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आगरा5 मिनट पहले
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आगरा।देश और प्रदेश में भले ही कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप अब कम हो गया है पर दो वर्षों से कोरोना के भय में जी रहे तमाम लोग आज भी कोरोना फोबिया से ग्रस्त हैं।डॉक्टर्स का कहना है कि परिवार के साथ समय बिताकर और व्यस्त रहकर उचित काउंसलिंग के जरिये ही व्यक्ति फोबिया से बाहर आ सकता है।
कोरोना की पहली और दूसरी लहर के बीच जीवन जीने के दौरान रोजाना किसी न किसी की मौत,टीवी और सोशल मीडिया पर लगातार बीमारी के डर की कहानियां देखते-देखते तमाम लोगों को कोरोना फोबिया हो गया है।मानसिक चिकित्सालय में रोजाना ऐसे मरीज सामने आ रहे हैं।मानसिक चिकित्सालय के सुपरिटेंडेंट दिनेश राठौर के अनुसार कोरोना काल के बीच मानसिक रोगियों की संख्या काफी बढ़ गयी है।रोजाना ओपीडी में लगभग 100 मरीजों में से कोरोना फोबिया से ग्रस्त चार पांच मरीज जरूर आ रहे हैं।
यह हैं मानसिक रोग की कैटेगिरी
डॉ. दिनेश सिंह राठौर ने बताया कि मनोरोग में मेंटल इलनेस और सीरियस इलनेस दो श्रेणी होती है।इसमें डिप्रेशन,साइकोसिस, ओसीडी,एपिलिप्सी,मंदबुद्धि, स्ट्रेस डिसऑर्डर, एंजाइटी डिसऑर्डर आते हैं। बच्चों में एडीएचडी, ऑटिज्म, बिहेवियर प्रॉब्लम प्रमुख समस्या है।इस समय 4 से 17 तक के बच्चों में फोमो की परेशानी बहुत दिख रही है।बच्चे फोन को ही अपनी दुनिया समझने लगे हैं।कोरोना काल में तमाम सावधानियां रखते रखते बहुत से लोगों को लगातार टेम्प्रेशर नापने,आक्सीजन चेक करने और सेनेटाइजिंग करते रहने की आदत बन गयी है और वो इन कामों को किये बिना परेशान होने लगते है।कोरोना काल में लोगों में चिड़चिड़ापन,बेवजह गुस्सा आना,रिस्पांस टाइम में कमी,काम में फोकस न होना,डायरिया या पेट दर्द जैसी समस्या और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के कम होने की दिक्कतें सामने आई हैं।
काउंसलिंग से दूर हो रही बीमारी
कोरोना काल में तमाम लोग मानसिक रूप से प्रेशर में आ गए। ऐसे समय में जिला महिला चिकित्सालय लेडी लॉयल की अर्श काउंसलर रुबी बघेल ने बताया कि कोविड की दहशत से सिर्फ आगरा वालों को नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश, गुड़गांव, हैदराबाद, इंदौर तक से आई कॉल के जरिए काउंसलिंग कर डर को दूर किया। उन्होंने करीब 2500 लोगों की काउंसलिंग कर उनके अंदर से कोरोना का डर निकाला।कोरोना की दूसरी लहर ने सभी को परेशान कर रख दिया। लाखों लोग पॉजिटिव हुए। न जाने कितने लोग कॉल के गाल में समा गए। हर किसी को अपनी जान बचाने की परवाह थी। दूसरी लहर में कोविड से मरने वालों की संख्या ज्यादा थी। इसलिए, लोग काफी भयभीत थे। कोरोना की चपेट में आने वाले सबसे ज्यादा परेशान थे।उन्होंने करीब एक हजार बच्चों समेत 2500 लोगों की काउंसलिंग की। उन्हें बताया कि कोरोना से जंग को जीता जा सकता है।
रात में दो बजे तक होते थे फोन
काउंसलर रूबी का कहना है कि
कई बार रात में दो बजे फोन आता था और बोलते थे सांस लेने में दिक्कत हो रही है।उनके अंदर कोरोना फोबिया हो गया था।काउंसलिंग के जरिए उनके अंदर से कोरोना का भय निकाला।
यह हैं कुछ मामले
केस 1-एक परिवार के बच्चों में कोरोना फोबिया हो गया था। वह घर से बाहर निकलने में डरते थे। उन्हें लगता था कि दरवाजे के बाहर कदम रखा तो कोरोना जकड़ लेगा। ऐसे बच्चों की काउंसलिंग करने के बाद उन्हें जागरूक किया। बड़ी संख्या में बच्चों को कोविड फोबिया से बाहर निकाला।
केस 2-दयालबाग में एक परिवार के चार सदस्य कोविड से संक्रमित हो गए थे। उस समय कालोनी में कोरोना से मौत होने के बाद पूरा परिवार सदमें में था। उन्हें लगता था कि अब वह भी नहीं बच पाएंगे। बेटी कीर्ति बताती है कि उनके पापा की उम्र 60 साल है। मां 55 वर्ष की है। दो बहनें भी हैं।कोरोना फोबिया के चलते पूरा परिवार काफी घबराया था।पिता को कोरोना फोबिया हो गया था। वह बार-बार अपनी पल्स और ऑफिसर लेवल को चेक करते थे। रुबी बघेल ने सबसे पहले कीर्ति से हाल-चाल जाना। फादर को मानसिक तनाव के बारे में बताया। रुबी ने सबसे पहले काम बांटने का सुझाव दिया। जिससे पूरा परिवार के लोग व्यस्त रहें। योगा करने और ध्यान लगाने के बारे मे बताया। सुबह जल्दी जागना है। फिर सभी हल्की गुनगुनी धूप में बैठकर चाय पीए, सभी साथ में बैठकर बातचीत करें, जोक पढ़ने हंसाने का प्रयास करें,सही समय पर दवाई का सेवन करें, खुश रहे, कोविड प्रोटोकॉल का पालन करें। अब हम सब पूरी तरह स्वस्थ हैं।
केस-3 दयालबाग क्षेत्र में रहने वाला विजय(काल्पनिक नाम) एक अच्छी बैंक में असिस्टेंट मैनेजर है।कोविड कि काल मे उसे इतना डर हो गया कि वो हर वक्त सेनेटाइजिंग काटने लगा।हालात यह हो गए कि 5 मिनट भी बिना सेनेटाइजर के रहना मुश्किल हो गया था।उसकी काउंसलिंग की गई और अब वो फोबिया से बाहर आ चुका है।
महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा मानसिक परेशानी
मनोचिकित्सक डॉ के सी गुरनानी बताते हैं कि हमारे देश मे अधिकांश महिलाएं घर संभालती हैं और पुरुष बाहर निकल कर आजीविका का इंतजाम करते हैं। कोरोना काल में महिलाओं की दिनचर्या में ज्यादा असर नहीं हुआ उल्टा उनके पास परिवार के सदस्य रहने से उन्हें अच्छा माहौल मिला।इसके विपरीत पुरुषों को जरूरत के अनुसार बाहर निकलना पड़ता था।उनकी दिनचर्या में बहुत परिवर्तन हुआ था।इसके चलते पुरुषों को मानसिक तनाव की शिकायत ज्यादा रही।
बच्चों के लिए इन बातों का रखिये ख्याल
डॉक्टरों का कहना है कि तीसरी लहर में बच्चों को इन सब समस्याओं से बचाने के लिए उनके माता-पिता को अभी से अपने बच्चे को समय देना शुरू करना चाहिए। प्रतिदिन कम से कम 3 घंटे बच्चों के साथ खेलना और बातचीत करना चाहिए।बिताएं।इससे बच्चे तनाव और चिंता से दूर हो पाएंगे।बच्चों को बाहर पार्कों में खेलने कूदने दें पर कोविड नियमों का भी ख्याल रखें।बच्चों को फोन व लैपटॉप कम समय के लिए दें।खेलकूद और स्कूलिंग बन्द होने से बच्चों को शारीरिक व मानसिक दिक्कतें आ सकती हैं, ऐसे में बच्चों की इम्यूनिटी बढ़ाने पर भी जोर देना होगा।
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