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- Disillusionment With China Increased The Interest Of Foreign Investors In India; Still Hard To Succeed
29 मिनट पहले
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अमेरिका या चीन की नकल से कामयाबी का फार्मूला खोजना मुश्किल हो सकता है।
भारतीय टेक कंपनियों में पूंजी लगाना निश्चित रूप से बेहद आकर्षक है। इन दिनों टेक कंपनियों में विदेशी धन की बाढ़ आ गई है। ई कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट ने अभी हाल में रिकॉर्ड 26 हजार 797 करोड़ रुपए जुटाए हैं। फूड डिलीवरी कंपनी जोमेटो के शेयर ओवर सब्सक्राइब्ड रहे। पेमेंट कंपनी पेटीएम भी जल्द बाजार में आने वाली है। दरअसल, चीन के प्रति झुकाव कम होने से भारत में नए निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ी है। विदेशियों के लिए चीन के मुकाबले भारत अधिक युवा और खुला है। लेकिन, पास से देखने पर वह इस पैमाने पर पूरी तरह खरा नहीं उतरता है। कुछ खूबियों के बावजूद यहां कारोबार चलाने में कई मुश्किलें हैं।
आजीविका कमाने के लिए भारत कठिन जगह है। छोटी सी किराना दुकान के हर संचालक को इतनी बाधाओं का सामना करना पड़ता है कि अमीर देशों के एमबीए शिक्षित मैनेजर धराशायी हो जाएं। फिर भी, भारत का कठिन कारोबारी माहौल एक अलग किस्म का व्यावसायिक जोशखरोश और प्रेरक स्थिति पैदा करता है। इसकी झलक उसके अच्छे स्टार्टअप में दिखाई देती है। बेंगलुरू के एक टेक इन्वेस्टर कहते हैं, भारत में कंप्यूटिंग की प्रतिभा पेटेंट स्तर की टेक्नोलॉजी की बजाय डिजाइन में है। यदि वेंचर कैपिटल जुड़ जाए और तकदीर साथ दे तो ऐसी कंपनी सामने आती है जो भारत और उसके बाहर प्रतिस्पर्धी हो सकती है।
भारतीय टेक कंपनियां दो किस्म की हैं
ध्यान खींचने वाली भारतीय टेक कंपनियां दो किस्म की हैं। पहली- अमीर देशों की कंपनियों के लिए सामान्य कामकाज करती हैं। इस श्रेणी में बड़े नाम हैं, इंफोसिस और टाटा ग्रुप की प्रमुख कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विस। वे टेक्नोलॉजी से चलने वाली मध्यस्थ कंपनियां हैं। दूसरे तरह की कंपनियां अमेरिकी या चीनी टेक्नोलॉजी कारोबार के स्थानीय संस्करण हैं। उनकी मौजूदगी अपने बाजार में है। जैसे कि फ्लिपकार्ट भारतीय अमेजन है, ओला भारतीय उबर है और पेटीएम भारतीय अलीपे है। इस वक्त ऐसी कंपनियों के लिए बाजार में बहुत उत्साह है। नए निवेशक ऐसी कंपनियों को खरीदकर खुश हैं। उनकी सोच है, यदि कोई बिजनेस मॉडल बाहर पैसा बना सकता है तो वह भारत में उनके लिए भी पैसा कमा सकता है।
दो सॉफ्टवेयर इंजीनियरों ने 2007 में फ्लिपकार्ट की स्थापना की
इस हलचल के बीच सवाल उठता है क्या ऐसा संभव है। अमेजन में काम कर चुके दो सॉफ्टवेयर इंजीनियरों ने 2007 में फ्लिपकार्ट की स्थापना की थी। उस समय ई-कॉमर्स के बाजार में बहुत गुंजाइश थी। 2013 में अमेजन ने स्वयं भारतीय बाजार में दस्तक दी। इस बीच पुरानी भारतीय कंपनियों को इस तथ्य का अहसास हुआ कि नई कंपनियां उनके उपभोक्ता फ्रेंचाइजी को आगे बढ़ा सकती हैं। रिलायंस ने टेलीकॉम और ब्रॉडबैंड में भारी निवेश किया है। उसके पास सुपरमार्केट का बड़ा नेटवर्क है। भारतीय बिजनेस में खासतौर से पुराना अनुभव बड़ी ताकत है। सरकारी नियम-कायदों को अपने पक्ष में करने की क्षमता के मामले में पुराने कारोबारी आगे हैं।
निश्चित रूप से भारत के साथ कुछ खूबियां भी जुड़ी हैं। कंप्यूटिंग और व्यावसायिक प्रतिभा के कारण देश वेंचर केपिटल के लिए स्वाभाविक जगह है। यहां बदलाव लाने वाली नई कंपनियों के लिए अच्छी संभावनाएं हैं। लेकिन, वेंचर कैपिटल में आने वाला धन मौलिकता को आगे नहीं बढ़ाता है। हॉलीवुड प्रोड्यूसर के समान वेंचर केपिटल भी पुरानी हिट फिल्मों पर दांव लगाते हैं। भारत में धन कमाने की चमकीली संभावनाएं हैं पर केवल कुछ लोग ही उससे फायदा उठा सकते हैं।
चीन से बहुत पीछे है भारत
चीन के 7 लाख 44 हजार रुपए की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति औसत आय वर्तमान मूल्यों के अनुसार एक लाख 48 हजार रुपए से अधिक है। औसत आंकड़ों में भारत के अमीरों और गरीबों के बीच का अंतर छिप जाता है। देश का अधिकतर वर्कफोर्स औपचारिक रोजगार में नहीं है। उसकी आय औसत से भी कम है। कभी-कभार प्रभावशाली जी़डीपी दर के बावजूद भारत चीन जैसे तेज आर्थिक विकास के रास्ते पर नहीं चल रहा है। उसका सक्रिय बाजार अपेक्षाकृत बहुत छोटा है।