May 14, 2024 : 5:54 PM
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उत्तराखंड के नए CM की रेस LIVE: बीजेपी विधायक दल की मीटिंग में आज चुना जाएगा नया नेता, केंद्रीय पर्यवेक्षक के तौर पर नरेंद्र सिंह तोमर देहरादून पहुंचे

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38 मिनट पहले

कॉपी लिंकदेहरादून एयरपोर्ट पर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर। उनका कहना है कि विधायक दल की बैठक से पहले उनसे अलग से भी चर्चा की जाएगी। - Dainik Bhaskar

देहरादून एयरपोर्ट पर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर। उनका कहना है कि विधायक दल की बैठक से पहले उनसे अलग से भी चर्चा की जाएगी।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के बाद नया मुख्यमंत्री चुनने की कवायद शुरू हो गई है। देहरादून में आज 3 बजे बीजेपी विधायक दल की बैठक होगी। इस मीटिंग में नए मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लगेगी। इसके लिए केंद्र की तरफ से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पर्यवेक्षक बनाया गया है और वे देहरादून पहुंच चुके हैं।

सतपाल महाराज और रमेश पोखरियाल निशंक रेस में आगेनए CM के लिए भाजपा अब किसी को बाहर से लाने की बजाय विधायकों में से चुनने के पक्ष में है। फिलहाल सतपाल महाराज का पलड़ा सबसे भारी लग रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी पूरा जोर लगा रहे हैं, लेकिन उनको विधायकों का समर्थन मिलना मुश्किल लग रहा है। वहीं केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को इस रेस में दूसरे नंबर पर माना जा रहा है। लेकिन दिक्कत ये भी है कि वे सांसद हैं तो उन्हें भी 6 महीने में चुनाव लड़ना पड़ेगा।

हफ्तेभर से तीरथ को हटाए जाने के कयास लग रहे थेपिछले एक हफ्ते से ही ये कयास लगाए जा रहे थे कि उत्तराखंड में एक बार फिर मुख्यमंत्री का चेहरा बदल सकता है। तीरथ सिंह रावतके इस्तीफे के पीछे संवैधानिक मजबूरी को वजह बताया जा रहा था। वे अभी राज्य के किसी सदन के सदस्य नहीं थे। यही बात उनके मुख्यमंत्री बने रहने में आड़े आ रही थी।

तीरथ के सामने थी संवैधानिक समस्यात्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद तीरथ सिंह रावत ने 10 मार्च को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। अब संविधान के मुताबिक पौड़ी गढ़वाल से भाजपा सांसद तीरथ को 6 महीने के भीतर विधानसभा उपचुनाव जीतना था, तभी वे CM रह पाते। यानी 10 सितंबर से पहले उन्हें विधायक का चुनाव जीतना था।

वहीं चुनाव आयोग के सितंबर से पहले उपचुनाव कराने से इनकार करने के बाद रावत के सामने विधायक बनने का संवैधानिक संकट खड़ा हो गया था। हालांकि वे 6 महीने पूरे होने से पहले इस्तीफा देकर दोबारा शपथ ले सकते थे, लेकिन भाजपा को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ऐसा करना ठीक नहीं लग रहा था।

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