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लोगों की सेहत से सरकारी खिलवाड़:पैकेज्ड फूड पर स्टार रेटिंग की तैयारी, दुनिया के सिर्फ 2 देशों में ये लागू; लोगों को नुकसान और कंपनियों को फायदा होगा

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नई दिल्ली20 घंटे पहलेलेखक: स्कन्द विवेक धर

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स्टार रेटिंग से यह नहीं पता चलेगा कि प्रोडक्ट में नमक, शुगर या फैट मानक से अधिक है। -फाइल फोटो - Dainik Bhaskar

स्टार रेटिंग से यह नहीं पता चलेगा कि प्रोडक्ट में नमक, शुगर या फैट मानक से अधिक है। -फाइल फोटो

भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) पैकेट बंद खाद्य पदार्थों पर “चेतावनी’ की जगह हेल्थ स्टार रेटिंग (HSR) अपनाने की तैयारी में है। दुनिया के सिर्फ दो देशों में लागू यह व्यवस्था बेअसर रही है। वैज्ञानिक अध्ययन भी बताते हैं कि इससे लोग हानिकारक खाने के प्रति अलर्ट नहीं होते।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है HSR की कवायद से कंपनियों के बचाव का रास्ता निकाला जा रहा है। स्टार रेटिंग से यह नहीं पता चलेगा कि प्रोडक्ट में नमक, शुगर या फैट मानक से अधिक है। नुकसानदेह खाने में भी प्रोटीन और फाइबर बढ़ाकर अच्छी रेटिंग ली जा सकती है।

FSSAI के एक अधिकारी ने 25 जून को हुई उपभोक्ता संगठनों की बैठक में HSR को ही एकमात्र विकल्प बताया। जबकि जनवरी से मई तक बातचीत में इसका जिक्र नहीं था। इस पर उपभोक्ता संगठन राजी नहीं हुए। 30 जून को हुई बैठक में FSSAI ने फ्रंट ऑफ पैक लेबल (FOPL) के चयन के लिए IIM जैसी संस्था से सर्वे कराने का फैसला किया।

मैक्सिको, चिली समेत 10 से ज्यादा देश इसे लागू कर चुके
दरअसल, WHO ने खाद्य पदार्थ में शुगर, फैट, आयोडीन जैसे तत्वों की मात्रा फूड पैकेट पर लिखने को कहा है। मैक्सिको, चिली समेत 10 से ज्यादा देश इसे अनिवार्य रूप से, जबकि 30 से ज्यादा देश स्वैच्छिक रूप से लागू कर चुके हैं। ज्यादातर ने ‘हाई’ लेबल या ‘ट्रैफिक लाइट’ को अपनाया है। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में स्टार रेटिंग लागू है।

यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना के अध्ययन में पता चला, हाई अलर्ट का लेबल लगाने से ज्यादा कैलोरी, चीनी, नमक वाले उत्पादों की बिक्री कम हो गई। एनजीओ कट्स इंटरनेशनल के निदेशक और FSSAI सेंट्रल एडवाइजरी कमेटी के सदस्य रहे जॉर्ज चेरियन कहते हैं कि वॉर्निंग लेबल जरूरी है। इससे उपभोक्ता को पता लगता है कि वह जो चीज खरीद रहा है, उसमें किसकी कितनी मात्रा है। स्टार रेटिंग इसमें बेअसर है।

ऑस्ट्रेलिया से सबक सीखे भारत : जोंस
ऑस्ट्रेलिया में स्टार रेटिंग के दुष्प्रभाव का अध्ययन कर चुकीं द जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ की पब्लिक हेल्थ लॉयर डॉ. अलेक्जेंड्रा जोंस ने भास्कर को बताया, “कंपनियां वह लेबल कैसे स्वीकार करेंगी, जिनसे उनकी बिक्री घटे। हेल्थ स्टार रेटिंग उनके लिए “सबसे कम खराब’ विकल्प है। ऑस्ट्रेलिया में स्टार रेटिंग 41% फूड पैकेट्स पर है। ज्यादातर लोग नहीं जानते कि किस मात्रा में क्या खा रहे हैं। भारत को इससे सबक लेना चाहिए।

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