May 12, 2024 : 8:30 PM
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महाराष्ट्र: के. सुब्रमण्यम ने कहा- नए कृषि कानूनों से किसान कॉरपोरेट को बेच सकते हैं फसलें

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देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) के. सुब्रमण्यम ने सोमवार को कहा कि नए कृषि कानून किसानों को बेहतर दाम हासिल करने में मदद करेंगे, क्योंकि ये कानून किसानों को अपनी फसल अच्छे दामों पर रिलायंस और आईटीसी जैसे कॉरपोरेट को बेचने की इजाजत देकर प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देते हैं।

पुराने एपीएमसी कानून से असल कीमत का महज 15 फीसदी ही मिलता था किसानों कोउन्होंने कहा, पुराने एपीएमसी कानूनों में फसल की कीमत में किसानों को महज 15 फीसदी हिस्सेदारी ही मिलती थी, जबकि बिचौलिये इससे कहीं ज्यादा कमाई करते थे। तीन नए कृषि कानून पिछले साल संसद ने पारित किए थे, लेकिन जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के आंदोलन के बीच इन्हें लागू करने की प्रक्रिया निलंबित कर दी थी।

सुब्रमण्यम ने कहा, कृषि कानून छोटे और सीमांत किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में एक कदम है। केवल कृषि उत्पादन विपणन समितियों (एपीएमसी) के जरिये अपने उत्पाद बेचने की बाध्यता किसानों की आमदनी प्रभावित करती है।

क्योकि कृषि उत्पाद के खराब होने वाली वस्तु होने और दोबारा बाजार में आने पर लागत बढ़ने की समस्या के कारण मंडी समितियों में खरीदार के तौर पर बैठे बिचौलिये व्यापार में हमेशा मनमानी करने की स्थिति में होते थे। सीईए ने कहा, कृषि कानून बाजार में ऐसी प्रतिस्पर्धा पैदा करने के लिए हैं, जिसमें छोटे और सीमांत किसान बिचौलिए को यह कह सकें कि अच्छी कीमत नहीं मिलने पर मैं किसी दूसरे को फसल बेच सकता हूं।

यह दूसरा आईटीसी, रिलायंस या फार्म फ्रैश जैसा कोई भी कॉरपोरेट हो सकता है। नाबार्ड के स्थापना समारोह कार्यक्रम में सीईए ने कहा, जिन मंडी समिति कानूनों को नए कृषि कानून खत्म करना चाहते हैं, वे 13वीं सदी के शासक अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी बड़ी सेना को खिलाने की व्यवस्था करने के लिए ईजाद किए थे।

प्रतिस्पर्धा हमेशा ग्राहक और उत्पादक के लिए लाभदायकसुब्रमण्यम ने कहा, प्रतिस्पर्धा हमेशा बिक्री शृंखला के आखिरी सिरे पर बैठे ग्राहक और पहले सिरे पर बैठे उत्पादक के लिए लाभदायक होती है। उन्होंने इसके लिए बैंकिंग, म्युचुअल फंड, टेलिकॉम और एयरपोर्ट जैसे क्षेत्रों को सक्सेस स्टोरी का सक्सेस स्टोरी के तौर पर उदाहरण दिया।

उन्होंने कहा, फसल बिक्री के समय अमीर किसानों को उन समस्याओं से नहीं जूझना पड़ता, जिनका सामना छोटे और सीमांत किसानों को करना पड़ता है। बड़े किसान भंडारण ढांचे में निवेश करने और ज्यादा बेहतर नेटवर्क बनाने की स्थिति में होते हैं।

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