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- India Pakistan | Kargil Vijay Diwas 2021; General VP Malik, We Should Have Been Allowed To Capture
नई दिल्ली6 घंटे पहले
करगिल युद्ध के समय भारतीय सेना के प्रमुख रहे जनरल वीपी मलिक ने 22 साल पहले लड़े गए इस युद्ध को याद करते हुए इससे जुड़ी कई बातें बताईं। उन्होंने कहा कि उस समय हमें पाकिस्तान की कुछ जमीन पर कब्जा करने की अनुमति मिलनी चाहिए थी।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में जनरल मलिक के हवाले से बताया गया है कि करगिल युद्ध में भारतीय सेना का ऑपरेशन विजय राजनीतिक, सैन्य और कूटनीतिक कार्रवाई का मिलाजुला रूप था। हम मुश्किल हालात को बड़ी सैन्य और कूटनीतिक जीत में बदल सके। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अपने मंसूबों में बुरी तरह नाकाम हुआ था। उसे राजनीति और सेना के मोर्चे पर इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।
भारतीय सेना ने जंग के साथ दुनिया का सम्मान भी जीता
वीपी मलिक ने बताया कि युद्ध के समय भारतीय इंटेलिजेंस दुरुस्त नहीं थी और सर्विलांस का सही सिस्टम मौजूद नहीं था। पाकिस्तान के हमले के बाद भारतीय सेना को संगठित होने और कारगर कदम उठाने में कुछ समय लगा, लेकिन युद्धभूमि में एक के बाद एक मिलने वाली विजय और सफल राजनीतिक-सैन्य रणनीति के दम पर न सिर्फ भारत ने यह जंग जीती बल्कि दुनिया में एक जिम्मेदार देश के रूप में अपनी छवि भी मजबूत की। एक ऐसा देश जो डेमोक्रेटिक है और अपनी सीमाओं की रक्षा भी कर सकता है।
युद्ध शुरू होने से दो महीने पहले पाकिस्तान ने साइन की थी लाहौर संधि
जनरल वीपी मलिक ने बताया कि यह युद्ध भारत-पाकिस्तान के सुरक्षा संबंधों में एक बड़ा मोड़ लेकर आया। हमारा पाकिस्तान से भरोसा उठ गया और देश को यह समझ आया कि पाकिस्तान किसी भी संधि या समझौते से आसानी से पीछे हट सकता है। करगिल में युद्ध छेड़ने से दो महीने पहले ही पाकिस्तान ने लाहौर संधि पर दस्तखत किए थे, जिसमें लिखा था कि भारत और पाकिस्तान हर तरह के युद्ध, खासतौर पर न्यूक्लियर युद्ध को टालने की कोशिश करेंगे।
जनरल मलिक ने आगे कहा कि वायपेयी सरकार इस बात पर भरोसा ही नहीं कर पा रही थी कि घुसपैठिए पाकिस्तान के आम नागरिक नहीं, बल्कि पाकिस्तानी सेना के जवान हैं। तब प्रधानमंत्री वाजपेयी ने नवाज शरीफ से कहा था कि आपने पीठ में छुरा घोंप दिया।
सुरक्षा एजेंसियों के पास नहीं थी घुसपैठियों की लोकेशन
वीपी मलिक ने कहा कि युद्ध की शुरुआत में सरकार के सामने स्थिति साफ ही नहीं थी, कि ये घुसपैठिए कौन हैं। सुरक्षा एजेंसियों को घुसपैठियों की लोकेशन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसके चलते हथियाए गए पोस्ट से दुश्मन को खदेड़ने के लिए जानकारी जुटाना और स्थिति पर नियंत्रण पाना जरूरी हो गया। लेकिन जब सेना को अपनी विजय का यकीन हो गया था, तो उन्हें अनुमति मिलनी चाहिए थी, कि वे युद्धविराम के लिए तैयार होने से पहले पाकिस्तान की कुछ जमीन पर कब्जा कर लें।
सेना की जुगाड़ आई काम
वीपी मलिक के मुताबिक, करगिल से कुछ साल पहले सेना के पास फंड्स की तंगी थी। इसकी वजह से सेना अपने तय बजट के सिर्फ 70% में काम कर रही थी। करगिल में ऊंची चढ़ाई के लिए न हमारे पास सही जूते थे और न कपड़े। हमारे पास रडार और सर्विलांस के उपकरण भी नहीं थे, जिससे हम देख पाएं कि पाकिस्तानी खेमे में क्या चल रहा है। हमें इसके लिए हेलीकॉप्टर्स की मदद लेनी पड़ती थी, लेकिन उसके लिए हेलीकॉप्टर्स को 20 हजार फीट की ऊंचाई तक जाना पड़ता था। आज हमारे पास सैटेलाइट तस्वीरें हैं।
उस समय एक आर्टिलरी कमांडर ने यह तय किया कि वे बोफोर्स तोप को तीन टुकड़ों में एक-एक करके पहाड़ी पर ले जाएंगे जहां उसे असेंबल जाएगा ताकि हमारे जवान दुश्मन पर निशाना लगा सकें। ऐसे ही तरीकों से हमने कमियों को दूर किया।
पाकिस्तान को अब मुंहतोड़ जवाब की जरूरत
जनरल मलिक ने रिपोर्ट में बताया कि जब पाकिस्तान ने भारत पर 26/11 का हमला किया, तब मैं रिटायर हो चुका था। लेकिन तब भी मेरा सुझाव था कि भारत को इस हमले का जवाब देना चाहिए। अगर पाकिस्तान दोबारा ऐसी हरकत करता है तो हमें बदला लेना चाहिए। पाकिस्तान को समय-समय पर ऐसे करारे जवाबों की जरूरत पड़ती रहती है। किस तरह का जवाब देना है यह तय करना सेना और नेताओं की जिम्मेदारी है।
हालात को देखते हुए तय हों नीतियां
वीपी मलिक ने कहा कि पाकिस्तान हमारा पड़ाेसी है और हमेशा रहेगा। ऐसे में ये तो मुमकिन नहीं है कि हम उससे हमेशा के लिए बातचीत बंद कर दें। लेकिन हमें अपनी नीतियों में बदलाव लाते रहना होगा। यहां तुष्टिकरण की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। हकीकत को देखते हुए पाकिस्तान से बातचीत की नीतियां तय होनी चाहिए।
फ्रंटलाइन पर तैनात जवानों से बात करके दिल टूट जाता था
जनरल मलिक आगे बताते हैं कि युद्ध के दौरान मेरा काम दिल्ली में रहकर रणनीति बनाने का था, लेकिन मैं हर छह दिन में फ्रंट-लाइन पर जाया करता था। वहां मौजूद जवानों और अफसरों से बात करने पर दिल टूट जाता था। लेकिन वे हमेशा कहते थे- सर आप चिंता मत कीजिए, हम कर दिखाएंगे। किसी ने कभी यह नहीं कहा कि यह मुश्किल काम है या हमारे सामने कोई बड़ी चुनौती खड़ी है। बल्कि दिल्ली में नेताओं और मेरे साथियों के चेहरे पर ज्यादा तनाव झलकता था। इसलिए अपना मनोबल बढ़ाने के लिए मैं फ्रंट-लाइन पर अपने जवानों के पास चला जाया करता था।