
इमेज स्रोत,INDIAN EXTERNAL AFFAIRE
अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की वापसी और तालिबान के काबुल की सत्ता पर दोबारा काबिज़ होने के पूरे प्रकरण ने भारत की नज़र में अमेरिका की साख़ को कम किया है.
हालांकि भारत सरकार हमेशा अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका के साथ कई प्रोजेक्ट पर काम करती रही है और अब तक भारत ने अमेरिका के रुख पर कोई प्रतिक्रिया सार्वजनिक तौर पर नहीं दी है, लेकिन भारत के कई जाने-माने राजनीतिक टिप्पणीकारों और जानकारों ने अफ़गानिस्तान में अमेरिका के बर्ताव पर सवालिया निशान खड़े किए हैं.
30 अगस्त को जब आखिरी सी-17 विमान ने काबुल के हामिद करज़ई एयरपोर्ट से उड़ान भरी तो अफ़ग़ानिस्तान में जारी 20 साल पुराने अमेरिकी युद्ध का अंत हो गया. भारतीय मीडिया और जानकारों ने अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी युद्ध पर काफ़ी सख्त टिपप्णी की और साथ ही बाइडन प्रशासन के रवैये की भी आलोचना कि गई.
अफ़ग़ानिस्तान से लोकतांत्रिक सरकार का जाना जिससे भारत के अच्छे संबंध थे, ये अपने आप में नरेंद्र मोदी सरकार के लिए झटका है. भारत ने अफ़गानिस्तान में जो 3 बिलियन डॉलर का निवेश किया है उसके भविष्य को लेकर भी डर बना हुआ है. साथ ही ये डर भी है कि कहीं पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन को भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल ना करने लगे.।