May 17, 2024 : 11:26 AM
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स्पेन में इस साल भी बुल फाइटिंग नहीं:यहां 62 स्कूलों में बुलफाइटर्स तैयार होते हैं, 8 की उम्र में दाखिला मिलता है और 14 में पहली बार सांड से सामना

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4 घंटे पहलेलेखक: मैड्रिड से भास्कर के लिए कियारा कोलासंटी

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90 साल में यह पहला मौका है, जब दूसरे साल बुल फाइटिंग नहीं हो रही है। - Dainik Bhaskar

90 साल में यह पहला मौका है, जब दूसरे साल बुल फाइटिंग नहीं हो रही है।

  • कोरोना काल में स्पेन की बुल फाइटिंग दम तोड़ रही, पढ़िए कैसे बनते हैं बुल फाइटर्स

कोरोना ने स्पेन की पहचान बुल फाइटिंग के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। 90 साल में यह पहला मौका है, जब दूसरे साल बुल फाइटिंग नहीं हो रही है। भले ही बीते वर्षों में इस क्रूर समझे जाने वाले खेल के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं, पर इस संस्कृति की जड़ें समाज में बहुत गहरी हैं। यहां 62 स्कूलों में बुल फाइटर्स बनते हैंं। बुल फाइटर्स गढ़ने की कहानी बता रहे हैं मैड्रिड स्कूल के निदेशक जोस पेड्रो…

स्कूलों में आने वाले छात्रों से हर माह 2500 रुपए लिए जाते हैं, स्थानीय निकाय सालाना 90 लाख रु. तक सब्सिडी देते हैं
स्पेन में बुल फाइटर्स तैयार करने के लिए पहला स्कूल 1830 में खुला था। इन स्कूलों को टॉरिन व बुलफाइटिंग को टॉरोमैची कहा जाता है। 8 से 22 साल तक की उम्र के लोग दाखिला ले सकते हैं। इनमें नौसिखिए से लेकर अनुभवी बच्चे होते हैं। ज्यादातर वे होते हैं, जिनकी नसों में फाइटर्स का खून होता है। इन बच्चों से हर महीने महज 2500 रुपए लिए जाते हैं। इस परंपरा को जीवित रखने के लिए स्थानीय निकाय स्कूलों को सालाना 90 लाख रुपए तक की सब्सिडी देते हैं। शुरुआती दिनों में छात्रों को इस टौरोमैची संस्कृति के सैद्धांतिक व व्यावहारिक पक्ष से रूबरू कराया जाता है।

बुल फाइटर्स की चपलता और फुर्ती के लिए एक्सरसाइज, लंबी दौड़ और मेडिटेशन की प्रैक्टिस कराई जाती है। अगले चरण में इन छात्रों को जोड़ों में बांट दिया जाता है। इसमें एक बुलफाइटर और दूसरा सांड की तरह लड़ने की प्रैक्टिस करता है। असली लड़ाई यानी सांड से सामना होने से पहले गाय, बछड़े व अन्य जानवरों से लड़ना सिखाया जाता है। इस तरह इन छात्रों को कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।

14 की उम्र में इनका सामना सांड से कराया जाता है और 16 साल की उम्र में ये बच्चे बुलफाइटर बन जाते हैं। इन्हें ‘टोरेरो’ या ‘मैटाडोर’ कहा जाता हैै। यहां इनका रुतबा किसी रॉकस्टार से कम नहीं होता है। लेकिन जरूरी नहीं है कि हर बच्चा फाइटर बन ही जाए। कई को अधिक समय, अभ्यास और अध्ययन की जरूरत पड़ती है। बहुत कुछ बच्चे की इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है।

यहां से कुछ ऐसे बच्चे निकले हैं जो चर्चित बुलफाइटर बनें। इनके सम्मान में हम स्कूल का नाम बदलते रहते हैं। चार साल पहले हमने स्कूल का नाम अपने चर्चित बुल फाइटर जोस क्यूबेरो ‘यियो’ के नाम पर रख दिया, जिनकी 25 की उम्र में फाइटिंग के दौरान मौत हो गई थी। वैसे 76 साल तक बुल फाइटर्स रिंग में उतर सकते हैं।

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