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- Climate Change Will Be Terrible In The Coming 5 To 10 Years, But The World Has Not Even Started Preparations Richard Sennett
3 घंटे पहले
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यूएन के वरिष्ठ सलाहकार रिचर्ड सेनेट ।
कोरोना ने परंपरागत चिंतन और हर क्षेत्र में कार्यप्रणाली को झकझोर दिया है। वहां मौजूद खामियां बताई हैं। साथ ही बच्चों, किशोरों यानी आने वाली पीढ़ियों के साथ हो रहे अन्याय को भी उजागर किया है। यह कहना है संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ सलाहकार रिचर्ड सेनेट का। सेनेट दुनिया के सबसे कद्दावर समाजशास्त्री माने जाते हैं। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, कोलंबिया यूनिवर्सिटी और एमआईटी के प्रोफेसर सेनेट से कोरोना के कारण बदले दुनिया के परिदृश्य, चुनौतियां और इनसे निपटने के उपायों को लेकर भास्कर के रितेश शुक्ल ने चर्चा की। पढ़िए प्रमुख अंश…
भारत के युवा भी टेक दिग्गजों को चुनौती दे सकते है, बशर्ते तंत्र कंपनियों को बचाने में न लगा रहे
वर्तमान में सबसे बड़ी चिंताएं क्या हैं?
बढ़ती जनसंख्या और सभी का समग्र विकास अपने आप में चुनौती है। जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार हनन भी बड़ी समस्या है। धर्म या राष्ट्रवाद की आड़ में आतंकवाद या लोगों के बीच बढ़ रही आर्थिक असमानता भी बड़े खतरे हैं। कोरोना ने इनकी कलई खोल दी है। कोरोना तो ट्रेलर है। आने वाले 5-10 सालों में जलवायु परिवर्तन से आर्थिक, राजनैतिक और सेहत के स्तर पर आज पेश आ रही दुश्वारियां कई गुना बड़े रूप में आएंगी। जैसे हम कोरोना के लिए तैयार नहीं थे, वैसे ही तब भी नहीं होंगे। बस झेलने के लिए अभिशप्त होंगे।
इस वैश्विक लाचारी की वजह क्या है?
कोरोना को ही लीजिए, सबसे पहले मेरे जैसे उम्र बिता चुके बुजुर्गों को बचाने की मुहिम चलाई गई। बच्चों-किशोरों के लिए टीके की बात डेढ़ साल बाद हो रही है। हमने भावी पीढ़ी को आखिरी पायदान पर रखा है। उनके साथ अन्याय करते रहे हैं। यह पीढ़ीगत अन्याय सबसे बड़ी समस्या है। अफगानिस्तान में जो शांति लाने का दावा कर रहे हैं, क्या वे बच्चों, किशोरों के साथ न्याय कर पाए हैं। भारत में अधिकांश लोगों की कमाई घट गई है। आखिर कमाते बच्चों के लिए ही तो हैं। यही हाल इटली, ग्रीस, स्पेन, पुर्तगाल, जैसे देशों का है।
स्थिति में सुधार कैसे ला सकते हैं?
हमारी दशा और दिशा राजनीति से तय होती है। जबकि साबित हो चुका है कि राजनीतिक नेतृत्व निहायती असंवेदनशील व असक्षम है। लोग संगठित होंगे, तब ही असंगठित आर्थिक क्षेत्र संपन्न होगा। नेहरू प्लेस या बेंगलुरू में रहने वाले युवा चाहें तो दिग्गज टेक कंपनियों को पानी पिला सकते हैं। पर तंत्र इन बड़ी कंपनियों का बचाव करने में व्यस्त रहेगा तो युवा क्या कर लेंगे। जनता को पानी, रहने की जगह और अच्छी सेहत मुहैया करवा दी जाए और दुनिया के असंगठित क्षेत्र में संपर्क सुलभ करवा दिया जाए तो काफी सारी समस्याएं हल हो जाएंगी।