May 17, 2024 : 11:59 AM
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पड़ताल: केंद्र के ‘ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई एक भी मौत’ वाली बात कितना सच, कितना झूठ

इसी साल मार्च और अप्रैल में जब कोरोना की दूसरी लहर अपने चरम पर थी तो ‘ऑक्सीजन संकट’ पैदा हो गया था। लोगों के अपने परिजनों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर खोजने के लिए दर-दर भटकते और ऑक्सीजन की कमी के कारण मौतें होने की कई खबरें आ रही थीं। आरोप लगे कि अस्पताल ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगों को एडमिट नहीं कर रहे थे। इस वजह से तड़प-तड़प कर कई लोगों की जानें सड़कों और अस्पतालों के बाहर चली गई। लेकिन केंद्र सरकार ने मंगलवार को यह बताया कि कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई है। जबकि अप्रैल-मई के मीडिया रिपोर्ट्स और सरकारों के बयान के आधार पर देखें तो केवल दिल्ली, गोवा, हरियाणा, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश समेत 5 राज्यों में ही 195 लोगों की मौत हो गई थी। 

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सरकार के इस बयान के बाद अब इस पर सियासत गरमा गई है और चारों तरफ इसका विरोध शुरू हो गया है। राज्यसभा में स्वास्थ्य मंत्री से यह जब यह पूछा गया था कि क्या ऑक्सीजन की कमी से बड़ी संख्या में सड़क और अस्पतालों में मरीजों की मौत हुई तो स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने लिखित जवाब में बताया कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेश कोरोना से होने वाली मौतों की जानकारी नियमित तौर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को देते हैं। लेकिन किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ने ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौत को लेकर जानकारी नहीं दी है।

तकनीकी तौर पर सरकार की बात सही

विरोध बढ़ने पर स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने ट्वीट कर कहा कि ये आंकड़ा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की रिपोर्ट के आधार पर दिया गया है।  तकनीकी तौर पर देखें तो स्वास्थ्य मंत्री की बात सही है। यदि किसी राज्य ने लिखित तौर पर ऑक्सीजन की कमी से किसी मौत का जिक्र नहीं किया है तो केंद्र सरकार वही जवाब देने के लिए बाध्य है।  इस बात की पड़ताल के लिए हमने राज्य सरकारों के बयानों और मीडिया रिपोर्ट को आधार बना कर देखा तो पाया कि भले राज्य सरकारों ने केंद्र को कोई आंकड़ा नहीं दिया हो लेकिन केवल 5 राज्यों से ही ऑक्सिजन कमी के चलते 195 लोगों की जान चली गई। 

13 मई की रिपोर्ट के हवाले से कुछ राज्यों में हुई मौतों के बारे में जानिए

हरियाणा: सरकार ने 5 अप्रैल से 1 मई के बीच ऑक्सिजन की कमी के कारण हुई कम से कम 19 मौतों की जांच के आदेश दिए थे। रेवाड़ी के विराट अस्पताल से चार, गुड़गांव के कथूरिया अस्पताल से चार, हिसार के सोनी बर्न से पांच और गुड़गांव में कृति अस्पताल से छह मौतें रिपोर्ट की गई थी।

गोवा:  मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 11 से 15 मई के बीच ऑक्सिजन संबंधित कारणों के चलते गोवा में कम से कम 83 लोगों की मौत हो गई थी। पहले दिन गोवा के सबसे बड़े कोविड सेंटर गोवा मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में सबसे ज्यादा 26 कोरोना मरीजों की गई जानें चली गई थी। जिसे लेकर राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने ही अपने सरकार पर सवाल खड़े किए थे। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे ने कहा था हमें लगता है कि ऑक्सिजन की बाधित आपूर्ति के कारण गोवा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में सुबह 2 से 6 बजे के बीच कई लोग मर रहे हैं। एक दिन, आवश्यकता लगभग 1,200 सिलेंडर थी लेकिन 400 सिलेंडर मिले।  उन्होंने हाईकोर्ट से इसकी जांच की मांग करते हुए कहा था कि ये मौतों ऑक्सीजन की कमी के चलते हो सकती हैं।

आंध्र प्रदेश: आंध्र प्रदेश के तिरुपति शहर में 10 मई को रुइया सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई में प्रेशर की कमी से 11 मरीजों की मौत हो गई। ये सभी मरीज वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे।

कर्नाटक: कर्नाटक के चामराजनगर में 3 मई को ऑक्सीजन की कमी के चलते 24 से ज्यादा मरीजों की मौत हो गई। इनमें 23 कोरोना संक्रमित और एक अन्य बीमारी से पीड़ित मरीज शामिल थे। बताया गया कि जिन मरीजों का कोरोना से इलाज चल रहा था वे सारे वेंटिलेटर पर थे। हालांकि, सरकार ने ऑक्सीजन की कमी की बात से इनकार किया। वहीं बंगलुरु में 4 मई की सुबह ऑक्सीजन की कमी से दो कोरोना मरीजों की मौत हो गई।

दिल्ली: यहां के जयपुर गोल्डन अस्पताल में 23 अप्रैल को ऑक्सीजन की कमी से 25 मरीजों की मौत हो गई। अस्पताल प्रशासन ने मौत के पीछे ऑक्सीजन प्रेशर में कमी को कारण बताया था। इसके बाद जयपुर गोल्डन अस्पताल ने ऑक्सीजन सप्लाई में लगातार कमी को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट का भी रुख किया था। हाईकोर्ट में दिल्ली सरकार ने रिपोर्ट दाखिल करते हुए कहा कि अस्पताल में मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई थीं। इससे पहले सर गंगाराम अस्पताल में 23 अप्रैल को वक्त पर ऑक्सीजन नहीं मिल पाने की वजह से 25 मरीजों की मौत हो गई थी। 1 मई को ऑक्सीजन की कमी के चलते बत्रा अस्पताल में 12 कोरोना  मरीजों की मौत हो गई। मृतकों में एक अस्पताल के एक डॉक्टर भी शामिल थे। सभी मरीज अस्पताल की आईसीयू यूनिट में भर्ती थे।

महाराष्ट्र: नासिक में 21 अप्रैल को डॉक्टर जाकिर हुसैन अस्पताल में ऑक्सीजन न मिलने के कारण 22 मरीजों की मौत हो गई क्योंकि ऑक्सीजन लीक हो गई थी। ऑक्सीजन लीक होने के कारण अस्पताल में करीब आधे घंटे तक सप्लाई बाधित रही थी। इसके अलावा पालघर जिले के वसई में ऑक्सीजन की कमी के कारण 13 अप्रैल को कम से कम 10 मरीजों की मौत हो गई।

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली और तमिलनाडु सरकार का क्या कहना है

मध्य प्रदेश: केंद्र सरकार के बयान का समर्थन करते हुए  राज्य के मेडिकल एजुकेशन मिनिस्टर विश्वास सारंग ने कहा है कि उनके राज्य में ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई है। 

बिहार: राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने केंद्र सरकार के साथ सुर में सुर मिलाते हुए कहा, ‘दूसरी लहर के दौरान हम दबाव में थे लेकिन इसके बावजूद बेहतर प्रबंधन किया। उन्होंने कहा कि हमें केंद्र का पूरा सहयोग मिला और हमें ऑक्सीजन भी पर्याप्त मात्रा में मिला। हमने सभी अस्पतालों में ऑक्सीजन दिया था। 

छत्तीसगढ़: इस पूरे विवाद पर छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव ने कहा कि ये सच है कि छत्तीसगढ़ में ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई. छत्तीसगढ़ ऑक्सीजन सरप्लस वाला राज्य था. लेकिन ऑक्सीजन सप्लाई मैनेजमेंट में दिक्कत ज़रूर आई थी।  उन्होंने कहा कि जब ज्यादातर राज्य ऑक्सीजन की कमी से लड़ रहे थे तब छत्तीसगढ़ के पास पर्याप्त ऑक्सीजन था। रिकॉर्ड के मुताबिक  छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उत्तर प्रदेश में ऑक्सजीन की कमी को देखते हुए अप्रैल के आखरी सप्ताह में 16 टन ऑक्सीजन लखनऊ भेजा था। सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं छत्तीसगढ़ ने उस दौरान मध्यप्रदेश, गुजरात, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र को भी ऑक्सीजन की आपूर्ति की थी।  

तमिलनाडु: स्वास्थ्य सचिव जे राधाकृष्णन के बयान के मुताबिक तमिलनाडु में ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई. उनका कहना है कि हमने सरकारी और निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन की सप्लाई लगातार बनाए रखी थी।

दिल्ली: स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का कहना है कि सरकार ने संसद में जो जवाब दिया है वह बिलकुल गलत है। उन्होंने कहा कि अगर ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हो रही थी, तो अस्पताल लिए हाईकोर्ट क्यों जा रहे थे?  उन्होंने कहा कि दिल्ली समेत देश के कई स्थानों पर भी ऑक्सीजन की कमी हुई थी। हमने दिल्ली के भीतर ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौत पर मुआवाजा देने के लिए कमेटी बनाई थी, जिसको उपराज्यपाल ने नामंजूर कर दिया था, अगर वो कमेटी बनी होती तो आज सही आंकड़ा मिल जाता। हम उपराज्यपाल से अपील करेंगे कि हमें कमेटी गठित करने की इजाजत दे।

अप्रैल  में ऑक्सीजन की कमी पर स्वास्थय मंत्रालय का क्या था रुख
अभी सरकार बेशक नहीं मान रही हो कि ऑक्सीजन की कमी से कोरोना मरीजों की मौतें हुई हैं लेकिन यह सच है कि जब देश में कोरोना मरीजों के लिए ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा था तब स्वास्थय मंत्रालय की भी नींद उड़ गई थी और अस्पतालों में ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए कवायद तेज कर दी गई थी। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक पहली लहर के मुकाबले दूसरी लहर में मेडिकल ऑक्सीजन की मांग काफ़ी बढ़ गई थी। पहली लहर में जहां 3,095 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की मांग थी, तो दूसरी लहर में यही मांग 9,000 मीट्रिक टन तक पहुंच गई थी।

15 अप्रैल: इस तारीख पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने माना था कि विशेष रूप से सबसे ज्यादा सक्रिय मामलों वाले 12 राज्यों में मेडिकल ऑक्सीजन की मांग बढ़ रही है। इन राज्यों में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान शामिल हैं। मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में मेडिकल ऑक्सीजन की अपनी मांग पूरी करने के लिए कोई उत्पादन क्षमता मौजूद नहीं है। इसके अलावा, ऑक्सीजन उत्पादक अन्य राज्यों जैसे गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान आदि में भी मेडिकल ऑक्सीजन की मांग में भी बढ़ोतरी का रुझान है।

27 अप्रैल: स्वास्थ्य मंत्रालय के एक बयान के मुताबिक देश में ऑक्सीजन ऑक्सीजन कमी से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने 10 और 20 मीट्रिक टन क्षमता के 20 क्रायोजेनिक टैंकर आयात किए और राज्यों को आवंटित किया। उससे पहले 18 अप्रैल को स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह कहा कि रोगियों के प्रभावी उपचार के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता में कई गुना इजाफा देखा जा रहा है। उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने बताया कि ऑक्सीजन की मांग पहले से मौजूद कुल दैनिक ऑक्सीजन उत्पादन के लगभग 60 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है और कुछ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से मेडिकल ऑक्सीजन की कमी की भी खबरें आई हैं।

इसके अलावा, रेल मंत्रालय ने ऑक्सीजन सिलेंडरों की ढुलाई के लिए ऑक्सीजन एक्सप्रेस भी चलाया।देश भर में ऑक्सीजन की सरल और बाधारहित ढुलाई की सुविधा के लिए, ऑक्सीजन एक्सप्रेस ट्रेनों के तेजी से आवागमन के लिए एक ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। जो कोरोना रोगियों तक मेडिकल ऑक्सीजन की थोक और तेजी से आपूर्ति कर रहा था। 

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