह विषय राजनीतिक चर्चा के केंद्र में आ गया है.

न सिर्फ़ किसान नेताओं के राजनीतिक बयानों बल्कि महापंचायत के तुरंत बाद बीजेपी के कई नेताओं की प्रतिक्रियाओं से भी यह साफ़ पता चलता है कि किसान आंदोलन के राजनीतिक निहितार्थ से बीजेपी भी अनजान नहीं है.

यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने उसी दिन मीडिया से बातचीत में किसान आंदोलन में विपक्षी राजनीतिक दलों के शामिल होने का आरोप लगाते हुए इस आंदोलन का हश्र शाहीन बाग जैसा होने की भविष्यवाणी कर दी, तो मुज़फ़्फ़रनगर के ही बीजेपी सांसद डॉक्टर संजीव बालियान ने आत्मविश्वास के साथ कहा कि साल 2022 के विधानसभा चुनाव में कोई भी महापंचायत बीजेपी को नहीं हरा सकती है.

लेकिन पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने महापंचायत में किसानों की भीड़ का वीडियो शेयर करते हुए ट्वीट किया कि सरकार को इन किसानों से नए सिरे से बातचीत करनी चाहिए. वरुण गांधी के इस ट्वीट को उनकी मां और सुल्तानपुर से बीजेपी सांसद मेनका गांधी ने भी समर्थन करते हुए री ट्वीट किया. मेनका गांधी साल 2014 में पीलीभीत से ही सांसद थीं और पीलीभीत भी किसान आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र है.यूपी की बात करें तो किसान आंदोलन का प्रभाव ख़ासतौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफ़ी दिख रहा है. इसकी कई वजहें हैं. एक तो इस इलाक़े में ज़्यादातर गन्ना किसान हैं और वो तीन कृषि क़ानून के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन में शुरू से ही शामिल रहे हैं. दूसरे, आंदोलन का नेतृत्व करने वाली भारतीय किसान यूनियन इसी इलाक़े में ज़्यादा प्रभावी है और वही इस वक़्त किसान आंदोलन का नेतृत्व भी कर रही है.

बीजेपी की उल्टी गिनती?

हालांकि पंचायत चुनाव से पहले भारतीय किसान यूनियन के नेताओं नरेश टिकैत और राकेश टिकैत ने पूरे यूपी का दौरा किया और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान वहां भी गए.

अगले साल जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, यूनियन का कहना है कि उन सभी जगहों पर महापंचायत के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे और बीजेपी के ख़िलाफ़ लोगों से वोट करने की अपील की जाएगी. नौ और दस सितंबर को लखनऊ में कई किसान संगठनों के नेताओं की बैठक भी हुई है.

भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, “पश्चिम यूपी से ही बीजेपी का यूपी में झंडा बुलंद हुआ था और यहीं से इनकी उल्टी गिनती भी शुरू होगी. किसानों ने ही बीजेपी की केंद्र और यूपी में सरकार बनवाई लेकिन अब सरकार इन्हीं किसानों की बात नहीं सुन रही है. किसान वोट देकर सत्ता दिला सकता है तो वोट की चोट करके गद्दी से उतार भी सकता है. बीजेपी ने पंचायत चुनावों में इसका स्वाद अच्छे से चखा है लेकिन वो दिखा रही है कि इन सबसे बेफ़िक्र है.”

पिछले तीन चुनावों में यानी साल 2014 और साल 2019 के लोकसभा चुनाव और साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को यहां से बड़ी जीत मिली लेकिन किसान आंदोलन की वजह से अब स्थितियां कुछ बदल गई हैं. किसान आंदोलन शुरू होने के बाद पहला अहम चुनाव यूपी में पंचायत चुनाव हुए और सीधे मतदाताओं की ओर से चुने जाने वाले ज़िला पंचायत सदस्यों में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल को अच्छी ख़ासी जीत मिली.

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